Rajasthan: पश्चिम राजस्थान के रेगिस्तानी जिले बाड़मेर के मांगीलाल बोथरा ने विदेशी सामान बेचने की आलोचनाओं को प्रेरणा बनाकर स्वदेशी का रास्ता चुना, आज करोड़ों रुपये के टर्नओवर के साथ एक मिसाल बन चुके हैं. उनकी बनाई 'गोधन अर्क' की खुशबू ना सिर्फ राजस्थान, बल्कि पूरे देश की बड़ी आयुर्वेदिक कंपनियों तक पहुंच रही है. हरिद्वार की पतंजलि से लेकर कई नामी कंपनियां इनके गौधन अर्क को खरीदते हैं. ये कहानी कैसे शुरू हुई? आइए, जानते हैं इस प्रेरणादायक सफर को...
विदेशी सामान से स्वदेशी क्रांति तक
मांगीलाल बोथरा पहले बाड़मेर में इलेक्ट्रॉनिक्स की दुकान चलाते थे, जहां विदेशी कंपनियों के उपकरण बेचे जाते थे. लेकिन, ग्राहकों की टिप्पणियों ने उन्हें स्वदेशी अपनाने का संकल्प दिलाया. उन्होंने गौमूत्र से गौधन अर्क बनाने का अनोखा विचार अपनाया और आज उनका प्लांट सालाना 3.5 लाख लीटर गौधन अर्क का उत्पादन कर रहा है. बाड़मेर की दूर-दराज की ढाणियों से गौमूत्र एकत्रित कर, मांगीलाल ने न सिर्फ़ स्वदेशी को बढ़ावा दिया, बल्कि एक ऐसी क्रांति शुरू की, जो आज पूरे देश में छा रही है.
बाड़मेर में लगा प्लांट.
करोड़ों का टर्नओवर
मांगीलाल का प्लांट हर दिन 2000 लीटर गौमूत्र से 1500 लीटर गौधन अर्क तैयार करते हैं. इसे बनाने की प्रक्रिया इतनी सटीक है कि 2000 लीटर गौमूत्र से 75% अर्क निकलता है, जो देश की शीर्ष आयुर्वेदिक कंपनियों को सप्लाई होता है. इस स्वदेशी उत्पाद ने मांगीलाल को करोड़पति बनाया और उनके कारोबार का टर्नओवर आज करीब 12 करोड़ से भी अधिक है. बाड़मेर में गौधन अर्क का यह प्लांट राजस्थान के तीन चुनिंदा प्लांट्स में से एक है, और जोधपुर संभाग में एकमात्र है. अब तक यहां से 20 लाख लीटर से अधिक का गौधन अर्क का उत्पादन हो चुका है.
300 लोगों को मिला रोजगार
मांगीलाल की इस पहल ने ना सिर्फ आर्थिक क्रांति लाई, बल्कि रोजगार भी पैदा किया. उनके प्लांट में 300 लोग काम करते हैं, जो रोज़ाना 2000 लीटर गौमूत्र इकट्ठा करते हैं. यह गौमूत्र बाड़मेर की ढाणियों से एकत्रित किया जाता है, जिसे अत्याधुनिक तकनीक से गौधन अर्क में बदला जाता है. यह उत्पाद ना सिर्फ आयुर्वेदिक गुणों से भरपूर है, बल्कि मांगीलाल की मेहनत और लगन का प्रतीक भी है.
बाड़मेर के मांगीलाल बोथरा.
किसानों से खरीदते हैं गौमूत्र
मांगीलाल बताते हैं कि जो गांव से ही गोपालकों से गौमूत्र 4 रुपए प्रति लीटर के हिसाब से करीद लेते हैं, जिससे किसानों को भी फायदा हो जाता है. जब गाय दूध नहीं देती हैं तो उन्हें पालने के लिए किसानों को बड़ा चैलेंज होता है. गौमूत्र से ही गायों का खर्चा निकल जाता है. जब गाय दूध देती है तो किसान दूध के साथ गौमूत्र भी बेचकर अच्छा खासा कमा लेता है, उसकी आमदनी बढ़ जाती है.
एक प्रेरणा, एक मिसाल
मांगीलाल बोथरा की कहानी हर उस इंसान के लिए प्रेरणा है, जो यह सोचता है कि छोटे शहरों से बड़ी कामयाबी नहीं मिल सकती. विदेशी सामान की आलोचना को उन्होंने चुनौती में बदला और स्वदेशी के रास्ते पर चलकर ना सिर्फ आत्मनिर्भरता हासिल की, बल्कि देश भर में अपनी पहचान बनाई. आज उनकी यह सफलता ना केवल बाड़मेर, बल्कि पूरे राजस्थान के लिए गर्व का विषय है.
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