राजस्थान के कोटा में किसान मगरमच्छों के खतरे के साये में खेती करते हैं. ऐसी तस्वीर प्रदेश के कोटा जिले में सर्दी के इस मौसम में अक्सर दिखाई देती है, जहां खेतों की मुंडेर पर 12 से लेकर 15 फीट लंबे मगरमच्छ धूप सेकते नजर आते हैं. सूर्य उदय से लेकर सूर्यास्त तक इस तरह खेतों के किनारे यह लेटे रहते हैं. उनके इस तरह से नजर आने से घड़ियाल सेंचुरी चंबल नदी की सहायक नदी चंद्रलोई और उसके सहायक नालों के किनारे पर मगरमच्छ बड़े खतरे के रूप में दिखाई पड़ रहे हैं. दिसंबर महिने के ठंड वाले इन दिनों में धूप में तेजी है.
खेतों में पड़े रहते हैं मगरमच्छ
ऐसे में कोटा जिले की चंद्रलोई नदी किनारे और इसके सहायक रायपुरा नाले के किनारे गांव-गांव के किनारों के खेतों में मगरमच्छ इस तरह पड़े हुए नजर आ रहे हैं. रायपुरा, देवली अरब, हनुवंत खेड़ा, हाथी खेड़ा, मडनिया, खेड़ा रसूलपुर, चडिंदा, दसलाना, बोरखंडी, जगन्नाथपुरा अर्जुनपुरा, चंद्रेसल, राम खेडली, मानसगांव इन गांव में सबसे बड़ा खतरा मगरमच्छ है.
कुछ किसानों के दोस्त बन गए मगरमच्छ
किसानों का कहना है सर्दी के मौसम में मगरमच्छ पानी से ज्यादा जमीन के ऊपर धूप सेकते हुए दिखाई पड़ते हैं, और जिन किसानों के खेत नदी नालों के किनारे पर है. वहां खेती करना खतरे से खाली नहीं है. कई बार मगरमच्छों में मवेशियों को शिकार बनाया है, और कहीं बाहर ऐसी घटनाएं भी सामने एक इंसानों को भी मगरमच्छ ने शिकार बनाया है. कुछ किसानों के यह दोस्त बन गए, वो कहते हैं कि इनसे हमें कोई खतरा नहीं है, इनके पास जाते हैं तो यह नदी में चले जाते हैं.
धूम में खुद को गर्म करते हैं मगरमच्छ
विशेषज्ञों का कहना है कि मगरमच्छ रेप्टाइल जीव की श्रेणी में आते हैं. इनका खून ठंडा होता है. ऐसे में खुद को एक्टिव करने के लिए बाहरी वातावरण में खुद को लाकर धूप सेकते हैं, खुद को गर्म करते हैं. और इससे पाचन क्रिया इनकी ठीक रहती है, इसलिए मगरमच्छ ठंड वाले दिनों पानी से बाहर आकर धूप में लेटे नजर आते हैं. कैसे मगरमच्छों का डेरा जमा हुआ है.
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