दरगाह ख्वाजा साहब समिति के गठन पर दिल्ली हाईकोर्ट का निर्देश, तीन माह में पूरी हो प्रक्रिया

न्यायमूर्ति सच्चिन दत्ता की एकलपीठ ने कहा कि नई दरगाह समिति की नियुक्ति की प्रक्रिया लंबित नहीं रहनी चाहिए और इसे अधिनियम में वर्णित नियमों के अनुरूप यथासंभव शीघ्र, अधिमानतः तीन माह के भीतर पूरी की जाए.

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फाइल फोटो.

दिल्ली उच्च न्यायालय ने दरगाह ख़्वाजा साहब (अजमेर) के प्रबंधन से जुड़ी याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि दरगाह समिति का गठन दरगाह ख्‍वाजा साहब अधिनियम, 1955 के प्रावधानों के अनुसार शीघ्र किया जाए. अदालत में यह दलील दी गई कि पूर्व समिति का कार्यकाल सीसीटीवी विवाद पर अदालत की स्पष्टता , गर्भगृह के भीतर नहीं हो रही रिकॉर्डिंग. वर्ष 2022 में समाप्त हो चुका है, जबकि नई समिति का गठन अब तक नहीं किया गया, जिससे दरगाह प्रबंधन और संचालन प्रभावित हो रहा है.

सलाहकार समिति का गठन भी जरूरी

याचिकाकर्ता सैयद मेहराज मियां की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता शादान फरासत ने तर्क दिया कि दरगाह अधिनियम की धारा 4 और 6 के तहत समिति गठन अनिवार्य है, और प्रत्येक सदस्य का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है. साथ ही, धारा 10 में नाजिम को उनके कार्यों के निर्वहन और सलाह देने के लिए सलाहकार समिति का गठन भी आवश्यक बताया गया है, जो कई वर्षों से लंबित है. इस पर कोर्ट ने केंद्र सरकार के स्थायी अधिवक्ता अमित तिवारी से जवाब मांगा. उन्होंने अदालत को आश्वस्त किया कि मंत्रालय द्वारा नियुक्ति प्रक्रिया वैधानिक प्रावधानों के अनुरूप विचाराधीन है, और शीघ्र पूरी की जाएगी. अदालत ने इस प्रक्रिया को तेजी से आगे बढ़ाने के निर्देश दिए.

CCTV विवाद पर अदालत की स्पष्टता

याचिका में यह भी आरोप लगाया गया था कि दरगाह के गर्भगृह (अस्ताना शरीफ़) में सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं, जो श्रद्धालुओं की निजता और धार्मिक आस्था का उल्लंघन करते हैं. इस पर केंद्र सरकार के वकील ने स्पष्ट किया कि सीसीटीवी केवल सार्वजनिक पहुंच वाले क्षेत्रों में लगाए गए हैं, गर्भगृह के भीतर कोई कैमरा नहीं है. कैमरे केवल उन मार्गों और स्थानों पर स्थापित हैं जो गर्भगृह तक पहुंचने के रास्ते हैं, ताकि सुरक्षा और चोरी जैसी घटनाओं पर नियंत्रण रखा जा सके.

"गर्भगृह के भीतर की रिकॉर्डिंग नहीं की जाएगी" 

अदालत ने कहा कि चूंकि यह सुरक्षा ऑडिट के आधार पर की गई व्यवस्था है, इसलिए इसमें न्यायालय के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है. हालांकि अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया कि किसी भी स्थिति में गर्भगृह के भीतर की रिकॉर्डिंग नहीं की जाएगी. याचिका का निस्तारण करते हुए न्यायालय ने कहा कि यदि भविष्य में कोई नया कारण उत्पन्न होता है, तो याचिकाकर्ता नई कार्यवाही शुरू कर सकता है.

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