Diwali 2024: मेरियू, मांडना और बर्नाटी; इन अनूठी परंपराओं के साथ राजस्थान में मनाई जाती है दिवाली

Diwali Celebration: दीपावली की पूर्व संध्या पर डीडवाना में मांडना यानी रंगोली की परंपरा मनाई जाती है. इस दिन महिलाएं और युवतियां अपने-अपने व्यापारिक प्रतिष्ठानों पर आती हैं और आकर्षक रंगोलियों से दुकानों को सजाती हैं. खास बात यह है कि दीवाली के एक दिन पहले महिलाओं का बाजार में आकर रंगोली बनाने की यह परंपरा पूरे भारत मे सिर्फ डीडवाना में ही मनाई जाती है.

विज्ञापन
Read Time: 4 mins

Diwali 2024: देशभर में दीपोत्सव की धूम है. राजस्थान में भी दीपावली मनाने की अनोखी परम्पराएं हैं. इस मौके पर डीडवाना में भी सदियों से मांडणा (रंगोली) प्रथा चली आ रही है. इस मौके पर शहर की महिलाएं व्यापारिक प्रतिष्ठानो पर मांडने बनाती हैं. दीपावली की पूर्व संध्या पर डीडवाना (Didwana) में मांडना यानी रंगोली की परंपरा मनाई जाती है. इस दिन महिलाएं और युवतियां अपने-अपने व्यापारिक प्रतिष्ठानों पर आती हैं और आकर्षक रंगोलियों से दुकानों को सजाती हैं. खास बात यह है कि दिवाली (Diwali) के एक दिन पहले महिलाओं का बाजार में आकर रंगोली बनाने की यह परंपरा पूरे भारत मे सिर्फ डीडवाना में ही मनाई जाती है. इसके अलावा इंदौर और कलकत्ता जैसे शहरों में रहने वाले यहां के प्रवासियो के इलाको में भी यह परंपरा निभाई जाती है. ऐसा माना जाता है कि इससे व्यापार मे समृद्धि आती है.

पीली मिट्टी और गोबर से बनाया जाते हैं मांडने

इसके लिए किसी केमिकल या रंग का उपयोग नहीं किया जाता, बल्कि पीली मिट्टी एवं गोबर का इस्तेमाल किया जाता है. महिलाएं पहले पीली मिट्टी और गोबर से आंगन को लिपती है, फिर उस पर चूना और गेरू से कलात्मक मांडने बनाती हैं. इस परंपरा का असल मकसद यही है कि पुराने दौर मे महिलाओ को पुरूषों के बराबर समझने के लिए इस परंपरा की शुरूआत की गई. इसके चलते महिलाएं इस परंपरा से जुड़कर खुद को गौरवान्वित महसूस करती हैं.

Advertisement

जानिए वागड़ की मेरियू परंपरा के बारे में 

जनजाति बाहुल्य क्षेत्र वागड़ के बांसवाड़ा और डूंगरपुर जिले में ऐसे कई आयोजन होते हैं, जो बेहद अनूठे हैं. एक ऐसी ही सदियों से चली आ रही परंपरा है- मेरियू. यह परंपरा नव विवाहित जोड़ों के लिए होती है. इसका संदेश है कि समाज मे एकजुटता और समरसता रहे, साथ ही नव विवाहितों को आशीर्वाद देना. यह मेह और रियू से मिलकर बना है. मेह यानी बारिश और रियू मतलब थम गई. यह बारिश का मौसम जाने का सूचक है. मेरियू मशाल का ही एक अलग रूप है. मेरीयू बनाने के लिए गन्ने के छोटे टुकड़े करते हैं. फिर सूखा नारियल लेकर उसके पैंदे में छेद कर गन्ने को ऊपरी हिस्से में लगाया जाता है. इन दोनों को गोबर से लीप कर सुखाते हैं. इसके बाद मेरीयू में रुई की बत्ती लगा कर तेल भर कर जलाया जाता है. इसे बनाने में नारियल के अलावा मिट्टी के दीपक का उपयोग भी होता है.

Advertisement

जब नव विवाहित दूल्हा अपने घर की चौखट पर खड़ा होता है, जिसके हाथ में मेरियू होता है. इनके पास ही दुल्हन खड़ी होती है. पड़ोसी, रिश्तेदार, घर के सदस्य तेल लेकर आते हैं और फिर दुल्हन को देते हैं. दुल्हन मेरियू में तेल डालती है. बाद में सभी महिलाएं भगवान राम के आगमन के गीत गाती हैं. इसके पीछे वजह है कि दूल्हा-दुल्हन का जीवन प्रकाशित रहे. दुल्हन द्वारा मेरीयू में तेल डालने का मतलब है की दोनों जीवन को सफल बनाने में एक दूसरे के पूरक बना रहे.

Advertisement

बीकानेर के बारह गुवाड़ में खेला गया बर्नाटी का खेल

बीकानेर में रियासत काल से दीपावली के मौके पर हर साल खेला जाने वाला बरनाटी नाम का खेल भी राजस्थान की विविध परंपराओं में से एक है. दीपावली से एक दिन पहले खेला जाने वाला यह खेल बीकानेर के भीतरी क्षेत्र बारह गुवाड़ में तक़रीबन 200 वर्षों से खेला जा रहा है. यह खेल बंगाल से आया, जिसे काफी समय से परंपरा के तौर पर खेला जा रहा है. इस खेल यानी बरनाटी को खेलने के लिए लकड़ी के दोनों और लोहे की पथरी लगाकर उसमें कपड़ा से बाती बनाई जाती है और दोनों तरफ आग लगाकर इस खेल को खेला जाता है. दीपावली से एक दिन पहले रात के समय इस खेल का प्रदर्शन किया जाता है. इसमें पहले पुरुष ही हिस्सा लिया करते थे, लेकिन बदलते दौर के साथ लड़कियां, बच्चे और बुजुर्ग भी इस खेल को खेलने लगे.

यह भी पढ़ेंः प्रदूषण के मामले में दिल्ली ही नहीं, राजस्थान में भी बुरे हैं हालात; जयपुर और भिवाड़ी में AQI 300 पार

Topics mentioned in this article