Centuries Old Tradition of Doli Village: बदलते जमाने और विज्ञान के इस दौर में आज भी एक गांव ऐसा है जहां विज्ञान पर आस्था भारी है. ये कहानी है जोधपुर से करीब 20 किलोमीटर दूर जोधपुर बाड़मेर हाईवे के नजदीक डोली गांव की. जहां गांव में रहने वाले लोग आज भी दो मंजिल का मकान नहीं बनाते हैं, ना ही ज्वेलरी का काम करने वाले ज्वेलर्स रात के समय इस गांव में रुकते हैं. इतना ही नहीं इस गांव में कच्चा तेल निकालने वाले तेल की कोई घाणी भी नहीं लगती है. यह कहानी करीब 200 साल पुरानी है, जिसे लोग आज भी उसी आस्था के साथ निभा रहे हैं.
क्या है इस मान्यता के पीछे की वजह
ग्रामीणों ने बताया कि आज से 200 साल पहले इस गांव में हरिराम बैरागी महाराज तपस्या किया करते थे. उन्होंने अपनी तपस्या स्थल के समय एक सूखी लकड़ी की डंडी को लगाया था जो खेजड़ी के वृक्ष के तौर पर आज भी गांव में मौजूद है. उन्होंने ही ग्रामीणों को गांव के चारों तरफ कच्चे दूध और सूखे नारियल की ज्योत के साथ गोल घेरा बनाकर आरती करने की सलाह दी थी. मान्यता है कि ऐसा करने की वजह से ही गांव में कोई संकट नहीं आया. कोरोना महामारी के समय में भी इस गांव में कोई आपदा नहीं हुई थी.
गांव में नहीं बनता 2 मंजिला मकान
उस समय संत ने जिस जगह पर लकड़ी का डंडा रोपा था, वहां पर खेजड़ी का एक बड़ा वृक्ष हो गया. पूरे गांव में संत के प्रति आस्था की वजह से कोई भी व्यक्ति दो मंजिल का मकान नहीं बनाता है. इसी कहानी को जानने के लिए एनडीटीवी की टीम डोली गांव में पहुंची तो ग्रामीणों ने अपनी आस्था के बारे में बताया.
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