हर रामनवमी रामलला के माथे पर सजेगा विशेष 'सूर्य तिलक', सूर्य की किरणों से चमक उठेगी दिव्य प्रतिमा

Ramlala Idol of Ayodhya Ram Temple: सीबीआरआई के वैज्ञानिकों की एक टीम ने सूर्य तिलक मैकेनिज्म को इस तरह से डिजाइन किया है कि हर राम नवमी के दिन दोपहर 12 बजे करीब छह मिनट तक सूर्य की किरणें भगवान राम की मूर्ति के माथे पर पड़ेंगी.

विज्ञापन
Read Time: 18 mins
रामलला प्रतिमा

Special 'Surya Tilak: अयोध्या में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा अनुष्ठान (Ayodhya Ram Temple Consecration Ceremony) को महज 1 दिन शेष है. रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह को लेकर देश और दुनिया में धूम है. अयोध्या ही नहीं, पूरे देश में दीवाली जैसा माहौल है. अयोध्या राम मंदिर में स्थापित हुई रामलला की दिव्य मूर्ति को लेकर जहां लोगों में कौतुहल है.

रामलला की मूर्ति को दिव्यता को व्यापक रूप देने के लिए वैज्ञानिकों ने उनके माथे पर 'सूर्य तिलक' लगाने के लिए एक खास उपकरण तैयार किया है. यह सूर्य तिलक हर साल रामनवमी के अवसर पर रामलला के माथे पर सजेगा. 

रामलला के माथे पर यह विशेष 'सूर्य तिलक' प्रत्येक रामनवमी यानी भगवान राम के जन्मदिन पर उनके माथे पर सजेगा. एक प्रमुख सरकारी संस्थान के वैज्ञानिकों द्वारा मिरर और लेंस से तैयार किए गए इस उपकरण से राम नवमी के दिन दोपहर में सूर्य की किरणें सीधे 'रामलला' की मूर्ति के माथे पर पड़ेंगी. इसे आधिकारिक तौर पर 'सूर्य तिलक मैकेनिज्म' कहा जा रहा है. हालांकि इसे सटीकता के साथ तैयार करना और स्थापित करना विज्ञान और इंजीनियरिंग की चुनौती थी.

रूड़की में स्थित सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (CBRI) के डायरेक्टर डॉ प्रदीप कुमार रामनचरला का कहना है कि, 'जब पूरे मंदिर का निर्माण हो जाएगा तो सूर्य तिलक मैकेनिज्म पूरी तरह से चालू हो जाएगा.'

देश का प्रमुख संस्थान सीबीआरआई वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) का भी हिस्सा है. डॉ रमनचरला ने कहा कि, फिलहाल सिर्फ पहली मंजिल तक का स्ट्रक्चर ही बनाया गया है. गर्भ गृह और ग्राउंड फ्लोर में लगाए जाने वाले सभी उपकरण पूरे बन चुके हैं.'

सीबीआरआई के वैज्ञानिकों की एक टीम ने सूर्य तिलक मैकेनिज्म को इस तरह से डिजाइन किया है कि हर राम नवमी के दिन दोपहर 12 बजे करीब छह मिनट तक सूर्य की किरणें भगवान राम की मूर्ति के माथे पर पड़ेंगी.

विशेष 'सूर्य तिलक' के निर्माण में सूर्य के पथ को लेकर तकनीकी मदद बेंगलुरु के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स (IIA) से ली गई है. बेंगलुरु की एक कंपनी ऑप्टिका ने लेंस और ब्रास ट्यूब का निर्माण किया है. इस डिवाइस का निर्माण और इंस्टालेशन ऑप्टिका के एमडी राजेंद्र कोटारिया द्वारा किया जाएगा. सीबीआरआई की टीम का नेतृत्व डॉ एसके पाणिग्रही के साथ डॉ आरएस बिष्ट, कांति लाल सोलंकी, वी चक्रधर, दिनेश और समीर कर रहे हैं.

Advertisement
एक गियरबॉक्स, रिफ्लेक्टिव मिरर और लेंस की व्यवस्था इस तरह की गई है कि मंदिर के शिखर के पास तीसरी मंजिल से सूर्य की किरणों को गर्भ गृह तक लाया जाएगा. इसमें सूर्य के पथ बदलने के सिद्धांतों का उपयोग किया जाएगा.

दरअसल, राम नवमी की तारीख चंद्र कैलेंडर द्वारा निर्धारित होती है, इसलिए यह सुनिश्चित करने के लिए कि शुभ अभिषेक निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार हो, 19 गियर की विशेष व्यवस्था की गई है. डॉ चौहान का कहना है कि, ''गियर-बेस्ड सूर्य तिलक मैकेनिज्म में बिजली, बैटरी या लोहे का उपयोग नहीं किया गया है.'

अयोध्या के राम मंदिर की डिजाइन में मदद करने वाले सीबीआरआई के साइंटिस्ट डॉ प्रदीप चौहान का दावा है कि, ''शत प्रतिशत सूर्य तिलक राम लला की मूर्ति के माथे पर अभिषेक करेगा.''

एस्ट्रोनॉमी के क्षेत्र में भारत के प्रमुख संस्थान इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स (IIA) ने चंद्र व सौर (ग्रेगोरियन) कैलेंडरों के बीच जटिलतापूर्ण अंतर के कारण आने वाली समस्या का समाधान किया है. IIA की डायरेक्टर डॉ अन्नपूर्णी सुब्रमण्यम का कहना है कि, ''हमारे पास पोजीशनल एस्ट्रोनॉमी के लिए जरूरी विशेषज्ञता है. इस डोमेन नॉलेज का ट्रांसलेशन किया गया ताकि सूर्य तिलक के रूप में सूर्य की किरणें हर राम नवमी पर रामलला की मूर्ति का अभिषेक कर सकें.'

Advertisement
राम मंदिर के समान ही सूर्य तिलक मैकेनिज्म का उपयोग पहले से ही कुछ जैन मंदिरों और कोणार्क के सूर्य मंदिर में किया जा रहा है, हालांकि उनमें अलग तरह की इंजीनियरिंग का प्रयोग किया गया है.

आईआईए को ऑप्टिक्स में भी विशेषज्ञता हासिल है. उसने भारत की कुछ बेहतरीन दूरबीनों को डिजाइन किया है. पेरिस्कोप जैसी डिवाइस से बंद गर्भ गृह में सूरज की किरणें लाने के लिए इस संस्थान के कौशल का उपयोग किया गया है. डॉ सुब्रमण्यम कहती हैं कि, "यह एक दिलचस्प वैज्ञानिक प्रयोग था जिसमें दो कैलेंडरों के 19 साल के रिपीट साइकल ने समस्या को हल करने में मदद की."

राम मंदिर में भले ही सूर्य की किरणों को राम लला की मूर्ति के माथे तक लाया जाना संभव होगा, लेकिन सौर ऊर्जा पैनलों का उपयोग करके बिजली पैदा करने व राम मंदिर परिसर को हरा-भरा व नेट-जीरो के करीब बनाने का एक और महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट अमल में नहीं लाया जा सका.

श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष नृपेंद्र मिश्रा ने बताया कि, ''बड़ी संख्या में बंदरों की मौजूदगी के कारण सौर ऊर्जा परियोजना को छोड़ना पड़ा.'' वे कहते हैं कि, "वहां बहुत सारे बंदर हैं और वे सभी पूजनीय हैं. उन्होंने खुले सौर पैनलों को नुकसान पहुंचाया होगा."

Advertisement

ये भी पढ़ें-राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोहः मंदिर प्रांगण में 81 कलशों की हुई स्थापना, आज का अनुष्ठान संपन्न