Rajasthan News: एक तरफ जहां जाट समाज आरक्षण (Jat Andolan) दिए जाने को लेकर आंदोलन की राह पर है, वहीं दूसरी तरफ बीकानेर में कोलायत यानी 'मगरा के शेर' कहे जाने वाले देवी सिंह भाटी (Devi Singh Bhati) भी अब फिर से फॉर्म में आने लगे हैं. देवी सिंह भाटी ने केन्द्रीय सेवाओं में भी ईडब्ल्यूएस आरक्षण (EWS Reservation) लागू किए जाने की मांग की है. उनका कहना है कि केन्द्र में पहले से भाजपा की सरकार है और अब राज्य में भी पार्टी की सरकार बन गई है तो दोनों सरकारों को इस पर विचार करना चाहिए.
वरिष्ठ नेताओं के पाले में गेंद
बीकानेर के कोलायत विधानसभा क्षेत्र से 7 बात विधायक रहे देवी सिंह भाटी लंबे समय से बीजेपी से बाहर थे और हालिया विधानसभा चुनावों से ऐन पहले उनकी फिर से पार्टी में एंट्री हुई है. लेकिन महर्षि कपिल की भूमि कोलायत से भाजपा ने उनके पोते अंशुमान सिंह को चुनाव में उतारा और सीट अपने नाम कर ली. पोते के एमएलए बनते ही मगरा के इस शेर की दहाड़ फिर से सुनाई देने लगी है. बीकानेर के बड़े जनाधार वाले नेताओं में शुमार देवी सिंह भाटी ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण केन्द्रीय सेवाओं में भी दिए जाने की मांग कर के नया शगूफा छोड़ दिया है और गेंद वरिष्ठ नेताओं के पाले में डाल दी है. इसके पीछे भी कई निहितार्थ छुपे हो सकते हैं.
मेघवाल से 36 का आंकड़ा
लम्बे समय तक भाटी का केंद्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल से छत्तीस का आंकड़ा रहा है और हालिया चुनावों दोनों ने गले मिल कर रिश्तों की कड़वाहट को दूर किया है. दूसरा निहितार्थ बीकानेर से एक मात्र एमएलए सुमित गोदारा को मंत्रीमंडल में शामिल किया जाना और उस मंत्री का भी जाट समाज से होना. भाटी का कहना है की लंबे संघर्ष के बाद ईडब्ल्यूएस के लिए रिजर्वेशन हासिल हुआ है. ये राज्यों में तो लागू कर दिया गया है, लेकिन केन्द्रीय सेवाओं में अभी इसे पूरी तरह से लागू नहीं किया गया है जिसके कारण ईडब्ल्यूएस वर्ग में आने वाले लोगों को नुकसान उठाना पड़ रहा है. हालांकि ईडब्ल्यूएस के बहाने देवी सिंह भाटी का निशाना कहीं और भी हो सकता है.
जाट समाज ने दी है चेतावनी
गौरतलब है कि आरक्षण का जिन्न समय समय पर बाहर आता रहा है और राजनैतिक पार्टियां और नेता अपने फायदे के लिए इस शब्द का इस्तेमाल करते रहते हैं. जाट समाज भी अपने लिए अलग से आरक्षण दिए जाने की मांग लिए उठ खड़ा हुआ है. जाट समाज ने तो आंदोलन की चेतावनी भी दे दी है. हालांकि बीकानेर और आसपास के इलाकों में अभी इसका असर देखने को नहीं मिल रहा है. लेकिन आंदोलन के गति पकड़ने पर असर इधर भी देखने को मिल सकता है. ऐसा नजारा राजस्थान गुर्जर आंदोलन के वक्त देख चुका है जब सारे हाईवे और रेल पटरियां जाम कर दी गई थी.
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