राजसमंद में गोपाष्टमी पर पाड़ों-बिजारों की रोमांचक भिड़ंत, सदियों पुरानी परंपरा को देखने उमड़ेंगे लोग

Gopashtmi: राजसमंद जिले के नाथद्वारा स्थित श्रीनाथजी मंदिर में गोपाष्टमी पर पाड़ों और बिजारों की रोमांचक भिड़ंत कराई जाएगी. जिसे देख कर लोग दांतों तले ऊंगली दबा लेंगे. यह भिड़ंत हर साल आकर्षण का मुख्य केंद्र रहती है.

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नाथद्वारा में पिछले साल हुआ पाड़ों और बिजारों की भिड़ंत
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Shreenath ji Temple Gopashtami: राजस्थान के जिले राजसमंद जिले में कार्तिक शुक्ल पक्ष की अष्टमी को गोपाष्टमी का पर्व उत्साह और अनूठी परंपराओं के साथ मनाया जा रहा है. जिले के नाथद्वारा स्थित श्रीनाथजी मंदिर में भी इस दिन विशिष्ट सेवा प्रणाली का आयोजन किया जाएगा, वहीं दूसरी ओर श्रीनाथजी  में ही शाम के समय पाड़ों (भैंसे के बच्चे) और बिजारों (विशेष बैल) की रोमांचक भिड़ंत कराई जाएगी. जिसे देख कर लोग दांतों तले ऊंगली दबा लेंगे.

गोपाष्टमी पर पाड़ों-बिजन की अनोखी भिड़ंत

नाथद्वारा में गोपाष्टमी पर यह भिड़ंत आकर्षण का मुख्य केंद्र रहती है. राजसमंद में यह आयोजन केवल साल में एक ही बार होता है. इसे देखने के लिए लोग दूर दराज से यहां आते है. और श्रीनाथ जी की गायों के दर्शन करते है. इस दिन नाथद्वारा स्थित श्रीनाथजी मंदिर की नाथूवास मुख्य गोशाला में देर शाम बिजारों एवं पाड़ों का विशेष प्रदर्शन किया जाता है और साथ ही गोमाता को रिझाया जाता है.

शाम को होती है रोमांचक भिड़ंत

भिड़ंत के समय गोशाला में एक-एक करके पाड़ों और बिजारों को बाहर लाकर उन्हें आपस में भिड़ाया जाता है. उनके इस करतब को देख हजारों की संख्या में उपस्थित लोग दांतों तले उंगली दबाते हुए  नजर आते है. पिछले साल में ऐसा ही नजारा देखने को मिला था.  स्थानीय लोगों का मानना है कि इस दौड़ में शामिल होने वाले पशुओं को विशेष रूप से तैयार किया जाता है, और यह आयोजन उनके पशुधन के स्वास्थ्य और समृद्धि को सुनिश्चित करता है.

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 श्रीनाथजी मंदिर में विशेष सेवा

वही दूसरी तरफ, गोपाष्टमी के उपलक्ष्य में श्रीनाथजी मंदिर में विशिष्ट सेवा प्रणाली का आयोजन भी किया जाएगा, जिसके तहत प्रभु को मुकुट काछनी श्रृंगार धारण कराया जाएगा. श्रीनाथजी को विशेष गहरे नीले रंग की चोली और **पीताम्बरी (लाल दरियाई वस्त्र) पहनाई जाएगी. मंदिर के सभी द्वारों पर मढ़े और बंदनवार बांधे जाएंगे. इसके अलावा राजभोग और आरती के समय थाली की विशेष आरती की जाएगी. इसके बाद संध्या आरती के बाद  श्रीनाथजी जी के हाथों में छोटा वेत्र (छड़ी) धारण कराई जाएगी. इसके बाद गायों को नगर भ्रमण के लिए छोड़ा गया. साथ ही, गोपाष्टमी के दिन से ही प्रभु के भोग में गन्ने का रस अरोगने की शुरुआत भी हो गई.

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