राजस्थान में सरकारी कर्मचारियों का भी होगा ड्रेस कोड! बिजली विभाग में 'जींस-टीशर्ट' तो छोड़िये कैजुअल ड्रेस पर भी पाबंदी

राजस्थान के बिजली विभाग के द्वारा एक आदेश जारी किया गया है. जिसमें कहा गया है कि अधिकारी और कर्मचारी ड्रेस कोड में ही दफ्तर आएं.

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राजस्थान में ड्रेस कोड

Rajasthan News: राजस्थान में बीजेपी की सरकार बनने के बाद से ड्रेस कोड को लेकर काफी फजीहत हो रही है. जहां एक ओर स्कूल में ड्रेस कोड को लेकर खूब हंगामा हुआ है. वहीं दूसरी ओर अब सरकारी कर्मचारियों पर भी ड्रेस कोड लागू करने की बात सामने आ रही है. जिसमें राजस्थान के बिजली विभाग के द्वारा एक आदेश जारी किया गया है. जिसमें कहा गया है कि अधिकारी और कर्मचारी ड्रेस कोड में ही दफ्तर आएं. यानी इन कर्मचारियों को अब दफ्तर में 'जींस-टीशर्ट' तो छोड़िये कैजुअल ड्रेस पर भी पाबंदी लगा दी गई है. हालांकि, इस नियम का विरोध किया जा रहा और कहा जा रहा है कि पहले पैसा बढ़ाया जाए फिर ड्रेस कोड लागू किया जाए. जबकि चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों को वर्दी भत्ता नहीं दिया जाता है.

क्या दिया गया है आदेश  

राजस्थान राज्य विद्युत प्रसारण निगम लिमिटेड के सचिव (प्रशासन) आनंदी लाल वैष्णव की ओर से लिखित आदेश जारी किया गया है. जिसमें साफ तौर पर लिखा गया है कि निगम के दफ्तरों में कई कर्मचारी-अधिकारी सही ड्रेस में नहीं आते हैं. वह कैजुअल ड्रेस पहनकर ऑफिस आते हैं. एक सरकारी विभाग के प्रोटोकॉल के तहत कर्मचारी जब भी दफ्तर या फील्ड में जाएं. उस वक्त फॉर्मल, साफ सुथरे और डीसेंट कपड़ों में नजर आना जरूरी है. सरकारी दफ्तरों में कैजुअल ड्रेस पहनकर आना पूरी तरह से प्रतिबंधित है.

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इसमें कहा गया है कि कुछ निगम अधिकारी और कर्मचारी अपने ड्रेस के बजाए जींस-टीशर्ट, कैजुअल ड्रेस और चप्पल पहन कर आते हैं. यह पूरी तरह से प्रोटोकॉल के खिलाफ है. जो भी अधिकारी और कर्मचारी अपनी ड्यूटी टाइम पर दफ्तर इस तरह के कपड़े पहन रहे हैं वह अब अपने वर्दी में होना चाहिए.

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निगम की ओर से एक और आदेश जारी कर ड्राइवर, चतुर्थ श्रेणी और तकनीकी कर्मचारियों को भी निर्धारित वर्दी में आने के लिए कहा गया है.

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चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी कर रहे विरोध

इस आदेश का चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी विरोध कर रहे हैं. यूनियन का कहना है कि ड्रेस कोड लागू करना नाइंसाफी है. वर्दी का पैसा केवल तकनीकी कर्मचारियों को मिलता है. जबकि ड्राइवर और अन्य कर्मचारियों को नहीं मिलता है. वहीं जिन्हें भत्ता मिलता है वह भी काफी कम है. वर्दी के लिए केवल 2000 रुपये मिलते हैं जबकि महिलाओं को 2200 रुपये दिये जाते हैं. लेकिन इतने पैसे में न ही ड्रेस बन पाती है और न ही धुलाई हो पाती है. ऐसे में रोजाना ड्रेस पहनकर आना संभव नहीं है. उनकी मांग है कि ड्रेस के लिए कम से कम 6 हजार रुपये मिले. जबकि पुलिस को जैसे धुलाई का पैसा अलग से मिलता है हमें भी धुलाई का पैसा अलग से मिलना चाहिए. ऐसे में पहले पैसे बढ़ाएं और फिर ड्रेस कोड लागू करें.

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