Rajasthan Politics: हनुमान बेनीवाल खुद परिवारवाद का सबसे बड़ा उदाहरण, ज्योति मिर्धा बोलीं- बेनीवाल अपनी अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे

Rajasthan Politics: ज्योति मिर्धा ने हनुमान बेनीवाल पर निशाना साधा. उन्होंने कहा अभी बेनीवाल की स्थिति लिक्विड ऑक्सीजन की तरह हो गई है, लिक्विड ऑक्सीजन जीने नहीं देता उनकी स्थिति ऐसी हो रखी है. 

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Rajasthan Politics: जयपुर में कांग्रेस के जिला अध्यक्ष सहित कई पदाधिकारी बीजेपी में शामिल हुए. ज्योति मिर्धा ने NDTV से खास बातचीत की. इस दौरान उन्होंने कहा कि हनुमान बेनीवाल ख़ुद परिवाद का सबसे बड़ा उदाहरण हैं. उन्होंने कहा कि खींवसर विधानसभा सीट पर बीजेपी के प्रत्याशी चुनाव जीतेंगे. ज्योति मिर्धा ने कहा, "खींवसर सीट पर आकांक्षी लोग बहुत थे. लेकिन, कहीं पर भी विरोध नहीं देखने को मिला है." 

"हम टीमवर्क के हिसाब से चुनाव लड़ रहे हैं"

RLP सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल के सवाल को लेकर ज्योति मिर्धा ने कहा, "हनुमान बेनीवाल केवल अपनी अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं. जबकि, हम टीमवर्क के हिसाब से चुनाव लड़ रहे हैं. हनुमान बेनीवाल ने हमेशा कांग्रेस और बीजेपी पर परिवारवाद को बढ़ावा देने के आरोप लगाए हैं. हनुमान बेनीवाल हमेशा कहते हैं कि हम किसान मजदूर और युवा की आवाज उठाते हैं तो उन्हें 7 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारने चाहिए. लेकिन, पार्टी ने केवल खींवसर सीट पर ही प्रत्याशी बनाया है, इससे वे स्वयं बता चुके हैं कि पार्टी का ग्राफ काफी डाऊन जा चुका है. 

खींवसर से हनुमान ने पत्नी को दिया टिकट  

खींवसर विधानसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी रतन चौधरी, बीजेपी से रवंत राम डांगा और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी से कनिका बेनीवाल जो हनुमान बेनीवाल की पत्नी है. इन तीनों के बीच कड़ा त्रिकोणीय मुकाबला होने वाला है. खींवसर विधानसभा सीट हॉट सीट मानी जा रही है. यहां कांग्रेस-बीजेपी के अलावा राष्ट्रीय लोकतांत्रित पार्टी (RLP) के प्रत्याशी मैदान में हैं. यह सीट RLP के हनुमान बेनीवाल के सांसद बनने के बाद खाली हुआ है तो पार्टी के लिए जीत प्रतिष्ठा से जुड़ी हुई है.

47 साल पुरानी विरासत 

हनुमान बेनीवाल राजनीतिक घराने से आते हैं और उनकी यह विरासत 47 साल पुरानी है. बेनीवाल के पिता रामदेव बेनीवाल दो बार विधायक रहे हैं. 1977 में रामदेव बेनीवाल ने मुंडावा सीट से कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा चुनाव जीता और बाद में 1985 में वो लोकदल से विधायक रहे. 2008 में परिसीमन के बाद इस सीट को खींवसर विधानसभा सीट बना दिया गया और बेनीवाल भारतीय जनता पार्टी के चुनाव चिन्ह पर जीत कर पहले बार विधानसभा पहुंचे थे. 

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प्रासंगिक बने रहने का हुनर 

अपने पिता की तरह हनुमान बेनीवाल में भी प्रासंगिक बने रहने के लिए 'किसी के भी साथ चले जाने' का हुनर है. 2008 में पहली बार विधायक बने बेनीवाल की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से सियासी लड़ाई चलती रही, जिसके बाद उन्हें 2013 में भाजपा से निष्काषित कर दिया गया था. उसके बाद उन्होंने खींवसर से निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की थी. 

2018 में RLD से लड़ा चुनाव 

राजस्थान में 2018 का विधानसभा चुनाव उन्होंने अपनी अलग पार्टी- राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी- बना कर लड़ा और शानदार परफॉरमेंस के साथ 3 विधायक जीत कर विधानसभा में पहुंचे. 2019 के लोकसभा चुनाव में बेनीवाल ने एक बार फिर भाजपा से गठबंधन कर लिया और नागौर से सांसद बन गए, लेकिन अगले ही साल 2020 में किसान आंदोलन को समर्थन देते हुए NDA से अलग हो गए. 

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2023 में हुनमान मात्र 2 हजार वोटों से जीत दर्ज की

2023 के विधानसभा चुनाव में बेनीवाल की पार्टी ने फिर से विधानसभा चुनाव में हिस्सा लिया, लेकिन इस बार स्थिति इतनी बेहतर नहीं थी. हनुमान बेनीवाल खुद खींवसर से बमुश्किल 2000 वोटों से जीत सके. हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनाव उन्होंने INDIA गठबंधन के बैनर तले लड़ा और जीता भी. लेकिन सियासत के जानकार मानते हैं कि बेनीवाल की विधानसभा चुनाव में कड़ी टक्कर वाली जीत उपचुनाव में कहीं उन पर भारी न पड़ जाये.

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