Kirodi Lal Meena: पूर्वी राजस्थान और आदिवासी वोट बैंक के लिहाज से कितने महत्वपूर्ण हैं किरोड़ी लाल मीणा?

आदिवासी मीणा समुदाय में किरोड़ी लाल मीणा की गहरी पैठ है और लम्बे समय तक वो मीणा समुदाय के स्वीकार्य नेता रहे हैं. हालांकि बाद के दौर में उन्हें चुनौती मिलती रही.

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राजस्थान सरकार के कृषि मंत्री किरोड़ी लाल मीणा ने आखिरकार अपने पद से इस्तीफ़ा देने का एलान कर ही दिया. उन्होंने कहा, "मुझसे मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने इस्तीफा देने से मना किया था लेकिन मैं मंत्री पद से इस्तीफा दे चुका हूं'. उसके बाद सोशल मीडिया मंच 'एक्स' पर उन्होंने रामचरितमानस की यह पंक्ति लिखी -   'रघुकुल रीति सदा चलि आई। प्राण जाई पर बचन न जाई।'. 

2023 के दिसंबर महीने में जब राजस्थान में भाजपा सरकार सत्ता में आई थी तो उन्हें कृषि मंत्री बनाया गया था, हालांकि सियासी हलकों में इस बात की चर्चा भी खूब हुई कि उन्हें उनके 'कद' के हिसाब से पद नहीं मिला. 

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किरोड़ी लाल मीणा के इस इस्तीफे को लोकसभा चुनाव से पहले दिए गए उनके बयानों से जोड़ कर देखा जा रहा है. जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर सात लोकसभा सीटों पर भाजपा नहीं जीतती तो वो मंत्री पद से इस्तीफा दे देंगे. वो सीटें 7 सीटें भरतपुर, धौलपुर-करौली, अलवर, जयपुर ग्रामीण, दौसा, टोंक-सवाई माधोपुर और झालावाड़ थीं. किरोड़ी ने दावा किया था कि उन्हें इन सीटों पर जीत की जिम्मेदारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दी थी.

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लेकिन चार जून को आये लोकसभा नतीजों में भाजपा को इन 7 सीटों में से 4 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था.

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हालांकि सवाल यह भी है कि क्या किरोड़ी लाल मीणा के इस्तीफे की इकलौती यही वजह है? क्योंकि सरकार बनने के बाद वो कई मुद्दों पर मुखर होकर बोल चुके हैं. भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों पर मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को पत्र लिख चुके हैं. उनके इस्तीफे के बाद पूर्वी राजस्थान में एक नया सियासी तूफ़ान खड़ा हो सकता है जिसका ज्यादा असर भारतीय जनता पार्टी के अंदरूनी सियासी माहौल पर पड़ सकता है. 

आदिवासी वोटों का रुख भाजपा की तरफ मोड़ने वाले 

किरोड़ी लाल मीणा पेशे से डॉक्टर हैं और छात्र जीवन के शुरुआती दिनों में ही वो राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ से जुड़ गए थे. राजस्थान में आदिवासी वोट को भाजपा की झोली में डालने का श्रय उन्हें ही जाता है. यह कहा जाता है कि मीणा समुदाय कांग्रेस पार्टी का परम्परागत वोट बैंक रहा है. आदिवासी मीणा समुदाय में उनकी गहरी पैठ है और लम्बे समय तक वो मीणा समुदाय के स्वीकार्य नेता रहे हैं. हालांकि बाद के दौर में उन्हें चुनौती मिलती रही और आज यह बात यकीन के साथ कहना मुश्किल है कि करोड़ी लाल मीणा मीणा समुदाय के सबसे बड़े नेता हैं. हालांकि उनका प्रभाव आज भी कम नहीं है. 

पूर्वी राजस्थान में दबदबा 

किरोड़ी लाल मीणा मूलतः दौसा जिले के महवा के रहने वाले हैं और 1985 में भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर वो महवा विधानसभा सीट से ही पहली बार विधायक बने थे.

किरोड़ी लाल मीणा 6 बार विधायक का चुनाव जीते हैं और पूर्वी राजस्थान में उनके प्रभाव को इस बात से समझा जा सकता है कि वो महवा, टोड़ाभीम, सवाई माधोपुर और बामनवास समेत चार अलग-अलग विधानसभाओं से जीत कर आये.

इसके अलावा दो अलग- अलग सीटों दौसा और सवाई माधोपुर से लोकसभा चुनाव जीते और बाद में भाजपा ने उन्हें 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले राज्य सभा भेज दिया.

वसुंधरा से अनबन हुई और छोड़ दी पार्टी 

2008 के विधानसभा चुनाव में तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से किरोड़ी लाल मीणा की अनबन हुई और सवाई माधोपुर से उनका टिकट कट गया. उन्होंने करौली जिले की टोड़ाभीम सीट और सवाई माधोपुर सीट से चुनाव लड़ा, वो टोडभीम से तो जीत गए लेकिन सवाई माधोपुर में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. बाद में उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया और 2013 का विधानसभा चुनाव उन्होंने पीए संगमा की पार्टी नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) के बैनर तले लड़ा और जीते.

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