विज्ञान के इस दौर में वैश्विक स्तर पर भारत की वैज्ञानिक तकनीक का लोहा विश्व भी मान रहा है. हाल ही में इसरो ने चंद्रयान की सफल लैंडिंग की सफलता हासिल की. अब भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) जोधपुर ने एक नया करिश्मा कर दिखाया है. आईआईटी जोधपुर के शोधकर्ताओं ने सांप के जहर से ऐसा पेप्टाइड बनाया है, जिससे किसी मरीज का घाव जल्द भर जाएंगे. म्यूरिन मॉडल में इस पेप्टाइड को एमआरएसए की ओर से शल्य चिकित्सा (सर्जरी) के बाद घाव पर संक्रमण को रोकने में भी मददगार पाया गया.
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान जोधपुर के बायोसाइंस और बायोइंजीनियरिंग विभाग और स्मार्ट हेल्थकेयर विभाग के प्रोफेसर डॉ. सुरजीत घोष ने बताया कि इस डिजाइन रणनीति में प्रमुख लक्ष्य सांप के जहर के रोगाणुरोधी गुण को खोए बिना उसके जहर से होने वाले जोखिम को कम करना है. इसलिए सांप के जहर के पेप्टाइड को छोटा कर दिया और सांप के जहर के जहरीले हिस्से को हटा दिया है.
उपचार का नया तरीका
इसके अलावा एन- टर्मिनस पर हेलिकल शॉर्ट पेप्टाइड को जोड़ दिया ताकि जीवाणु कोशिका के अंदर हमारे नए डिजाइन किए गए. उपचार को आसानी से प्रवेश कराया जा सके उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि बैक्टीरियल एंटीबायोटिक प्रतिरोध एक व्यापक वैश्विक खतरा है. जिससे निपटने के लिए वैज्ञानिकों को दुनिया भर में समाधान खोजना होगा अधिकांश प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले रोगाणुरोधी पेप्टाइड्स में अलग-अलग हाइड्रोफोबिसिटी और चार्ज संरचनाएं होती हैं. जो उनकी शक्तिशाली बैक्टीरिया नष्ट करने की क्षमता के बावजूद मानव चिकित्सीय अणुओं के रूप में उनके उपयोग को काफी हद तक सीमित करती हैं.
चिकित्सा के क्षेत्र में है बड़ा कारगर
आईआईटी का यह शोध दो प्रमुख समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करता है. पहला कि इस पेप्टाइड्स की मेम्ब्रेनोलिटिक क्षमता गैर-विशिष्ट प्रकृति बैक्टीरिया को इसके खिलाफ प्रतिरोध उत्पन्न करने का बहुत कम मौका देती है. इस पेप्टाइड को घाव पर कीटाणुनाशक और उपचार के लिए मरहम के तौर(अकेले या अन्य दवाओं और पेप्टाइड्स के साथ मिलाकर) प्रणालीगत प्रशासन के लिए एक इंजेक्शन या मौखिक दवा के रूप में या एक एरोसोलिज्ड फॉर्मूलेशन के रूप में चिकित्सीय रूप से उपयोग किया जा सकता है. इस कार्य को भारत में पेटेंट कराने के लिए प्रारंभिक रूप से ई- फाइल किया गया है. इस शोध के लिए भारत के एसईआरबी और आईआईटी जोधपुर के एसईईडी द्वारा अनुदान दिया गया है.
इन लोगों का है बड़ा योगदान
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान जोधपुर के शोधकर्ता प्रोफेसर डॉ. सुरजीत घोष के साथ डॉ. साम्या सेन, रामकमल समत, डॉ. मौमिता जश, सत्यजीत घोष, राजशेखर रॉय, नबनिता मुखर्जी, सुरोजीत घोष और डॉ. जयिता सरकार ने इस पेपर को जर्नल ऑफ मेडिसिनल केमिस्ट्री में संयुक्त रूप से इसको प्रकाशित किया है.
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