Jaipur Literature Festival: 'सुप्रीम कोर्ट पहुंचना आसान हुआ है, लेकिन न्याय मिलना आसान नहीं ': पूर्व जज

सत्र में वक्ताओं ने निचली अदालतों को मजबूत करने की जरूरत पर जोड़ दिया. वक्ताओं ने कहा कि व्यक्तिगत मामलों से जुड़े अधिकांश मुकदमों में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय भी निचली अदालतों के फैसले जैसे ही आते हैं.

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Jaipur Literature Festival: जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के तीसरे दिन 'वॉइस ऑफ द वॉइसलेस' सत्र में लंबित पड़े मुकदमों, सुप्रीम कोर्ट और निचली अदालतों की चुनौतियां, न्याय मिलने की बाधाओं पर विस्तृत चर्चा हुई. सत्र में जस्टिस मदन लोकुर, जस्टिस एस मुरलीधर, सीतल कालंत्री, अपर्णा चंद्रा से पूर्व मुख्य न्यायाधीश राघवेंद्र चौहान ने बातचीत की. 

जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के तीसरे दिन की शुरुआत लेखिका और कानून की एसोसिएट प्रोफेसर अपर्णा चंद्रा ने पिछले 75 वर्षों में सुप्रीम कोर्ट की भूमिका और संरचना में हुए भारी बदलावों के बारे में बताते हुए किया.

सुप्रीम कोर्ट में महिला जजों की संख्या कम 

प्रोफेसर सीतल ने कहा कि आज भले ही सुप्रीम कोर्ट पहुंचना आसान हुआ है लेकिन न्याय मिलना आसान नहीं है. एक्सेस मिलने का मतलब न्याय मिलना नहीं है. साथ ही, उन्होंने महिलाओं की हिस्सेदारी को लेकर भी सवाल उठाए और कहा कि अगर कोई महिला हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश बन भी जाती है तो उसका सुप्रीम कोर्ट पहुंचना आसान नहीं होता है. उन्होंने यह भी कहा कि न्यायालयों में बहुलता नहीं दिखती है.

अपर्णा चंद्रा ने कहा,  हम इतिहास देखें तो पाते हैं कि रोस्टर के मास्टर होने की शक्ति की वजह से चीफ जज संवैधानिक पीठ का हिस्सा बन जाते हैं. सुप्रीम कोर्ट में ज्यादातर पेंडिंग मामले संवैधानिक मामलों से जुड़े हुए ही हैं.

देश में 5 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं

जस्टिस लोकुर ने कहा कि तकनीक के सहारे रोस्टर की प्रक्रिया आसान बनाने पर विचार किया जा सकता है, लेकिन इसकी प्रक्रिया इतनी जटिल है कि कंप्यूटर इतने कमांड नहीं ले सकता. कोलेजियम सिस्टम में अपारदर्शिता के सवाल पर उन्होंने कहा कि सरकारें तो न्यायालयों से दस गुना अधिक अपारदर्शी है. उन्होंने कहा कि, आज देश में 5 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं. सुप्रीम कोर्ट कैसे मुकदमे स्वीकार करेगा, इसको लेकर स्पष्ट प्रावधान हैं. अगर सिर्फ इस दिशा निर्देश का पालन किया जाए तो यह बोझ काफी कम हो सकता है. 

जस्टिस लोकुर ने कोलेजियम सिस्टम में अपारदर्शिता के सवाल पर कहा कि सरकारें तो न्यायालयों से 10 गुना अधिक अपारदर्शी है. उन्होंने कहा कि तकनीक के सहारे रोस्टर की प्रक्रिया आसान बनाने पर विचार किया जा सकता है, पर प्रक्रिया जटिल है, कंप्यूटर इतने कमांड नहीं ले सकता.

निचली अदालतों को मजबूत करने की जरूरत

सत्र में वक्ताओं ने निचली अदालतों को मजबूत करने की जरूरत पर जोड़ दिया. वक्ताओं ने कहा कि व्यक्तिगत मामलों से जुड़े अधिकांश मुकदमों में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय भी निचली अदालतों के फैसले जैसे ही आते हैं. इसलिए इसे मजबूत किया जाना चाहिए ताकि सर्वोच्च न्यायालय पर दबाव कम पड़े. निचली अदालतों में जज बिना साधनों के बहुत मुश्किल स्थिति में काम कर रहे हैं.

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