Jaipur Blast Case: सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार की पैरवी करेंगे शिव मंगल शर्मा, राज्यपाल कलराज मिश्र ने बनाया विशेष अभियोजक

13 मई 2008 को जयपुर सिलसिलेवार धमाकों से दहल गया था. उस वक्त माणक चौक खंडा, चांदपोल गेट, बड़ी चौपड़, छोटी चौपड़, त्रिपोलिया गेट, जौहरी बाजार और सांगानेरी गेट पर एक के बाद एक बम विस्फोट हुए थे, जिसमें 71 लोग मारे गए थे जबकि 185 घायल हो गए थे.

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वरिष्ठ अधिवक्ता शिव मंगल शर्मा (फाइल फोटो)

Rajasthan News: जयपुर ब्लास्ट मामले में राजस्थान सरकार की पैरवी अब वरिष्ठ अधिवक्ता शिव मंगल शर्मा (Shiv Mangal Sharma) करेंगे. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में पेंडिंग अपील और एसएलपी में पैरवी के लिए राज्यपाल कलराज मिश्र (Kalraj Mishra) ने राज्य सरकार की अनुशंसा पर वरिष्ठ अधिवक्ता शिव मंगल शर्मा को विशेष अभियोजक नियुक्त किया है. 5 साल तक अतिरिक्त महाधिवक्ता रहे हैं शिव मंगल शर्मा इससे पहले भी कई महत्वपूर्ण मामलों में राजस्थान की पैरवी कर चुके हैं.

गौरतलब है कि राज्य सरकार ने ब्लास्ट मामले में उच्च न्यायालय के उस फैसले को चैलेंज किया है जिसमें कोर्ट ने सभी चारों आरोपियों मोहम्मद सैफ, मोहम्मद सलमान, सैफुर्रहमान और मोहम्मद सरवर आज़मी की फांसी रद्द कर दी थी. वहीं अन्य आरोपी शाहबाज हुसैन को दोषमुक्त करने के विशेष कोर्ट के फैसले को भी बरकरार रखा था.

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क्या है पूरा मामला? 

13 मई 2008 को जयपुर सिलसिलेवार धमाकों से दहल गया था. उस वक्त माणक चौक खंडा, चांदपोल गेट, बड़ी चौपड़, छोटी चौपड़, त्रिपोलिया गेट, जौहरी बाजार और सांगानेरी गेट पर एक के बाद एक बम विस्फोट हुए थे, जिसमें 71 लोग मारे गए थे जबकि 185 घायल हो गए थे. इस घटना के बाद दिसंबर 2019 में, जयपुर की विशेष अदालत ने चारों आरापियों- मोहम्मद सैफ, मोहम्मद सलमान, सैफुर्रहमान और मोहम्मद सरवर आज़मी को मौत की सजा सुनाई थी और शाहबाज़ हुसैन को बरी कर दिया था. इस आदेश के खिलाफ आरोपियों की ओर से हाईकोर्ट में अपील की गई थी. उस वक्त हाईकोर्ट ने फांसी के लिए राज्य सरकार द्वारा पेश किए गए डेथ रेफरेंस को खारिज करते हुए चारों आरोपियों को दोषमुक्त कर दिया था. हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था.

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अनसुनी है याचिका 

सु्प्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार की याचिका को 8 नवंबर 2023 में सुनवाई करते हुए कहा उसे 'अनसुनी' करार दिया था. कोर्ट ने कहा था कि यह देखने की जरूरत है कि क्या निर्णय 'गलत' और 'विकृत' था. जस्टिस बीआर गवई, पीएस नरसिम्हा और अरविंद कुमार की पीठ ने राजस्थान सरकार की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी से कहा, 'बरी करने के आदेश पर रोक लगाने की आपकी प्रार्थना अनसुनी है. आपकी असाधारण प्रार्थना पर विचार करने के लिए, हमें यह देखना होगा कि फैसला क्या है. प्रथम दृष्टया ग़लत और विकृत है.' पीठ ने वेंकटरमणि से कहा, 'जो वरिष्ठ अधिवक्ता मनीष सिंघवी के साथ राज्य सरकार की ओर से पेश हुए, जिसने चार आरोपियों को बरी करने के फैसले को चुनौती देते हुए चार अलग-अलग अपीलें दायर की हैं कि जब किसी अदालत द्वारा बरी किया जाता है तो आरोपियों की बेगुनाही की धारणा मजबूत हो जाती है.'

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शर्त का दिया हवाला

बरी किए गए लोगों की ओर से पेश वरिष्ठ वकील रेबेका जॉन और अन्य वकील ने उन पर लगाई गई शर्त का हवाला दिया कि वे जयपुर में आतंकवाद विरोधी दस्ते के पुलिस स्टेशन के समक्ष दैनिक आधार पर सुबह 10 से दोपहर 12 बजे के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज कराएंगे. पीठ ने अटॉर्नी जनरल से कहा कि यह शर्त उनके आंदोलन पर "अनुचित प्रतिबंध" लगाती है, लेकिन यह भी कहा कि वह सुनवाई की अगली तारीख पर इस पर विचार करेगी. वेंकटरमानी ने कहा कि हालांकि उन्हें उच्च न्यायालय द्वारा बरी कर दिया गया था, "इन लोगों को स्वतंत्र रूप से घूमने की अनुमति नहीं दी जा सकती है और इसीलिए हम उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ अपील पर फैसला आने तक फैसले पर रोक लगाने की मांग कर रहे हैं.'