JLF 2025: जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में निर्देशक इम्तियाज अली बोले- मैं 9वीं में फेल हो गया था, ये मेरी...

Rajasthan: जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में डायरेक्टर इम्तियाज अली अपनी जिंदगी के कई अनुभवों को शेयर किया है.

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Imtiaz Ali

Imtiaz Ali  News: जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में पहुंचे डायरेक्टर इम्तियाज अली ने फिल्मों, संगीत और उनके बनने की प्रक्रिया पर खुलकर बात की. उन्होंने कहा, मुझे बस इम्तियाज कहो. इम्तियाज जी सुनकर ऐसा लगता है कि यह किसी और का नाम है. अगर किसी फिल्म मेकर से नफरत की जाती है या उस पर पत्थर फेंके जाते हैं तो यह उनके नाम पर ही होना चाहिए. 

9वीं क्लास में मैं फेल हो गया - इम्तियाज अली

मैं 9वीं क्लास में फेल हो गया था, ये मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा टर्निंग पॉइंट था क्योंकि इसने मुझे असफलताओं का सामना करना सिखाया और मैं वो कर पाया जो मैं करना चाहता था. मेरे घर के बगल में एक थिएटर था. तब ऐसा नहीं होता था. कई बार रात में थिएटर का दरवाज़ा खुला रहता था. इसकी वजह से मैं स्क्रीन का एक हिस्सा देख पाता था. मैं अमिताभ की नाक, रेखा के कान देख पाता था. मैं देख पाता था कि बाईं तरफ क्या है और दाईं तरफ क्या है. बाद में जब मैंने फ़िल्में डायरेक्ट करना शुरू किया तो इससे मुझे बहुत मदद मिली.

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 जयपुर से है मेरा पुरानी रिश्ता 

उन्होंने कहा कि जयपुर नाम से मेरा पुराना नाता है. मेरे थिएटर के पास जयपुर हेयर कटिंग सैलून था. लोग वहां आते थे और मिथुन की तरह बाल कटवाते थे. मैं उन्हें देखता था और इस तरह जयपुर से मेरा जुड़ाव हो गया. उन्होंने आगे कहा कि उनकी कई फिल्में ऐसी हैं जो रिलीज होने पर लोगों को पसंद नहीं आईं लेकिन बाद में उन्हें पसंद करने वालों ने एक अलग समूह बना लिया. जिसे प्रशंसा और आलोचना दोनों मिलती है. इसलिए जब आलोचना आए तो आपको देखना चाहिए कि क्या यह सही है. क्या आप इससे बेहतर कुछ कर सकते हैं? सफलता की कोई गारंटी नहीं है. इसलिए बस अपना काम करते रहो. किसी भी सफलता या असफलता के बोझ से खुद को मुक्त करो.

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 महाभारत से आसान है मेरी फिल्में- इम्तियाज अली

अपनी फिल्मों  को लेकर उन्होंने कहा कि एक व्यक्ति ने मुझसे पूछा कि क्या मैं अपने समय से आगे हूं. मैंने कहा कि मैं ऐसा नहीं करना चाहता. मैं हर वो तरकीब अपनाना चाहता हूं जिससे मेरी फ़िल्में इस दौर में ही पसंद की जाएं. मैं इसे सरल बनाना चाहता हूं. महाभारत इतनी जटिल है, मेरी फ़िल्में उससे ज़्यादा सरल हैं. लेकिन अगर इसे समझा जा रहा है, तो मेरी फ़िल्में भी समझी जानी चाहिए.अगर इसे वेद व्यास की तरह लिखा और बताया जाए, तो इसे समझा जा सकता है. यही मेरी कोशिश है. जब फ़िल्में बाद में अच्छा कर सकती हैं, तो पहले क्यों नहीं?

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जैसी फिल्में लोग देखेंगे वैसी बनेंगी

ओटीटी कंटेंट के सवाल पर उन्होंने कहा कि यह डेमोक्रेसी है, जैसी फिल्में लोग देखेंगे, वैसी फिल्में ही बनेंगी। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि मैं अभी कोई बायोपिक बनाने में इंट्रेस्टेड नहीं हूं लेकिन अगर कभी बनाया तो अमीर खुसरो की बायोपिक बनाऊंगा.

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