Jaisalmer Foundation Day: 869 साल का हुआ जैसलमेर, मुगल हो या अंग्रेज कभी नहीं कर सके फतह, पाकिस्तान को दो बार चटाई धूल

Jaisalmer Foundation Day: जैसलमेर 869 साल हो चुका है. जैसलमेर के संस्थापक महारावल जैसलदेव जी ने आज ही के दिन 869 साल पहले विक्रम संवत 1212 में श्रावण शुक्ला द्वादशी के दिन जैसलमेर की स्थापना की थी.

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Jaisalmer Foundation Day: "सूरज पूछे सारथी, भू पर किसरो भाण.. झुंझारु जदु वंश रो, चमके गढ़ जैसाण." जैसलमेर (Jaisalmer) के संस्थापक महारावल जैसलदेवजी ने आज ही के दिन 869 साल पहले विक्रम संवत 1212 में श्रावण शुक्ला द्वादशी के दिन जैसलमेर की स्थापना की थी. आज जैसलमेर 869 साल हो चुका है. जैसलमेर स्थापना दिवस आज दुर्ग महल में सादगी से मनाया जाएगा. गुरुवार को पूर्व महारावल चैतन्य राज सिंह भाटी ने कुलदेवी मां स्वांगिया का विधि-विधान से पूजन किया.

दुर्ग पर पहनाया रियासत कालीन पीला - केसरिया ध्वज

जैसलमेर के संस्थापक महारावल जैसलदेव जी की फोटो का फूल माल से श्रृंगार किया गया, जिसके बाद उनका पूजन हुआ. जैसलमेर में अमन चैन की कामना के लिए सनातन धर्म के अनुसार, विधि विधान से हवन किया गया. महारावल चैतन्य राज सिंह ने सोनार दुर्ग के राजमहल की सबसे ऊँची छत पर जैसलमेर का रियासत कालीन पीला-केसरिया ध्वज पहनाया.

जैसलमेर के ध्वज का विशेष पूजन किया गया. यह ध्वज जैसलमेर के अजय होने का प्रतीक है. इस मौके पर राज परिवार पाटगुरु सूर्यप्रकाश गोपा, श्रीपत परिवार से मनीष श्रीपत सहित राजपरिवार के करीबी मौजूद रहे. महारावल चैतन्यराज सिंह ने सभी जैसलमेर वासियों को स्थापना दिवस की बधाई दी.

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जैसलदेव , मेरू पहाडी से जैसलमेर नाम 

आज स्वर्णनगरी जैसलमेर 869 साल का हो गया है. स्वर्णनगरी ने कई उतार चढ़ाव देखें, मगर जैसलमेर की जनता ने लड़खड़ाने नहीं दिया. सालाना लाखों सैलानी यहां भ्रमण के लिए आते हैं. संवत 1212 और 1156 ई. में महारावल जैसलदेव ने जैसलमेर के किले की नींव रखी थी. नींव के बाद राजाओं ने त्रिकूट पहाड़ी पर खडे सोनार दुर्ग का निर्माण करवाया. महाराज जैसलदेव और मेरू पहाडी दोनों के नाम से इसका नाम जैसलमेर रखा गया.

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मुगल और अंग्रेज नहीं कर पाए विजय 

सल्तनत काल के समय लगभग 300 वर्षों तक मुगल इस राज्य पर अपना अधिकार नहीं कर सके थे. भारत की परिस्थिति चाहे जैसी भी रही हो, मुगल और अंग्रेज आए और गए, लेकिन जैसलमेर को नहीं जीत सके थे.

1965 और 1971 में पाकिस्तान के साथ हुए युद्धों में यहां के लोगों ने सेना के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सहयोग किया था. समय ने जहां अधिकतर स्थानों से प्राचीन संस्कृति और सभ्यता को मिटा दिया हैं, वहीं जैसलमेर की सभ्यता-संस्कृति आज भी पहले जैसी बनी हुई है.       

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