Rajasthan: महज 12 साल की उम्र में आदित्य ने सांसारिक सुखों का किया त्याग, अब संन्यास की राह पर

Jain Monk: जैनाचार्य जयरत्नसूरीश्वर ने दीक्षार्थी आदित्य कुमार का नया नामकरण किया. अब वे मुनि पूर्णानंद विजय महाराज कहलाएंगे.

विज्ञापन
Read Time: 2 mins

Jalore: जालोर के भांडवपुर जैन तीर्थ में गुरुवार को पंचान्हिका महोत्सव के 5वें दिन दीक्षा महोत्सव का आयोजन हुआ. दीक्षार्थी मुमुक्षु आदित्य कुमार ने महज 12 साल की उम्र में संसारिक सुखों का त्याग कर संयम का मार्ग अपनाया. जैनाचार्य जयरत्नसूरीश्वर, साध्वी अरुणाप्रभा, साध्वी अध्यात्मकला सहित साधु-साध्वियों की निश्रा में दीक्षा विधि संपन्न हुई. सुबह शुभ मुहूर्त में राज चन्दन मंजू वाटिका से दीक्षार्थी गाजे-बाजे के साथ पांडाल पहुंचे और श्रद्धालुओं ने उनका स्वागत किया. इसके बाद दीक्षा विधि शुरू हुई. जैनाचार्य ने उन्हें पवित्र ओघा प्रदान किया. ओघा पाकर दीक्षार्थी आनंदित हो उठे. केशलोचन विधि के बाद उन्होंने श्वेत वस्त्र धारण किए. जैसे ही वे मुनि वेश में पांडाल में लौटे, पूरा परिसर जयकारों से गूंज उठा.

आदित्य कुमार बने मुनि पूर्णानंद विजय

जैनाचार्य जयरत्नसूरीश्वर ने दीक्षार्थी आदित्य कुमार का नया नामकरण किया. अब वे मुनि पूर्णानंद विजय महाराज कहलाएंगे. दीक्षा के दौरान जब उन्होंने अपने वस्त्र परिजनों को सौंपे और केशलोचन कराया, तो पांडाल में मौजूद श्रावक-श्राविकाओं की आंखें नम हो गईं.

Advertisement

तप से आत्मा की शुद्धि और कर्मों की होती है निर्जरा- जैनाचार्य जयरत्नसूरीश्वर

महोत्सव के अंतिम दिन तप मंदिर का शिलान्यास भी हुआ. जैनाचार्य और साधु-साध्वियों की उपस्थिति में विधिकारक ने विधिवत पूजन कर शिलान्यास कराया. इस अवसर पर योगिराज शांतिविजय का 29वां पुण्योत्सव भी मनाया गया. इसके बाद व्याख्यान में जैनाचार्य जयरत्नसूरीश्वर ने कहा, "जैन धर्म में तप का विशेष महत्व है. तप से मन और इंद्रियों पर नियंत्रण होता है. तपहीन मन इंद्रियों को भटकाता है, जिससे आत्मा पाप कर्मों में फंसती है और 84 लाख योनियों में भटकती है. तप से आत्मा की शुद्धि और कर्मों की निर्जरा होती है."

Advertisement

यह भी पढ़ेंः  NDTV की खबर के बाद हरकत में आया उच्च शिक्षा निदेशालय, अब 2 महीने में ही बेटियों को मिलेंगी स्कूटियां

Advertisement
Topics mentioned in this article