Rajasthan News: शारदीय नवरात्र की शुरुआत 3 अक्टूबर से घट स्थापना के साथ होगी, और इस पर्व के लिए जोधपुर में मां दुर्गा की इको-फ्रेंडली मूर्तियों की तैयारियां तेजी से चल रही हैं. जोधपुर के दुर्गाबाड़ी में पश्चिम बंगाल के विशेष कलाकार दिन-रात मेहनत कर मां दुर्गा की प्रतिमाएं तैयार कर रहे हैं. इन मूर्तियों को कोलकाता से लाई गई विशेष चिकनी मिट्टी, पुआल, और इको-फ्रेंडली सामग्री से बनाया जा रहा है, ताकि मूर्ति विसर्जन के दौरान पर्यावरण को नुकसान न हो.
मूर्तियों की विशेषता
पश्चिम बंगाल से हर साल आने वाले ये कलाकार इको-फ्रेंडली मूर्तियां तैयार करने के लिए प्रसिद्ध हैं. 2 फीट से लेकर 15 फीट तक की मां दुर्गा, मां सरस्वती, गणेश और कार्तिकेय की मूर्तियां बनाई जा रही हैं, जिनकी कीमत 2,000 रुपये से लेकर 30,000 रुपये तक है. इन मूर्तियों में किसी प्रकार के केमिकल का इस्तेमाल नहीं किया जाता, और इमली के बीज के पाउडर से निर्मित पानी के घोल का उपयोग किया जा रहा है, जो पर्यावरण के अनुकूल है. मूर्तिकारों द्वारा प्रयोग की जाने वाली अन्य सामग्री भी पूरी तरह से इको-फ्रेंडली है.
बंगाल से विशेष सामग्री
इन मूर्तियों को तैयार करने के लिए आवश्यक सभी सामग्री, जैसे चिकनी मिट्टी और विशेष किस्म की घास, बंगाल से लाई जाती है. मूर्तियों की मांग केवल जोधपुर में ही नहीं, बल्कि राजस्थान के अन्य जिलों में भी है. इन कलाकारों का कहना है कि जोधपुर में उनकी मूर्तियों की काफी डिमांड है, और हर साल वे नवरात्र से पहले यहां आकर मूर्तियों को तैयार करते हैं.
इको-फ्रेंडली मूर्तियों की बढ़ती मांग
जोधपुर और आसपास के जिलों में बंगाल के कलाकारों द्वारा तैयार की गई इको-फ्रेंडली मूर्तियों की खास डिमांड है. ये मूर्तियां शारदीय नवरात्र के दौरान विभिन्न गरबा पंडालों में स्थापित की जाएंगी. इन मूर्तियों के निर्माण के दौरान पर्यावरण की सुरक्षा को प्राथमिकता दी जाती है, ताकि विसर्जन के समय प्रदूषण न हो.
एनडीटीवी से खास बातचीत
एनडीटीवी की टीम ने जोधपुर की दुर्गाबाड़ी में जाकर इन मूर्तियों को तैयार करने वाले बंगाल के कलाकारों से खास बातचीत की. उन्होंने बताया कि वे हर साल जोधपुर में आकर मां दुर्गा की मूर्तियां तैयार करते हैं और इस काम के लिए एक माह पहले ही यहां पहुंच जाते हैं. उनका कहना है कि ये मूर्तियां पूरी तरह से इको-फ्रेंडली होती हैं और इसके निर्माण में किसी प्रकार के केमिकल का प्रयोग नहीं किया जाता.
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