Kargil Vijay Diwas 2024: सरकारी सिस्टम से हारा कारगिल शहीद का परिवार, अब 25 साल बाद पोते ने पकड़ी फौज में जाने की जिद

झुंझुनू के टीटनवाड़ गांव के सूबेदार श्रीपाल सिंह शेखावत को कारगिल युद्ध में शहीद हो गए 25 साल हो गए. हालांकि, सरकार की तरफ से उनके परिवार को किए गए वादे अभी तक पूरे नहीं किए जा सके.

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Kargil Vijay Diwas: झुंझुनू के टीटनवाड़ गांव के शहीद सूबेदार श्रीपाल सिंह शेखावत ने कारगिल की लड़ाई लड़ी और दुश्मनों को धूल चटा दी. अंतिम समय तक वे दुश्मनों से लड़ते रहे, लेकिन हार नहीं मानी. पर इससे उलट शहीद के परिवार ने सरकारी सिस्टम से हार मान ली है. कारगिल युद्ध को 25 साल हो गए, लेकिन शहीद परिवारों को सरकार उनके पूरे पैकेज नहीं दे पाई. नियमों और कागजों में जंजाल में इनके पैकेज भी फंसकर रह गए है. इसके बाद बावजूद भी शहीद के परिवार का देश की रक्षा करने का जज्बा कम नहीं हुआ है. 

बम हमले में कई जवान हुए थे शहीद

शहीद सूबेदार सिंह श्रीपाल सिंह 8 ग्रेनेडियर्स में तैनात थे. कारगिल युद्ध के समय उनकी यूनिट को मैदान में जाने के लिए निर्देश प्राप्त हुए. उनकी यूनिट आगे बढ़ रही थी. इस दौरान ऊपर से हमला हुआ, बम गिरे, इससे कई जवान शहीद हो गए थे. पत्नी ज्ञान कंवर ने बताया कि जब उनके पति श्रीपालसिंह शेखावत शहीद हुए तो बच्चे छोटे-छोटे थे. उनके दो बच्चे संग्राम सिंह और बेटी सोनू कंवर है. उस समय वे रोजाना रविवार को अपने पति से बात करने के लिए बड़ागांव जाती थी. जहां पर एसटीडी फोन से पति से बात करती थी. जिस दिन उनके पति की शहादत हुई.

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आज तक नहीं पूरा हो पाया वादा

उसके दूसरे दिन भी रविवार था. वह एसटीडी में गई तो पति से बात करना चाहा तो बात नहीं करवाई जा रही थी. इसी दौरान उसे सुनाई दिया कि सूबेदार साहब नहीं रहे. तब उन्हें पता चला कि उनके पति देश के लिए शहीद हो गए. उन्होंने बताया कि सरकारों ने काफी वादे किए थे. इनमें नौकरी देने का वादा तो पूरा किया, लेकिन पेट्रोल पंप और गैस एजेंसी का वादा आज तक पूरा नहीं किया है. कुछ दिनों तक उन्होंने प्रयास किया, लेकिन फिर वे सिस्टम के आगे हार गई और प्रयास छोड़ दिया. सिस्टम से हारने के बाद भी शहीद परिवार का देश की सेवा करने का जज्बा कम नहीं हो रहा है.

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पोता बोला- मैं भी फौज में जाऊंगा

शहीद के बेटे संग्राम सिंह ने बताया कि उन्होंने भी कोशिश की थी कि वे अपने पिता की तरह फौज में जाकर दुश्मनों को धूल चटाए, लेकिन कामयाब नहीं हो पाए.  फिर सरकार ने अनुकंपा नियुक्ति दे दी और फिलहाल वे कलेक्ट्रेट में कार्यरत हैं. वे चाहते हैं कि उनका बेटा मानवेंद्र फौज में जाकर अपने दादा और पिता का सपना पूरा करें. 11 साल का मानवेंद्र भी पूरे जोश में है. वह कहता है कि आज जब उन्हें अपने दादा शहीद श्रीपालसिंह शेखावत की शौर्यता की कहानी बताई जाती है तो उसके भी रोंगटे खड़े हो जाते है. वह भी दुश्मनों को खत्म करने के लिए उठ खड़ा होता है. 11 साल का मानवेंद्र ने ठाना है कि वह भी सेना में जाकर पाकिस्तान जैसे हिंदुस्तान के दुश्मनों को मार गिराएगा. 

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कारगिल शहीद श्रीपाल सिंह शेखावत की झुंझुनूं जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर गांव टीटनवाड़ में मुख्य सड़क पर प्रतिमा लगी हुई है, जो गांव के युवाओं और यहां से गुजरने वाले हर शक्स को प्ररेणा दे रही है. शहीद का बेटा संग्रामसिंह कहता है कि शहीद पापा की इस प्रतिमा को नमन कर वह निकलता है तो उसका हर काम सिद्ध होता है. वह अपने पापा को भगवान की मानता है. यही नहीं गांव के लोग भी अपने अच्छे कार्य करने से पहले शहीद श्रीपाल सिंह शेखावत की प्रतिमा को नमन करते हैं, एक देवता की तरह से पूजते हैं.

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