राजस्थान का एक ऐसा गांव जहां पंचायत ने किया एक साथ कई परिवारों का हुक्का-पानी बंद, शासन और प्रशासन भी है चुप

पंचायत के इस बहिष्कार की वजह से शांति देवी के परिवार को उनके परिचित व्यक्ति के मृत्यु के 12 दिन के कार्यक्रम में भी शामिल होने नहीं दिया गया. उन्हें गांव में वापस लाने के लिए शर्त रखी गई.

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Rajasthan News: हमने खाप पंचायत के बारे में खूब सुना है, कहा जाता है कि खाप पंचायत का फैसला सभी को मानना पड़ता है. वरना उस परिवार का हुक्का पानी बंद कर दिया जाता है. कुछ ऐसा ही मामला राजस्थान के नागौर जिले का है. जहां खींवसर क्षेत्र में एक ऐसा गांव है जहां पंचायत का फैसला कानून से बढ़ कर माना जा रहा है. पंचायत के फैसले से कई परिवारों का हुक्का पानी बंद कर दिया जा रहा है. इतना ही नहीं उन परिवार वालों को उनके ही रिश्तेदारों से ही सहायता नहीं मिल रही है. पंचायत ने एक बार बहिष्कार का फैसला सुना दिया तो उस परिवार से कोई भी गांव वाला किसी तरह से संबंध नहीं रखता है. आश्चर्य की बात यह है कि काफी समय से चल रहे इस तरह के कार्य पर अब तक शासन और प्रशासन दोनों चुप है.

खींवसर के इस गांव का नाम है डेहरु, जहां हाल ही में दो परिवारों को गांव के पंचों द्वारा बहिष्कृत करने का फरमान सुनाया है. बताया जाता है कि इसके लिए बकायदा पेपर बनाया जाता है जिस पर पंच समेत गांव के लोग साइन करते हैं. पूर्व भी कई परिवारों को बहिष्कृत किया गया है. जिन्हें पंचायत की बात सुननी पड़ी और जुर्माना भरना पड़ा जिसके बाद उसे गांव में फिर से शामिल किया गया.

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फौजी परिवार को सपोर्ट करने वाले दो परिवार भी गांव से बहिष्कृत

डेहरु गांव में पंचायत का बहिष्कार जैसा फैसला काफी समय से चलता आ रहा है. शिकायतें भी हुई लेकिन इस पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई. नया मामला तब सामने आया जब गांव के ही पूर्व फौजी बुद्धाराम को गांव के पंचों ने गांव में बहिष्कृत कर दिया था. इस मामले में जब पुलिस से शिकायत की गई तो पुलिस द्वारा जांच की गई. इस जांच के दौरान पुलिस को गांव के शांति देवी और महेंद्र ने अपना बयान दर्ज करवाया था. जो पूर्व फौजी के पक्ष में दिया गया था. ऐसे में डेहरु गांव के पंचों ने लगातार शांति देवी और महेंद्र को बयान वापस लेने का दबाव बनाया गया. जब दोनों ही परिवारों ने बयान वापस लेने मना कर दिया तो पंचों ने दोनों लोगों के परिवार को बहिष्कृत कर दिया गया.

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पंचायत के इस बहिष्कार की वजह से शांति देवी के परिवार को उनके परिचित व्यक्ति के मृत्यु के 12 दिन के कार्यक्रम में भी शामिल होने नहीं दिया गया. उन्हें गांव में वापस लाने के लिए शर्त रखी गई कि वह लोग अपना बयान वापस ले और जुर्माना की राशि (25 हजार) भी चुकाएं. तब तक उन्हें गांव के किसी भी काम में शामिल नहीं किया जाएगा. उनके रिश्तेदार भी उनकी सहायता नहीं कर सकते हैं.

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रिश्तेदार ने कर दिया मना, कहा- मुझे भी कर देंगे बहिष्कृत

रिश्तेदार की मौत पर जब शांति देवी के परिवार को नहीं पूछा गया तो, उनके बेटे ने अपने रेश्तेदार को फोन किया. तब उन्होंने कहा कि गांव के पंचों ने फैसला सुनाया है कि आपने फौजी के पक्ष में जो बयान दिए हैं. अगर उनको वापस नहीं लोगे और जुर्माना नहीं दोगे तब तक गांव के किसी भी कार्यक्रम में शामिल नहीं हो सकते हैं. अगर आप लोगों को बुलाऊंगा तो मेरे परिवार को भी गांव से बहिष्कृत कर दिया जाएगा. इस वजह से मैं आपको नहीं बुला सकता. गांव के महेंद्र के परिवार को लेकर भी कुछ ऐसा ही फरमाना सुनाया गया है. उस पर भी बयान बदलने का दबाव बनाया जा रहा है.

कलेक्टर से की शिकायत 

इस मामले में पीड़ित परिवार ने कलेक्टर ऑफिस पहुंच कर  गांव के पंचायत की मनमानी की कहानी सुनाई. पीड़ित परिवार ने कलेक्टर के समक्ष समस्या लेकर पहुंचने के बाद बताया कि गांव कम में पंचों ने मनमानी से आतंक फैला रखा है. उन्होंने पंचायत के खिलाफ कार्रवाई करने और न्याय दिलाए जाने की मांग की है.

सरपंच सरपंच उग्राराम का बयान

डेहरू गांव के वर्तमान सरपंच उग्राराम से फोन द्वारा बात की गई तो सरपंच उग्राराम ने बताया कि हमारे गांव में इस तरीके का कोई मामला नहीं है. किसी को भी गांव से बहिष्कृत नहीं किया गया है और किसी के निजी प्रोग्राम में कौन बुलाता है कौन नहीं बुलाता है. यह मुझे भी नहीं मालूम उनको क्यों नहीं बुलाया गया मेरी जानकारी में नहीं है. अगर वह लोग कलेक्टर एसपी के समक्ष पेश हुए हैं तो गलत है. क्योंकि किसी ने किसी को भी गांव से बहिष्कृत नहीं किया है.

यह मामला काफी समय से आ रहा है, इस बारे में शासन और प्रशासन सभी अवगत है. लेकिन इसके बावजूद इस पर कार्रवाई नहीं की जा रही है.

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