Khatu Shyam Mandir Rajasthan Darshan Timing Today: राजस्थान के सीकर जिले के खाटू कस्बे में स्थित विश्व प्रसिद्ध खाटूश्यामजी मंदिर (Khatu Shyam Mandir) के कपाट मंगलवार देर रात से बंद हैं, जो बुधवार शाम 4 बजे विशेष पूजा अर्चना और श्रंगार के बाद खोले जाएंगे. उसके बाद ही हजारों भक्त बाबा श्याम के दर्शन का लाभ ले पाएंगे.
हर अमावस्या को होता है शाही स्नान
अमावस्या के दिन बाबा श्याम का शाही स्नान होता है. स्नान के बाद से बाबा का शीश (श्याम मयी रंग में) अर्थात बिना किसी श्रृंगार के काले स्वरूप में दिखाई देता है, जिसके दर्शनों का अपने आप में एक अलग धार्मिक महत्व है. यह स्वरूप सप्तमी तक बना रहता है. उसके बाद सप्तमी या अष्टमी के दिन निज मंदिर के पुजारी परिवार या ट्रस्टी परिवार के किसी एक सदस्य द्वारा बाबा का तिलक श्रृंगार किया जाता है.
बाबा श्याम के तिलक श्रृंगार का खास महत्व
धार्मिक ग्रंथों की मानें तो बाबा का यह तिलक श्रृंगार काफी महत्वपूर्ण होता है. एक विशेष प्रकार के चंदन से बाबा का तिलक किया जाता है. श्याम भक्तों में ऐसी आस्था है कि बाबा के इस तिलक को करने में लगभग चार से पांच घंटे लग जाते हैं. इससे पहले पूरे मंदिर परिसर की अच्छे से सफाई की जाती है. यह काम भी निज मंदिर के ट्रस्टी परिवार के सदस्यों या निज मंदिर के पुजारी परिवार द्वारा ही किया जाता है.
देश-विदेश से आए फूलों से होता है श्रृंगार
मंदिर परिसर की सफाई के बाद बाबा श्याम का फूलों से श्रृंगार किया जाता है. माना जाता है कि यह फूल देश-विदेश से आते हैं और तिलक श्रृंगार के बाद आम भक्तों के लिए कपाट खोल दिए जाते हैं. भक्त अपने आराध्य के दर्शन करते हैं.
हर महीने होते हैं 2 स्वरूपों के दर्शन
भारतीय धार्मिक परंपराओं के अनुसार, महीने में हर अमावस्या को बाबा का शाही स्नान होता है. इस वजह से हर महीने बाबा के दो स्वरूपों के दर्शन होते हैं. पहला- कृष्ण स्वरूप (काले रंग) में और दूसरा- तिलक श्रृंगार के बाद सुंदर सजीले स्वरूप में. दोनों ही स्वरूपों के दर्शनों का अलग-अलग महात्म्य है. कहते हैं कि बरसों तक बाबा के परम भक्त मानें जाने वाले श्रद्धेय आलू सिंह जी महाराज बाबा का तिलक श्रृंगार करते थे. अब उनके प्रपोत्र मोहन दास महाराज यह कार्य करते हैं. वैसे निज मंदिर पुजारी परिवार और ट्रस्टी परिवार का कोई भी सदस्य बाबा का तिलक श्रृंगार कर सकता है.
श्रद्धालुओं में बांटा जाता शाही स्नान का जल
माना जाता है कि बाबा के तिलक व श्रंगार के लिए बहुत ही सावधानियां रखनी पड़ती हैं. विशेष प्रकार के चंदन का लेप किया जाता है, जो अगली अमावस्या तक बना रहता है. उस चंदन के लेप के बाद श्रृंगार में लेस मात्रा भी परिवर्तन नहीं होता है. यह तब तक बना रहता है जब तक बाबा का दोबारा शाही स्नान नहीं हो जाता. वहीं, बाबा के स्नान के जल को भक्तों में वितरित करने की भी अपनी एक धार्मिक परंपरा है. भक्त बाबा के स्नान किए हुए जल को यहां से प्राप्त करते हैं और अपने घरों में वर्ष भर रखते हैं व गंगाजल की तरह इस जल का उपयोग किया जाता है.
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