Analysis: राजस्थान में बीजेपी की 11 लोकसभा सीटों पर हार के 11 बड़े कारण, क्या होनेवाला है बदलाव

मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने दिल्ली जाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लोकसभा चुनाव में राजस्थान की 25 में 11 सीटों पर बीजेपी को मिली हार के कारणों की जानकारी दी है.

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Rajasthan Politics: लोकसभा चुनाव 2024 में राजस्थान में बीजेपी 25 सीटों पर जीत के लिए 'मिशन 25' का दावा कर रही थी. लेकिन बीजेपी को इसके उलट 11 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा है. अब 11 सीटों पर हार को लेकर बीजेपी के अंदर आत्ममंथन चल रहा है. राजस्थान में बीजेपी के बड़े नेताओं द्वारा मंथन के बाद एक रिपोर्ट संगठन के स्तर पर तैयार की गई और इसे दिल्ली भेजा गया. वहीं मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा (Bhajan Lal Sharma) ने खुद दिल्ली पहुंचकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) को राजस्थान में बीजेपी की हार के कारणों पर फीडबैक दिया है. इसके बाद ऐसे कयास लग रहे हैं कि राजस्थान में पार्टी के स्तर पर बड़े बदलाव होनेवाले हैं.

सीएम भजनलाल शर्मा की रिपोर्ट और फीडबैक के बाद कहा जा रहा है कि आनेवाले दिनों में राजस्थान मंत्रिमंडल (Rajasthan Cabinet) में फेरबदल की संभावना है. इसके साथ ही संगठन में भी बड़े बदलाव संभव हैं.

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राजस्थान में इस बार लोक सभा चुनाव में बीजेपी को 11 सीटों पर हार का ऐसा जख्म मिला है कि पार्टी इस सदमे से उबर नहीं पा रही है. वहीं आत्ममंथन के जरिए यह जानने और समझने की कोशिश की जा रही है कि हार के बड़े कारण क्या रहे हैं. अब जयपुर में उच्च स्तरीय मंथन के बाद तैयार रिपोर्ट लेकर सीएम भजनलाल शर्मा दिल्ली पहुंचे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिल कर पार्टी के प्रदर्शन का ब्यौरा दिया. इस समीक्षा में 11 सीटों पर हार के 11 प्रमुख कारण सामने आए हैं.

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कारण 1. चुनाव में सीएम को नहीं मिला अन्य नेताओं का साथ

राजस्थान सरकार की ड्राइविंग सीट पर बैठे नए सीएम भजनलाल शर्मा के लिए लोकसभा चुनाव अग्निपरीक्षा थी. यही वजह है कि उन्होंने चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंक दी. उन्होंने  80 से ज्यादा चुनावी दौरे किए और जनसभाओं को संबोधित किया. लेकिन मुख्यमंत्री को राजस्थान के बड़े बीजेपी नेताओं और मंत्रिमंडल के सदस्यों का अपेक्षित सहयोग नहीं मिल सका. फीडबैक में ये बात भी सामने आई कि भजनलाल शर्मा के सीएम बनने से कई बड़े नेता नाराज थे जिससे भीतरघात भी देखने को मिला.

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कारण 2. बीजेपी पदाधिकारियों और विधायकों की निष्क्रियता

लोकसभा चुनाव में जहां आलाकमान ने हर बूथ को मजबूत करने की जिम्मेदारी नेताओं और कार्यकर्ताओं को दी थी, जो बीजेपी की सबसे बड़ी ताकत मानी जाती है. लेकिन चुनाव में उस तरीके का बूथ मैनेजमेंट नहीं दिखा जो होना चाहिए था. फीडबैक में कई प्रत्याशियों ने विधायकों की निष्क्रियता का भी आरोप लगाया है. बीजेपी उन सीटों पर पिछड़ गई जिन सीटों को बीजेपी का गढ़ माना जाता है. जिसके लिए विधायकों को ज़िम्मेदार बताया गया है.

कारण 3. गलत प्रत्याशियों को टिकट बनी हार की बड़ी वजह

राजस्थान में कई सीटों पर बीजेपी से टिकट वितरण में चूक हुई जो हार की बड़ी वजह बनी है. इसमें चूरू सीट सबसे प्रमुख है जिस पर वहाँ के उस वक्त के सांसद राहुल कस्वां का टिकट काटा गया. इससे न केवल राहुल कस्वां ने नाराज होकर पार्टी छोड़ दी, बल्कि इससे शेखावाटी में जाटों की नाराजगी वोट बैंक पर भारी साबित हुई.

जाटलैंड की दो बड़ी सीट झुंझुनूं और नागौर पर भी फिर से हारे हुए प्रत्याशियों को टिकट देना गलत फैसला साबित हुआ है. वहीं बाड़मेर-जैसलमेर सीट पर रविंद्र सिंह भाटी को टिकट नहीं देने के बजाए कैलाश चौधरी पर दांव खेलना भी मंहगा पड़ा. टोंक सवाईमाधोपुर सीट पर भी सुखबीर जौनपुरिया का विरोध होने के बाद भी उसे टिकट दिया गया. इसके अलावा दौसा सीट पर भी कमजोर उम्मीदवार को उतारने का फैसला आत्मघाती साबित हुआ.

कारण 4. स्थानीय और जातीय समीकरण साधने में भी नाकाम रही बीजेपी

बीजेपी 25 लोकसभा सीटों पर राष्ट्रीय मुद्दों के सहारे चुनावी मैदान में उतरी थी. इनमें केवल पीएम मोदी के नाम पर चुनाव लड़ा गया. मगर स्थानीय मुद्दों पर किसी भी सवाल का जवाब नेताओं के पास नहीं था.

वहीं, कांग्रेस ने स्थानीय मुद्दों को अपना हथियार बनाया और जातीय समीकरण साधाने में भी कामयाब रही. वहीं कांग्रेस ने ज्यादातर नए चेहरों पर दांव खेला, यह फैसला सही साबित हुआ.

कारण 5. सत्ता और संगठन के बीच तालमेल का अभाव

राजस्थान में चुनाव प्रचार में सत्ता और संगठन में तालमेल काफी कम नज़र आया. प्रदेश प्रभारी का पद ख़ाली होने से जयपुर से दिल्ली के बीच सटीक संवाद नहीं हो पाया. मुद्दों में एकजुटता नहीं दिखाई दी. सरकार के मंत्री और संगठन के नेता अपने-अपने हिसाब से चुनाव प्रचार करते दिखे.

कारण 6. कांग्रेस के आरक्षण खत्म करने के मुद्दे की काट नहीं निकाल पाना

बीजेपी नेता लगातार कांग्रेस पर आरोप लगा रही है कि उन्होंने जनता को भटकाया है. SC-ST आरक्षण को खत्म करने के मुद्दे को झूठ बताया. लेकिन बीजेपी ने इन मुद्दों को हल्के में लिया और सही तरीके से इसका काउंटर भी करने में असमर्थ रही. लिहाजा आरक्षण और संविधान खत्म करने के मुद्दे पर राजस्थान की 6 सीटों पर SC-ST वोट बैंक की नाराजगी पार्टी को भारी पड़ी.

कारण 7. बीजेपी के बड़े नेता अपनी ही सीटों पर फंसे रहे

बीजेपी के कुछ बड़े नेता जिनके पास कई सीटों की जिम्मेदारी थी, लेकिन बड़े नेता अपनी ही सीटों पर फंसे रह गए. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी को पूरे संगठन को देखना था. लेकिन वह अपनी ही सीट पर चुनाव प्रचार में व्यस्त दिखे. ऐसे और भी कई बड़े नेता थे जो अपनी सीटों पर ही बंध कर रह गए.

गजेंद्र सिंह चौहान- जोधपुर, अर्जुन राम मेघवाल- बीकानेर, ओम बिरला-कोटा ऐसे नेताओं में शामिल हैं जिन्होंने केवल अपनी सीटों पर ही चुनाव प्रचार किया. वहीं किरोड़ी लाल मीणा ने दौसा सीट को अपनी नाक की लड़ाई बना लिया. इसी तरह राजेंद्र राठौड़ के लिए चूरू सीट प्रतिष्ठा की लड़ाई बन गई और वह वहीं फंसे रहे. वसुंधरा राजे ने खुद को अपने बेटे दुष्यंत सिंह के लिए झालावाड़ सीट तक ही सीमित रखा. उन्होंने किसी दूसरी सीट पर एक दौरा भी नहीं किया.

कारण 8. शेखावाटी की तीन सीटों पर अग्निवीर योजना का रहा बड़ा असर

लोकसभा चुनाव में महंगाई और बेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा थी जिसे लेकर कांग्रेस लगातार आक्रामक थी. लेकिन बीजेपी इस मुद्दों का ठीक से सामना नहीं कर पाई. वहीं शेखावाटी की तीन सीटें चूरू, झुंझुनूं और सीकर सीट पर अग्निवीर योजना की वजह से भी हार का सामना करना पड़ा. 

कारण 9. कांग्रेस से दल-बदलू नेताओं को टिकट देना गलत संदेश

बीजेपी नए चेहरों और कार्यकर्ताओं को आगे बढ़ाने के लिए जानी जाती है. लेकिन राजस्थान में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस से आए नेताओं पर भरोसा जताना बीजेपी को भारी पड़ा.

बांसवाड़ा सीट पर महेंद्र जीत मालवीया को टिकट देना भारी पड़ा जो तुरंत ही कांग्रेस से आए थे. इसी तरह नागौर सीट पर भी कांग्रेस से आई ज्योति मिर्धा को पहले विधानसभा और फिर लोकसभा के लिए टिकट देना स्थानीय लोगों में नाराजगी का कारण बनी.

कारण 10. बीजेपी महिला और फर्स्ट टाइम वोटरों को भी साधने में रही नाकाम

राजस्थान के भरतपुर और करौली-धौलपुर लोकसभा सीट पर महिला वोटर काफी ज्यादा थीं. पहली बार वोट डालने वाले युवाओं की भागीदारी भी 50 प्रतिशत थी. लेकिन बीजेपी के हाथ से यह दोनों सीटें निकल गई.

कारण 11. चुनाव के दौरान कई नेताओं की बयानबाज़ी भारी पड़ी

चुनाव के दौरान बीजेपी के बड़े नेताओं ने गलत बयानबाजी की जो बीजेपी को काफी भारी पड़ी. नागौर सीट पर ज्योति मिर्धा ने संविधान बदलने जैसे बयान देकर विवाद को जन्म दिया. वहीं किरोड़ी लाल मीणा ने दौसा सीट को जीतने के लिए मंत्री पद से इस्तीफे देने की घोषणा कर डाली.

बहरहाल, राजस्थान में बीजेपी के 11 सीटों पर हार के कारण बेहद गंभीर हैं. वहीं सीएम और संगठन की रिपोर्ट के आधार पर अब राजस्थान में कड़े फैसले लिये जा सकते हैं.

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