Rajasthan News: राजस्थान के कोटा और झालावाड़ इलाकों में कोटा स्टोन का कारोबार सालों से हजारों परिवारों की कमाई का सहारा बना हुआ है. लेकिन अब केंद्र सरकार का एक फैसला इस पूरे उद्योग को हिलाने वाला साबित हो सकता है. कोटा स्टोन को माइनर मिनरल से मेजर मिनरल की श्रेणी में डालने की तैयारी चल रही है. इससे जुड़े व्यापारियों खदान मालिकों और मजदूरों में अफरा-तफरी मच गई है.
संकट की जड़: मेजर मिनरल का फैसला
कोटा जिले का रामगंजमंडी दुनिया में कोटा स्टोन का सबसे बड़ा केंद्र माना जाता है. यहां हर रोज 10 हजार टन से ज्यादा पत्थर निकाला जाता है और 1000 से अधिक ट्रक इसे देश-विदेश भेजते हैं. लेकिन केंद्र सरकार ने इस स्टोन को मेजर मिनरल बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है.
इससे इंडियन ब्यूरो ऑफ माइंस (आईबीएम) के सख्त नियम लागू होंगे. सुरक्षा मानकों की जांच मॉनिटरिंग और कागजी काम बढ़ जाएगा. सबसे बड़ी मुश्किल रॉयल्टी का तीन गुना तक बढ़ना है. व्यापारियों का कहना है कि कोटा स्टोन लाइमस्टोन नहीं बल्कि फ्लोरिंग के लिए इस्तेमाल होने वाला खास पत्थर है. इसे मेजर श्रेणी में डालना गलत होगा क्योंकि छोटे कारोबार वाले इन नियमों को निभा नहीं पाएंगे.
रोजगार और कारोबार खतरे में
इस फैसले से 2500 से ज्यादा खदानें और प्रोसेसिंग यूनिट्स प्रभावित होंगी. सबसे ज्यादा मार 50 हजार से अधिक मजदूरों पर पड़ेगी जिनकी रोजी-रोटी इसी उद्योग से चलती है. लागत बढ़ने से छोटे खदान संचालक और व्यापारी टिक नहीं पाएंगे. मजदूर कहते हैं अगर खदानें बंद हुईं तो हमारा क्या होगा. हमारी कमाई इसी पर टिकी है. स्थानीय अर्थव्यवस्था भी चरमरा सकती है क्योंकि ये इलाका स्टोन कारोबार पर निर्भर है. व्यापारियों की मानें तो पूरा उद्योग बंद होने की कगार पर पहुंच सकता है.
दिल्ली तक पहुंची आवाज
इस संकट से निपटने के लिए कोटा स्टोन से जुड़े लोग केंद्र सरकार से मदद मांग रहे हैं. उन्होंने दिल्ली जाकर लोकसभा अध्यक्ष और मंत्रालय के अधिकारियों से मुलाकात की है. उनकी मांग साफ है कि कोटा स्टोन को माइनर मिनरल श्रेणी में ही रखा जाए. सख्त नियम छोटी यूनिट्स को झेलने लायक नहीं हैं. सरकार का अंतिम फैसला अभी आना बाकी है लेकिन हजारों परिवारों की जिंदगी इसी पर अटकी हुई है.
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