भगवान कृष्ण का दर्शन करने 3 दिन बाद पहुंचे थे महादेव, जानें लाल छतरी के दर्शन की वर्षों पुरानी मान्यता 

लाल छतरी के दर्शनों की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है. ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव को माता यशोदा ने कन्हैया के दर्शन लाल झरोखे में बैठकर दूर से करवाए थे और एकादशी पर यह सारा घटनाक्रम घटित हुआ था.

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Jhalrapatan News: राजस्थान अपने प्राचीन संस्कृति और परंपरा के लिए देशभर में अपनी एक अलग पहचान रखता है. ऐसी ही एक परंपरा झालरापाटन के द्वारकाधीश मंदिर में देखने को मिलती है. जहां परंपरागत रूप से मनाए जाने वाली लाल छतरी के दर्शन और दरीखाने की रस्म गुरुवार शाम को संपन्न हुई. लाल छतरी के दर्शनों का लाभ लेने के लिए श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा. लाल छतरी के दर्शन के पश्चात भगवान द्वारकाधीश अपने कक्षा में विराजित होते हैं, जहां देर रात तक उनके दर्शनों का सिलसिला जारी रहेगा. लाल छतरी के दर्शन और दरीखाने की रस्में जन्माष्टमी के तीन दिन बाद एकादशी पर आयोजित की जाती है.

क्या है लाल छतरी के दर्शन

लाल छतरी के दर्शनों की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है. ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव को माता यशोदा ने कन्हैया के दर्शन लाल झरोखे में बैठकर दूर से करवाए थे और एकादशी पर यह सारा घटनाक्रम घटित हुआ था. इसीलिए आज तक इस परंपरा को मनाया जाता है. द्वारकाधीश मंदिर के पुजारी ने बताया कि भगवान श्री कृष्ण का जन्म होने के बाद एकादशी वाले दिन भगवान शिव शंकर कन्हैया के दर्शन करने पहुंचे तो माता यशोदा ने उन्हें दर्शन कराने से मना कर दिया, क्योंकि वह साधु वेश में थे.

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माता यशोदा ने कहा कि आपको देखकर मेरा लाला डर जाएगा. ऐसे में जब निराश होकर भगवान शिव वापस लौटने लगे तो माता यशोदा ने उन्हें अपने भवन के ऊपर बने हुए लाल झरोखे जिसे छतरी भी कहा जाता है वहां से कन्हैया के दर्शन करवाए थे, जहां नीचे खड़े होकर भगवान शिव ने कन्हैया के दर्शन किए थे.

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दरीखाने से मिलती थी कैदियों को रिहाई

लाल छतरी के दर्शनों के अवसर पर यहां पर एक और परंपरा निभाई जाती है जिसको दरीखानो की रस्म कहते हैं. द्वारकाधीश मंदिर में लाल छतरी के दर्शनों के समय झालावाड़ के राज परिवार की गादी आज तक भी लगाई जाती है. यह परंपरा राज परिवार द्वारा ही यहां शुरू की गई थी, जिसमें तत्कालीन झालावाड़ नरेश गादी पर बैठते थे और अच्छा व्यवहार रखने वाले जेल बंदियों को यहां पर लाया जाता था और उनके ऊपर चंदन के छींटे डाले जाते थे. जिसके बाद जो भी कैदी यहां भगवान के समक्ष क्षमा याचना कर लेता था उसको झालावाड़ नरेश द्वारा की कैद मुक्त कर दिया जाता था.

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राजघराने की तरफ से होती है प्रसादी

यह मंदिर पूर्व में राज घराने का निवास स्थान हुआ करता था, जहां से झालावाड़ रियासत की स्थापना के बाद जब राज परिवार राज भवन में चला गया तो झालावाड़ नरेश राजेंद्र सिंह ने बड़ी ही श्रद्धा और भक्ति भावना के साथ इस भवन में भगवान द्वारकाधीश और नवनीत प्रिया जी की प्रतिमाएं स्थापित करवाई थी, तभी से जन्माष्टमी और लाल छतरी के दर्शनों के अवसर पर यहां झालावाड़ राजघराने द्वारा प्रसाद की व्यवस्था की जाती है जो यहां बड़ी तादाद में पहुंचने वाले श्रद्धालुओं को वितरित किया जाता है.

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