Rajasthan Politics: राजस्थान में वोट प्रतिशत घटने से कहीं अधिक वोट शेयर में छिपा है हार-जीत का गणित, समझें समीकरण

Rajasthan Politics: राजस्थान में पहले चरण का मतदान हो चुका है. पहले चरण की 12 सीटों पर मतदान धीमा हुआ. वोट प्रतिशत कम रहा. इससे तरह-तरह के सियासी कयास लगाए जा रहे हैं. लेकिन प्रदेश की राजनीति में वोट प्रतिशत कम या अधिक होने से ज्यादा वोट शेयर में हार-जीत का गणित छिपा होता है.

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प्रतीकात्मक तस्वीर.

Lok Sabha ELections 2024: राजस्थान (Rajasthan)  की 12 लोकसभा सीटों पर शुक्रवार को पहले चरण में मतदान हो चुका है. अब प्रदेश की शेष बची 13 सीटों पर 26 अप्रैल को मतदान होना है. पहले चरण का मतदान प्रतिशत बीते दो आम चुनावों से कम रहा. मतदान प्रतिशत कम होने का नतीजों पर क्या असर पड़ेगा... इसपर मंथन जारी है. लेकिन प्रदेश की राजनीति में मतदान प्रतिशत कम होने से ज्यादा जरूरी वोट शेयर मायने रखता है. किसी चुनाव में किस पार्टी की हार-जीत होगी यह वोट शेयर से ही पता चलता है. आइए समझते हैं इसके सियासी मायने. 

आम चुनाव में वोट प्रतिशत कम होने से कांग्रेस से होता फायदा

दरअसल राजस्थान में पहले चरण की 12 सीटों पर करीब छह फीसदी मतदान कम होने से राजस्थान में इस बात को लेकर चर्चा तेज हो गई है कि इसका फ़ायदा और नुक़सान किस पार्टी को होने जा रहा है. राजस्थान में पहले चरण में मतदाताओं ने दोनों ही दलों को चिंता में डाल दिया है. हालांकि अगर पिछले तीन चुनाव का रिकॉर्ड खंगाले तो पता चलता है कि विधानसभा चुनाव में वोट प्रतिशत बढ़ने से सत्तारूढ़ पार्टी को नुक़सान होता है जबकि लोकसभा चुनाव में वोट प्रतिशत कम होने से कांग्रेस को लाभ होता है. 

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पिछले तीन आम चुनावों का वोटिंग प्रतिशत

इस लिहाज़ से कहा जा सकता है कि राजस्थान में पहले चरण की 12 सीटों पर मतदान 57.87 फीसदी से कांग्रेस को राहत है. असल में 2009 में इन 12 सीटों पर वोटिंग प्रतिशत 48.12 रहा. जबकि 2014 में मतदान 13 फीसदी से बढ़कर 61.66 प्रतिशत हो गया था. साल  2019 में ये आंकड़ा और बढ़ कर 63.71 फीसदी तक पहुँच गया था. 

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लेकिन वोटिंग प्रतिशत से ज़्यादा महत्वपूर्ण सवाल ये है कि पहले चरण में जो मतदान हुआ है उसमें कांग्रेस और भाजपा के बीच वोट शेयर क्या रहने वाला है क्योंकि हार जीत का पूरा गणित इसी वोट शेयर के भीतर छिपा होता है. 

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2014 और 2019 में भाजपा, कांग्रेस के वोट शेयर में था 24 फीसदी का अंतर

क्योंकि 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के वोट शेयर में करीब 24 फीसदी का अंतर रहा था. इस कारण कांग्रेस दो बार से अपना खाता भी नहीं खोल पाई थी. अगर बात 2009 की तो कांग्रेस का राजस्थान में वोट शेयर 47.2 और भाजपा का 36.6 फीसदी था. तब कांग्रेस ने यहां 20 सीटें जीती थीं और भाजपा ने चार और एक सीट निर्दलीय के खाते में गई थी. इस चुनाव में कांग्रेस-भाजपा के वोट शेयर में करीब 11 फीसदी का अंतर रहा था. 

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि राजस्थान में वोट प्रतिशत में  में कमी आने के बाद देखना होगा कांग्रेस भाजपा के वोट शेयर में क्या अंतर रहेगा. हार जीत का पूरा गणित इसी अंतर में छिपा हुआ है. अब वोट शेयर का फाइनल आंकड़ा तो 4 जून को ही आएगा. ऐसे में अभी इस मामले में कुछ भी कहना जल्दबाजी होगा. देखना है कि 4 जून को राजस्थान की राजनीति का ऊंट किस करवट बैठता है. 

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