मोहर्रम की शुरुआत के साथ ही इमाम हुसैन की शहादत की याद में शहरभर में ताजिए बनने लगे हैं. जैसे ही माह-ए-मोहर्रम का चांद निकला, राजधानी की गलियों में मातम और अकीदत का माहौल दिखने लगा. मोहर्रम को इमामबाड़े से घाटगेट कब्रिस्तान तक 300 से ज्यादा छोटे-बड़े ताजियों का जुलूस निकलेगा. जयपुर का ऐतिहासिक सोने-चांदी का ताजिया भी निकलेगा.
राजा रामसिंंह ने बनाया था सोने-चांदी का ताजिया
जयपुर के तत्कालीन महाराजा सवाई रामसिंह ने सन1868 में सोने-चांदी का शाही ताजिया बनवाया था. मोहल्ला महावतान के रहने वाले बताते हैं कि बीमार होने पर राजा ने मन्नत मांगी थी और स्वस्थ होने के बाद करीब 10 किलो सोना और 50 किलो चांदी से बना यह ताजिया तैयार करवाया गया. इसे सहारनपुर (यूपी) से कारीगर बुलवाकर बनवाया गया था. इसकी चमक बरकरार रहे, इसलिए सालभर रेशमी कपड़े से ढककर रखते हैं . यह ताजिया हर साल मोहर्रम में इमामबाड़े से निकाला जाता है, लेकिन इसे सुपुर्द-ए-खाक नहीं किया जाता, बल्कि वापस इमामबाड़े में रख दिया जाता है.
10 किलो सोना और 50 किलो चांदी से बना यह ताजिया तैयार करवाया गया था.
हिंंदू-मुस्लिम समुदाय के लोग चढ़ावा अर्पित करते हैं
माह-ए-मोहर्रम की 10वीं तारीख यौम-ए-अशूरा को इमामबाड़े से घाटगेट कब्रिस्तान तक ताजियों का भव्य जुलूस निकाला निकलता है. इसमें जयपुर के अलग-अलग मोहल्लों से ताजिए शामिल होते हैं. चार दिन पहले त्रिपोलिया गेट पर शाही ताजिए को आमजन के दर्शनार्थ रखा जाता है. यहां भारी संख्या में हिन्दू और मुस्लिम समुदाय के लोग पहुंचकर चढ़ावा अर्पित करते हैं.
अब्दुल सत्तार का परिवार की तीन पीढ़ियां संभाल रही जिम्मेदारी
जुलूस के दौरान मातमी धुनें, ढोल-ताशों की थाप और ‘या हुसैन' की सदाएं गूंजती हैं. आयोजन में सेवा कार्यों से जुड़े खिदमतगार और सामाजिक कार्यकर्ता बड़ी भूमिका निभाते हैं. खास बात यह है कि शाही ताजिए की देखरेख की जिम्मेदारी महावतान मोहल्ले के अब्दुल सत्तार के परिवार की तीन पीढ़ियां संभाल रही हैं.
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