पश्चिमी राजस्थान के बाड़मेर में, मुख्यालय से मात्र 55 किलोमीटर दूर विरात्रा की पहाड़ियों पर बसा है मां वाकल माता का चमत्कारिक मंदिर. यह मंदिर न केवल राजस्थान बल्कि पूरे भारत में श्रद्धा और आस्था का केंद्र है. इस मंदिर का संबंध पाकिस्तान के बलूचिस्तान में स्थित प्राचीन हिंगलाज शक्तिपीठ से है, जो इसे और भी खास बनाता है.
पहाड़ी था मां का मंदिर
वाकल माता का मंदिर पहाड़ी पर था. लोगों का मानना है कि भक्तों को दर्शन के लिए चढ़ाई में कठिनाई होती थी, तो मां खुद नीचे उतर आईं. इस दौरान मूर्ति की गर्दन टेढ़ी हो गई, जिसके कारण मां का नाम 'वाकल माता' (वक्र यानी टेढ़ा) पड़ गया. इसके बाद, मां का नया मंदिर नीचे बनाया गया, जहां आज भी लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं.
हर मनोकामना होती है पूरी
मां वाकल माता के चमत्कारों की कहानियां भक्तों की जुबानी सुनने को मिलती हैं. कोटा की रहने वाली रजनी, जो बचपन से इस मंदिर में आ रही हैं, बताती हैं, "मैं जब भी मां के दरबार में आई, मेरी हर मन्नत पूरी हुई. मां के दर्शन से सारे दुख-दर्द दूर हो जाते हैं." न केवल राजस्थान, बल्कि देश के कोने-कोने से भक्त मां के चमत्कारों का अनुभव करने आते हैं.
हिंगला माता मंदिर से है विशेष नाता
पाकिस्तान के बलूचिस्तान में हिंगलाज माता शक्तिपीठ हिंदू धर्म में 51 शक्तिपीठों में से एक है. यह स्थान आदि शक्ति का प्रतीक है, जहां मां सती का सिर गिरा था, जो भक्त हिंगलाज माता के दर्शन के लिए बलूचिस्तान नहीं जा पाते, वे वाकल माता मंदिर में आकर अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं. मां वाकल माता, हिंगलाज माता की ही शक्ति का स्वरूप हैं. दोनों मंदिरों की आध्यात्मिक शक्ति एक-दूसरे से जुड़ी हुई है.
आज भी जीवंत है मां की महिमा
वाकल माता मंदिर में साल भर भक्तों का तांता लगा रहता है. विशेषकर नवरात्रि के दौरान यहां भारी भीड़ उमड़ती है. भक्त अपनी मनोकामनाएं लेकर मां के चरणों में सिर झुकाते हैं, और मां उनकी हर पुकार सुनती हैं. मंदिर का प्राकृतिक सौंदर्य और आध्यात्मिक शांति भक्तों को और भी आकर्षित करती है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.
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