Mohan Bhagwat Speech: मोहन भागवत ने बताई 'हिंदू' की परिभाषा, बोले- 'भारत में परिवार के संस्कारों को खतरा'

Mohan Bhagwat Alwar Visit: डॉ. भागवत ने अलवर में 2842 स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए कहा कि भारत में परिवार के संस्कारों को खतरा है. मीडिया के दुरुपयोग से नई पीढ़ी बहुत तेजी से अपने संस्कार भूल रही है.

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Rajasthan News: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने हिंदू धर्म को सबके कल्याण की कामना करने वाला विश्व धर्म बताते हुए रविवार को कहा कि हिंदू का मतलब विश्व का सबसे उदारतम मानव है जो सब कुछ स्वीकार करता है. इसके साथ ही उन्होंने स्वयंसेवकों से सामाजिक समरसता के माध्यम से बदलाव लाने का आह्वान करते हुए कहा कि हमें छुआछूत के भाव को पूरी तरह मिटा देना है. डॉ. भागवत अलवर के इन्दिरा गांधी खेल मैदान में स्वयंसेवकों के एकत्रीकरण कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे.

उन्होंने कहा, 'हमारे राष्ट्र को समर्थ करना है. हमने प्रार्थना में ही कहा है कि यह हिंदू राष्ट्र है क्योंकि हिंदू समाज इसका उत्तरदायी है. इस राष्ट्र का अच्छा होता है तो हिंदू समाज की कीर्ति बढ़ती है. इस राष्ट्र में कुछ गड़बड़ होता है तो इसका दोष हिंदू समाज पर आता है, क्योंकि वे ही इस देश के कर्ताधर्ता हैं. राष्ट्र को परम वैभव संपन्न और सामर्थ्यवान बनाने का काम पुरुषार्थ के साथ करने की आवश्यकता है और हमें समर्थ बनना है, जिसके लिए पूरे समाज को योग्य बनाना पड़ेगा.' 

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मोहन भागवत ने बताई हिंदू की परिभाषा

जिसे हम हिंदू धर्म कहते हैं यह वास्तव में मानव धर्म है, विश्व धर्म है और सबके कल्याण की कामना लेकर चलता है. हिंदू का मतलब विश्व का सबसे उदारतम मानव, जो सब कुछ स्वीकार करता है, सबके प्रति सद्भावना रखता है. पराक्रमी पूर्वजों का वंशज है जो विद्या का उपयोग विवाद पैदा करने के लिए नहीं करता, ज्ञान देने के लिए करता है. हिंदू धन का उपयोग मदमस्त होने के लिए नहीं करता, दान के लिए करता है और शक्ति का उपयोग दुर्बलों की रक्षा के लिए करता है. यह जिसका शील है, यह जिसकी संस्कृति है वह हिंदू है. चाहे वह पूजा किसी की भी करता हो, भाषा कोई भी बोलते हो, किसी भी जात-पात में जन्मा हो, किसी भी प्रांत का रहने वाला हो, कोई भी खानपान रीति रिवाज को मानता हो. ये मूल्य और संस्कृति जिनकी है, वह सब हिंदू हैं.'

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5 प्रमुख मूल्यों को अपनाने का आह्वान

स्वयंसेवकों से छुआछूत और ऊंच-नीच का भाव मिटाने का आह्वान करते हुए उन्होंने कहा, 'हम अपने धर्म को भूलकर स्वार्थ के अधीन हो गए, इसलिए छुआछूत बढ़ा, ऊंच-नीच का भाव बढ़ा, हमें इस भाव को पूरी तरह मिटाना है. जहां संघ का काम प्रभावी है, संघ की शक्ति है, वहां कम से कम मंदिर, पानी, शमशान सब हिंदुओं के लिए खुले होंगे. यह काम समाज का मन बदलते हुए करना है. सामाजिक समरसता के माध्यम से परिवर्तन लाना है. यहां जारी बयान के अनुसार सरसंघचालक ने स्वयंसेवकों से सामाजिक समरसता, पर्यावरण, कुटुम्ब प्रबोधन, स्व का भाव और नागरिक अनुशासन इन पांच विषयों को अपने जीवन में उतारने का आह्वान किया. उन्होंने कहा कि जब इन बातों को स्वयंसेवक अपने जीवन में उतारेंगे तब समाज भी इनका अनुसरण करेगा.

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'आज विरोधी भी संघ को मन से मानते हैं'

भागवत ने कहा, 'अगले वर्ष संघ कार्य को 100 वर्ष पूरे हो रहे हैं. संघ की कार्य पद्धति दीर्घकाल से जारी है. हम कार्य करते हैं तो उसके पीछे विचार क्या है, यह हमें ठीक से समझ लेना चाहिए और अपनी कृति के पीछे यह सोच हमेशा जागृत रहनी चाहिए. पहले संघ को न कोई नहीं जानता था और न कोई मानता था. लेकिन अब सब जानते भी हैं और मानते भी हैं. हमारा विरोध करने वाले भी जुबां से तो विरोध करते हैं, लेकिन मन से तो मानते ही हैं. इसलिए अब हमें हिंदू धर्म, हिंदू संस्कृति और हिंदू समाज का संरक्षण राष्ट्र की सर्वांगीण उन्नति के लिए करना है.'

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