Rajasthan: उर्दू-अरबी-फारसी नहीं, संस्कृत में पढ़ी गई नात, बीकानेर के मदरसे में सिखाई गई भाषा

आमतौर पर हमारे देश में उर्दू, अरबी या फारसी में नात सुनने को मिलती है. लेकिन सागरीय संस्कृति वाले शहर बीकानेर के मुहल्ला दमामियान में किसी भी इस्लामी जलसे की शुरुआत हजरत मुहम्मद साहब की शान में संस्कृत में पढ़ी जाने वाली नात से ही होती है.

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Rajasthan News: अभी तक आपने इस्लाम धर्म की मजलिसों में होने वाली तकरीरों और नातख्वानी को उर्दू जबान में ही सुना होगा. लेकिन आपको अगर इस्लाम धर्म के किसी कार्यक्रम में संस्कृत भाषा सुनने को मिले और वो भी इस्लाम के आखिरी पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहब की शान में नात पढ़ी जाए तो आपको कैसा महसूस होगा. शायद आप हैरत में पड़ जाएंगे. मगर बीकानेर में ऐसा ही हो रहा है. यहां कई सालों से संस्कृत भाषा में मुहम्मद साहब की तारीफ में नात कही जा रही है.

मदरसे में सीखी संस्कृत भाषा में नात

आमतौर पर हमारे देश में उर्दू, अरबी या फारसी में नात सुनने को मिलती है. लेकिन सागरीय संस्कृति वाले शहर बीकानेर के मुहल्ला दमामियान में किसी भी इस्लामी जलसे की शुरुआत हजरत मुहम्मद साहब की शान में संस्कृत में पढ़ी जाने वाली नात से ही होती है. खास बात ये है कि इसे पढ़ने वाले सभी लोग मदरसे से शिक्षित हैं. यहां के लोगों को नज्मी मियां की कही नात कंठस्थ है. 'नात' का मतलब है इस्लाम के आखिरी नबी हजरत मुहम्मद साहब की शान को बयान करना होता है. दुनिया की हर जबान में हजरत मुहम्मद साहब की तारीफ में नात कही जाती है. हमारे देश में भी नातख्वानी के महफिलें अक्सर देखने को मिलती हैं.

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हर धर्म के लोग हो जाते हैं भाव-विभोर

संस्कृत में नात पढ़ने वाले नातख्वां अलीमुद्दीन बताते हैं कि जब इस नात को पढ़ा जाता है तो मुस्लिम ही नहीं सनातन धर्म को मानने वाले अकीदतमंद भी भाव-विभोर हो जाते हैं और झूमने लगते हैं. बीकानेर स्थित लालेश्वर महादेव मन्दिर के अधिष्ठाता रहे ब्रह्मलीन स्वामी सोमगिरि महाराज को याद करते हुए वे बताते हैं कि जब पहली बार उन्होंने इस नात को सुना तो वे ताअज्जुब से देखने लगे और बाद में जब भी किसी कार्यक्रम में शामिल होते तो उनकी फरमाइश इस नात की रहती थी.

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25 साल पहले ऐसे हुई थी शुरुआत  

संस्कृतिकर्मी अब्दुल सत्तार कमल बताते हैं कि नज्मी मियां की कही ये नात बीकानेर में तकरीबन 25 सालों से पढ़ी जा रही है. सबसे पहले इसे पढ़ने की शुरुआत बीकानेर की सागरीय संस्कृति के वाहक रहे मरहूम हाफिज गुलाम रसूल शाद ने की थी. उन्होंने आम लोगों तक इस नात को पहुंचाया और उसके बाद संस्कृत में लिखी गई ये नात लोगों के दिलों में उतरती गई.

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'दायरों को खत्म करते हैं महापुरुष'

जाने-माने लेखक मुहम्मद अशफाक कादरी का कहना है कि महापुरुष किसी दायरे में नहीं बंधे होते, बल्कि वे दायरों को खत्म करने के लिए दुनिया में आते हैं. हजरत मुहम्मद साहब भी सिर्फ मुसलमानों के लिए नहीं, बल्कि पूरी कायनात के लिए ईश्वर की कृपा बन कर दुनिया में तशरीफ लाए. यही वजह है कि देव भाषा संस्कृत में भी उनकी महानता बयान की जाती है.

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