10 मस्तक और 54 हाथों वाली देवी की इकलौती प्रतिमा, 1857 में इन्हीं के आशीर्वाद से लोगों ने अंग्रेजों को पिला दिया था पानी

सुगाली माता को एक शक्तिशाली और दयालु देवी के रूप में जाना जाता है. वे अपने भक्तों की रक्षा करने और उनकी इच्छाओं को पूरा करने के लिए जानी जाती हैं. सुगाली माता को विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों की संरक्षक के रूप में पूजते हैं.

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10 मस्तक और 54 हाथों वाली देवी की प्रतिमा

इस समय पूरे देश में नवरात्रि की धूम है. जगह-जगह लोग मां की पूजा-अर्चना में तल्लीन हैं. रविवार को अष्टमी के मौके पर लोगों में माता की भक्ति भाव से पूजा की. महिलाओं ने माता को चुनरी भरी. कल नवमी के मौके पर भी हवन के बाद नवरात्रि का अनुष्ठान पूरा होगा. इससे पहले हम आपको बताने जा रहे हैं कि 10 मस्तक और 54 हाथों वाली देश की इकलौती देवी प्रतिमा की कहानी. सुगाली माता नामक देवी की यह प्रतिमा राजस्थान के पाली जिले में हैं. जहां इस समय पूजा-अर्चना करने वाले भक्तों का तांता लगा है.   

सुगाली माता आऊवा राजघराने की कुल देवी के रूप में मारवाड़ क्षेत्र की विख्यात हैं. सुगाली माता की प्राचीन प्रतिमा काले पत्थर से बनी है और इसमें 54 हाथ और 10 मस्तक हैं. यह प्रतिमा आऊवा के किले में स्थित थी, लेकिन ब्रिटिश काल के दौरान अंग्रेज सैनिकों ने इसे खंडित कर दिया और अपने साथ ले गए. काले पत्थर से निर्मित सुगाली माता की प्रतिमा इतिहास में भी विशेष महत्व रखती है. कहा जाता है कि कुलदेवी सुगाली माता के आऊवा शासक ठाकुर कुशाल सिंह चम्पावत परम भक्त थे.

युद्ध में आऊवा की रक्षा करती थी देवी सुगाली

पाली जिले से महज 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित आऊवा गांव अपने अदम्य शौर्य, साहस, बलिदान के लिए जाना जाता है, और वहां स्थित सुगाली माता मंदिर भक्ति व शक्ति का संगम स्थल है. यह स्थान श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र भी है.

सुगाली माता के जीवन और उत्पत्ति के बारे में कुछ स्पष्ट नहीं है लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि वे एक देवी हैं जिनकी प्राचीन काल से मारवाड़ क्षेत्र में पूजा की जाती है. जबकि अन्य लोगों का मानना है कि वे एक वास्तविक महिला थीं जो एक महान योद्धा और शासक थीं और युद्ध के दौरान आऊवा गांव के लोगों की रक्षा करती थी.

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सुगाली माता को एक शक्तिशाली और दयालु देवी के रूप में जाना जाता है. वे अपने भक्तों की रक्षा करने और उनकी इच्छाओं को पूरा करने के लिए जानी जाती हैं. सुगाली माता को विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों की संरक्षक के रूप में पूजते हैं. ऐसा कहा जाता है उस समय सब राजे रजवाड़े ब्रिटिशों के साथ मिले हुए थे. 

आऊवा शासक ठाकुर कुशाल सिंह चम्पावत 1857 प्रथम स्वाधीनता संग्राम में ब्रिटिश हुकूमत को लोहे के चने चबाने पर मजबूर कर दिया था. जोधपुर में युद्ध के दौरान पॉलिटिकल एजेंट मॉक मेंशन का सिर काट आऊवा किल्ले की प्राचीर पर टांग दिया था. मान्यता है कि जब भी ब्रिटिश सैनिक आऊवा पर हमला करते उन्हें आऊवा सैनिकों के बीच काली आंधी में औरतें तलवार चलाती नजर आती, इसके साथ ही आऊवा पर होने वाले हमले की सूचना देवी के माध्यम से पहले ही ठाकुर कुशालसिंह को मिल जाती थीं. 

आऊवा शासक ठाकुर कुशाल सिंह चम्पावत

मूर्ति को खंडित कर अपने साथ ले गए अंग्रेज

यही कारण था कि क्रांतिकारी युद्ध मे उतरने से पहले देवी की पूजा अर्चना कर युद्ध का शखनाद करते थे, इतिहास में आऊवा सुगाली माता को क्रांतिकारियों की देवी का नाम दिया गया. युद्ध मे लगातार हो रही हार से ब्रिटिश सत्ता तिलमिला उठी, गुप्तचरों के माध्यम से पता चला कि आऊवा के सैनिकों की देवी सुगाली माता युद्ध में उनके साथ रहती है. ब्रिटिश सेना ने माता की प्रतिमा पर गाय का खून चढ़ा प्रतिमा को खंडित कर अपने साथ ले गए. स्थानीय लोगों का कहना है कि सुगाली माता के आशीर्वाद से भी 1857 में लोगों ने अंग्रेजों को पानी पिला दिया था.

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सुगाली माता का नई मूर्ति स्थापित करवाया गया

आऊवा शासक कुशालसिंह के वंशज ड़िंगळ भाषा के कवि ठाकुर नाहरसिंह ने पुनः सुगाली माता की प्रतिमा को मन्दिर में स्थापित करवाया लेकिन पत्थर से निर्मित प्रतिमा की गर्दन अपने आप तिरछी हो गई. नवरात्रि में सैकड़ों श्रद्धालु मां के दरबार में पैदल पहुंच दर्शन-पूजन करते और मनोकामनाएं मांगते हैं.

मंदिर में स्थापित सुगाली माता की नई प्रतिमा

बीजेपी ने सुगाली माता की हूबहू प्रतिमा बनवाया

वर्तमान में मुख्य मंदिर में दो प्रतिमाएं स्थापित है, जिनकी पूजा-अर्चना एक साथ की जाती है. सुगाली माता मंदिर अपनी पुरानी अवस्था में अपने इतिहास को समेटे खड़ी है. वहीं 162 साल बाद तत्कालीन बीजेपी सरकार ने 2018 में आऊवा गाँव मे 1857 प्रथम स्वाधीनता संग्राम पैनोरमा बना ग्रामीणों को सुपुर्द किया और पैनोरमा में सुगाली माता की हूबहू नई प्रतिमा बना स्थापित की गई. जिसको देखने के लिए दूर-दूर से लोग यहां पर आते हैं. नवरात्रि के दिनों मे यहां पर आसपास के गांवों के अलावा दूसरे राज्यों से भी लोग माता के दर्शन करने आते हैं.

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