Missing Childs: 'ऑपरेशन नन्हे फरिश्ते' जानिए रेलवे ने 7 साल में कैसे 84,119 बच्चों को बचाया?

लापता बच्चों की तलाश में 'ऑपरेशन नन्हे फरिश्ते' अभियान संजीवनी साबित हुआ है. रेलवे सुरक्षा बल ने पिछले 7 वर्षों के दौरान चलाए गए इस अभियान के दौरान 84,119 बच्चों को बचाया है.

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प्रतीकात्मक तस्वीर. (AI)

Missing Childs: परिवार का कोई बच्चा यदि किसी कारणवश गायब हो जाए तो मां-पिता के साथ-साथ सभी सदस्यों की हालत खराब हो जाती है. मेला, यात्रा जैसी चीजों में बच्चों के गायब होने की घटनाएं ज्यादा होती है. ट्रेनों या फिर रेलवे स्टेशनों पर जब कोई बच्चा लापता हो जाता है, तब उनकी तलाश के लिए रेलवे पुलिस बल (आरपीएफ) द्वारा चलाया गया 'ऑपरेशन नन्हे फरिश्ते' अभियान संजीवनी साबित हुआ है. रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) ने पिछले 7 वर्षों के दौरान चलाए गए इस अभियान के दौरान 84,119 बच्चों को बचाया है. 

कई बच्चे घर से भाग भी जाते हैं 

इन बच्चों में वे सभी बच्चे शामिल हैं, जो या तो घर से भाग गए थे या लापता हो गए या बिछड़ गए थे. इन बच्चों को ना केवल सकुशल बचाया गया, बल्कि उन्हें परिजनों के सुपुर्द कर परिवारों को भी संबल प्रदान किया है. यह अभियान उन हजारों बच्चों के लिए एक जीवन रेखा है, जो खुद को अनिश्चित परिस्थितियों में पाते हैं.

'ऑपरेशन नन्हे फरिश्ते'  एक मिशन जो विभिन्न भारतीय रेलवे जोनों में पीड़ित बच्चों को बचाने के लिए समर्पित है. इसके तहत पिछले सात वर्षों (2018-मई 2024) के दौरान, आरपीएफ ने स्टेशनों और ट्रेनों में खतरे में पड़े या खतरे में पड़ने से 84,119 बच्चों को  बचाया है.

वर्ष 2018 में हुई थी 'ऑपरेशन नन्हे फरिश्ते' की शुरुआत

इस अभियान की शुरुआत साल 2018 में हुई थी. उस वर्ष, आरपीएफ ने कुल 17,112 पीड़ित बच्चों को बचाया, जिनमें लड़के और लड़कियां दोनों शामिल हैं. बचाए गए 17,112 बच्चों में से 13,187 बच्चों की पहचान भागे हुए बच्चों के रूप में की गई. वहीं 2105 लापता पाए गए. 1091 बच्चे बिछड़े हुए, 400 बच्चे निराश्रित, 87 अपहृत, 78 मानसिक रूप से विक्षिप्त और 131 बेघर बच्चे पाए गए.

इसी प्रकार वर्ष 2019 के दौरान, आरपीएफ के प्रयास लगातार सफल रहे और लड़कों और लड़कियों दोनों सहित कुल 15,932 बच्चों को बचाया गया. इन बच्चों में से 12,708 भागे हुए, 1454 लापता, 1036 बिछड़े हुए, 350 निराश्रित, 56 अपहृत, 123 मानसिक रूप से विक्षिप्त और 171 बेघर बच्चों के रूप में पहचाने गए.

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कोविड महामारी के दौरान बढ़ गई परेशानी

वर्ष 2020 कोविड महामारी के कारण बच्चों को बचाना चुनौतीपूर्ण था. इसके बावजूद आरपीएफ 5,011 बच्चों को बचाने में कामयाब रही. वर्ष 2021 के दौरान, आरपीएफ ने अपने बचाव कार्यों में पुनरुत्थान देखा, जिससे 11,907 बच्चों को बचाया गया. इस वर्ष पाए गए और संरक्षित किए गए बच्चों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई. 

जिसमें 9601 बच्चों की पहचान भागे हुए के रूप में, 961 लापता के रूप में, 648 बिछड़े हुए, 370 निराश्रित, 78 अपहृत, 82 मानसिक रूप से विकलांग और 123 बेघर बच्चों के रूप में पहचाने गए.

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2023 में आरपीएफ ने 11794 बच्चों को बचाया

वर्ष 2023 के दौरान, आरपीएफ 11,794 बच्चों को बचाने में सफल रही. इनमें से 8916 बच्चे घर से भागे हुए थे. 986 लापता थे. 1055 बिछड़े हुए थे, 236 निराश्रित थे, 156 अपहृत थे. 112 मानसिक रूप से विकलांग थे, और 237 बेघर बच्चे थे. आरपीएफ ने इन असुरक्षित बच्चों की सुरक्षा और उनकी अच्छी देखभाल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

इस साल 5 महीने में 3430 बच्चों को बचाया

इसी तरह वर्ष 2024 के पहले पांच महीनों में, आरपीएफ ने 4,607 बच्चों को बचाया है. जिसमे 3430 घर से भागे हुए बच्चों को बचाया गया है, शुरुआती रुझान ऑपरेशन 'नन्हे फरिश्ते' के प्रति निरंतर प्रतिबद्धता का प्रमाण देते हैं. ये संख्या बच्चों के भागने की लगातार जारी समस्या तथा उन्हें अपने माता पिता के पास सुरक्षित पहुंचने के लिए आरपीएफ के किए गए प्रयासों दोनों को दर्शाती हैं.

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बच्चों को बचाने में जागरूकता भी जरूरी

आरपीएफ ने अपने प्रयासों से, न केवल बच्चों को बचाया है, बल्कि घर से भागे हुए और लापता बच्चों की दुर्दशा के बारे में जागरूकता भी बढ़ाई है. जिसमे आगे की कार्रवाई और विभिन्न हितधारकों से समर्थन मिला. आरपीएफ का ऑपरेशन का दायरा लगतार बढ़ रहा है. रोज नई चुनौतियों का सामना कर भारत के विशाल रेलवे नेटवर्क में बच्चों के लिए एक सुरक्षित वातावरण बनाने का प्रयास किया जा रहा है. 

135 रेलवे स्टेशनों पर चाइल्ड हेल्प डेस्क

ट्रैक चाइल्ड पोर्टल पर बच्चों की पूरी जानकारी उपलब्ध रहती है. भारत के 135 से अधिक रेलवे स्टेशनों पर चाइल्ड हेल्प डेस्क उपलब्ध है. आरपीएफ मुक्त कराए गए बच्चों को जिला बाल कल्याण समिति को सौंप देती है. फिर जिला बाल कल्याण समिति बच्चों को उनके माता-पिता को सौंप देती है.

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