सेना के लिए खाना ले जा रही ट्रेन पर पाक ने की थी बमबारी, बाड़मेर रेलवे स्टेशन पर शहीदों के स्मारक बनाने की मांग 

बाड़मेर रेलवे स्टेशन इकलौता ऐसा स्टेशन है जिनके कार्मिकों के पास अशोक चक्र शौर्य चक्र और शहीद सम्मान है इन कार्मिकों ने 1965 के युद्ध में सेना को राशन और एम्युनिशन पहुंचाने में जुटे 17 रेल कार्मिक पाकिस्तान की गोला बारी में शहीद हो गए थे.

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Barmer Rajasthan News: अमृत भारत स्टेशन योजना के तहत करोड़ों रुपए की लागत से बाड़मेर में नया रेलवे स्टेशन का निर्माण हो रहा है. यह नया रेलवे स्टेशन कई अत्याधुनिक सुविधाएं से सजा हुआ होगा. ऐसे में इस नए रेलवे स्टेशन पर अपने अदम्य साहस और वीरता के बल पर अशोक चक्र और शौर्य चक्र पाने के साथ अपना सर्वोच्च बलिदान करने वाले रेलवे शहीदों के स्मारक बनाने की मांग इन दिनों जोर पकड़ रही है.

आपको बता दें कि 1965 और 1971 में भारत पाकिस्तान युद्ध में अपने अदम्य साहस और वीरता का परिचय देते हुए भारतीय सेना से कंधे से कंधा मिलाकर राशन और एम्युनिशन पहुंचाने में अपनी जान की चिंता किए बिना अपने कर्तव्य में जुटे रहे कई लोगों ने अपने प्राणों बलिदान दिया था.

मिला था अशोक चक्र शौर्य चक्र और शहीद सम्मान

बाड़मेर रेलवे स्टेशन इकलौता ऐसा स्टेशन है जिनके कार्मिकों के पास अशोक चक्र शौर्य चक्र और शहीद सम्मान है इन कार्मिकों ने 1965 के युद्ध में सेना को राशन और एम्युनिशन पहुंचाने में जुटे 17 रेल कार्मिक पाकिस्तान की गोला बारी में शहीद हो गए थे.

साल 1965 के उस दिन के मंजर को याद करते हुए शहीद चुन्नीलाल पंवार के पोते दिलीप माली बताते हैं, भारत-पाकिस्तान के बीच भयंकर युद्ध जारी था. इस दौरान बाड़मेर से सीमा पर स्थित खोखरापार स्टेशन तक सेना को राशन और गोला बारूद पहुंचाना था. ये काम रेलवे के जिम्मे था लेकिन उस वक्त लोको पायलट इतने नहीं थे और जो थे वें युद्ध की स्थिति में बॉर्डर पर जाना नहीं चाहते थे. ऐसे में ये जिम्मेदारी ली उनके दादा लोको पायलट चुन्नीलाल पंवार और लोको पायलट प्रतापचंद जी और उनके साथ हमारे पड़ोसी माधोसिंह गहलोत ने. 

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बमबारी में 17 रेलवे के कर्मिक शहीद हुए थे 

9 सितंबर को ये रेलगाड़ी बाड़मेर से राशन और एम्युनिशन लेकर रवाना हुई थी. लेकिन अपने अंतिम स्टेशन खोखरापार से पहले गडरा रोड़ के पास पाकिस्तानी एयरफोर्स के विमानों ने जबरदस्त गोलाबारी करते हुए रेलगाड़ी को तबाह कर दिया. जिससे काफी लोग शहीद हो गए, कुछ गंभीर घायल भी थे, लेकिन घायल होने बावजूद उस ट्रेन को खोखरापार पहुंचाया इसमें जिसमें उनके दादा चुन्नीलाल जी पंवार के साथ 17 रेलवे के कर्मिक शहीद हो गए.  इनकी वीरता को देखते हुए सरकार ने अशोक चक्र प्रदान किया था. 

स्टेशन पर स्मारक बनाने की मांग 

रेलवे के पास स्टेशन जैसी जगहों पर सजाने के अपने इन शहीदों की अमर गौरवमयी गाथा और बलिदान की अमर गौरवमयी गाथा के साथ अशोक चक्र, शौर्य चक्र हैं लेकिन उनकी अनदेखी की जा रही है.  कहने को रेलवे ने इन शहीदों की याद में स्मारक भी बनवाया है इस स्मारक पर मेले का आयोजन श्रद्धांजलि दी जाती है, लेकिन ये स्मारक भारत पाक सीमा के पास गडरा रोड़ में स्थित हैं. वहां हर कोई पहुंच नहीं पाता है.

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शहीदों को दिया जाए सम्मान

आज की पीढ़ी के युवाओं को पता भी नहीं हैं कि रेलवे कई कार्मिकों ने देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थीं ऐसे में हर आमजन और हर पीढ़ी के लोगों तक इन गौरवमयी गाथा पहुंचे इसके लिए जिला मुख्यालय पर नवनिर्मित रेलवे स्टेशन पर इन शहीदों की प्रतिमाएं लगाई जाएं रेलवे स्टेशन का नाम इन शहीदों के नाम कर इनके बलिदान को सम्मान दिया जाए. 

अशोक चक्र से सम्मानित लोको पायलट प्रतापचंद के पुत्र मेवाराम शर्मा की मांग है की उनके पिता ने देश की सेना को जब युद्ध में राशन और एम्युनिशन की जरूरत थी उस वक्त घायल होने के बावजूद अपनी जान की बाजी लगाते हुए ट्रेन को चलाकर खोखरापार पहुंचाया था. अब उनका स्मारक बनना चाहिए.

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