Rajasthan New Education Policy: राजस्थान में नई शिक्षा नीति लागू होने के साथ ही इसका विरोध भी होने लगा है. तमाम शिक्षक संगठन नई शिक्षा नीति के विरोध में उतर आए हैं. उनका कहना है कि सरकार निजीकरण को बढ़ावा दे रही है, क्योंकि प्राइवेट स्कूलों में प्रवेश की आयु 3 साल ही निर्धारित है. वहीं आरटीई के तहत भी बच्चों को 5 वर्ष की आयु में ही प्रवेश मिल रहा है. लेकिन सरकारी स्कूलों में बच्चों के एडमिशन की आयु 5 वर्ष से बढ़ाकर 6 वर्ष कर दी गई है. इस वजह से सरकारी स्कूलों में नामांकन लगातार घटता जाएगा और यह बंद होने की कगार पर आ जाएगी. वहीं इसका सीधा लाभ प्राइवेट स्कूलों को पहुंचेगा. अभिभावक मजबूरी में बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाने को मजबूरी होंगे, जिससे अभिभावकों पर आर्थिक भार पड़ेगा.
सरकार द्वारा लागू की गई नई शिक्षा नीति में बच्चों के प्रवेश के संबंध में भी प्रावधान किए गए हैं. शिक्षक संगठनों का कहना है कि सरकारी स्कूलों में 6 वर्ष तक एडमिशन नहीं देने का नियम लागू करना गलत है. इससे बच्चे बौद्धिक और मानसिक रूप से काफी पिछड़ जाएंगे.
गरीब वर्ग के लिए बड़ी परेशानी
शिक्षक रामस्वरूप चौधरी का कहना है कि नई शिक्षा नीति निजीकरण को बढ़ावा देने की योजना है. प्राइवेट स्कूलों की भारी-भरकम फीस गरीब, मजदूर और किसान वर्ग के बच्चों के लिए चुका पाना संभव नहीं होगा. उनका यह भी कहना है कि प्राइवेट स्कूलों के टीचर ट्रेंड नहीं होते, वहां केवल रट्टा पढ़ाया जाता है. लेकिन सरकारी स्कूलों में प्रशिक्षक हायर एजुकेटेड, कंपटीशन एग्जाम को क्लियर करने वाले और पूर्ण प्रशिक्षण प्राप्त होते हैं. जो प्राइवेट टीचरों की तुलना में बच्चों का समग्र विकास कर सकते हैं. अगर सरकार वाकई बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देना चाहती है और उनको सरकारी स्कूलों की ओर अग्रसर करना चाहती है तो सरकार को निजी स्कूलों के तर्ज पर सरकारी स्कूलों में भी नर्सरी, एलकेजी और यूकेजी जैसी कक्षाएं शुरू करनी होगी.
अभिभावकों को नहीं है नए नियम की जानकारी
शिक्षक संगठनों का कहना है कि इस सत्र में स्कूल खुलते ही अभिभावक अपने 5 वर्ष के बच्चों को लेकर स्कूल आ रहे हैं. लेकिन सरकारी पोर्टल पर प्रवेश की आयु 6 वर्ष कर दिए जाने से उनका एडमिशन नहीं हो रहा. इससे सरकारी स्कूलों में प्रथम कक्षा खाली रह रही है. शिक्षक विजय डूकिया का कहना है कि नई शिक्षा नीति से ज्यादातर अभिभावक अनजान है. उन्हें नियमों और प्रावधानों की जानकारी नहीं है.
जब अभिभावक अपने बच्चों को लेकर एडमिशन दिलाने आते हैं तो हम 6 वर्ष की बाध्यता का हवाला देकर एडमिशन देने में असमर्थता जताते हैं. ऐसे में उल्टे अभिभावक शिक्षकों पर ही बच्चों को एडमिशन नहीं देने का आरोप लगा देते हैं. जबकि शिक्षकों का इसमें कोई लेना-देना नहीं है.
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