पुष्कर ना सिर्फ हिंदू धर्म का प्रमुख तीर्थ स्थल है, बल्कि सिख आस्था का भी पवित्र केंद्र है. सन 1511 में दक्षिण यात्रा से लौटते समय सिखों के प्रथम गुरु गुरु नानक देव जी पुष्कर पहुंचे थे, यहां उन्होंने ऋषि-मुनियों के साथ धर्म और मानवता पर गहन चर्चा की. उन्होंने लोगों को कर्म, सेवा और परोपकार के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी. पुष्कर में जहां गुरु नानक देव जी ठहरे थे, वहीं श्रद्धालुओं ने बाद में एक गुरुद्वारा साहिब का निर्माण करवाया, जो आज भी देश-विदेश से आने वाले सिख श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख स्थल है.
पराशर परिवार से जुड़ा प्रसंग
सिखों के दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह जी भी पुष्कर आए थे. पुष्कर तीर्थ पुरोहित पंडित चेतन पाराशर ने उन्हें तीर्थ का महत्व बताया, और सात दिन तक सेवा की. गुरु गोविंद सिंह उनकी निष्ठा से प्रसन्न हुए और उन्हें बहुमूल्य आभूषण देना चाहा, पर पंडित चेतन ने हुकमनामा की मांग की. तब गुरु गोविंद सिंह जी ने बाण की नोंक से स्वयं हुकमनामा लिखा और भेंट किया. इसमें आदेश था कि पुष्कर आने वाले सिख श्रद्धालु पंडित चेतन की वंशजों से ही यजमानी करवाएं. आज भी उनकी नवमी पीढ़ी पंडित विष्णु पाराशर इस परंपरा को निभा रही है.
गुरुद्वारा साहिब में मत्था टेकते हैं भक्त
पुष्कर गुरुद्वारा प्रबंध कमेटी के मुख्य सेवादार सुबेन्द्र सिंह के अनुसार, हर वर्ष एकादशी से पूर्णिमा तक देश-विदेश से हजारों सिख श्रद्धालु पुष्कर पहुंचते हैं. वे गोविंद घाट पर पवित्र सरोवर में स्नान कर गुरुद्वारा साहिब में मत्था टेकते हैं. गुरु नानक देव और गुरु गोविंद सिंह जी की यात्राओं की स्मृति में सिख समाज यहां सेवा, कीर्तन और लंगर का आयोजन करता है. पुष्कर में यह संगम आज भी धर्म, एकता और मानवता के संदेश को जीवंत रखे हुए हैं.
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