राजस्थान में किंग मेकर बनेंगे हनुमान बेनीवाल? कांग्रेस-बीजेपी में बढ़ी टेंशन!

माना जा रहा है कि हनुमान बेनीवाल न केवल कांग्रेस बल्कि भाजपा के लिए भी प्रॉब्लम खड़ी कर सकते हैं. बेनीवाल की बढ़ी सक्रियता ने कांग्रेस बीजेपी की टेंशन बढ़ा दी है. ऐसा इसलिए, क्योंकि हनुमान बेनीवाल की पार्टी आरएलपी तेजी से विस्तार कर रही है और बेनीवाल खुद चुनाव में मैदान में उतरने का ऐलान कर चुके है. 

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हनुमान बेनीवाल (फाइल फोटो)
नागौर:

राजस्थान में विधानसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद सियासत का पारा लगातार गर्म हो रहा है. राजनीतिक गलियारों में सिर्फ एक ही सवाल पूछा जा रहा है कि सरकार किसकी बनेगी? क्या कांग्रेस फिर सत्ता में लौटेगी या हर 5 साल बाद सत्ता परिवर्तन का ट्रेंड जारी रहेगा. इन सवालों के बीच नागौर सांसद और आरएलपी सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल चर्चा में है.

माना जा रहा है कि हनुमान बेनीवाल न केवल कांग्रेस बल्कि भाजपा के लिए भी प्रॉब्लम खड़ी कर सकते हैं. बेनीवाल की बढ़ी सक्रियता ने कांग्रेस बीजेपी की टेंशन बढ़ा दी है. ऐसा इसलिए, क्योंकि हनुमान बेनीवाल की पार्टी आरएलपी तेजी से विस्तार कर रही है और बेनीवाल खुद चुनाव में मैदान में उतरने का ऐलान कर चुके है. 

वर्तमान में आरएलपी के 3 विधायक सहित एक सांसद, नगर निकाय में एक पालिकाध्यक्ष और पांच प्रधानों सहित दर्जनों सरपंच है. इसके अलावा आरएलपी के पास हर जिले में हजारों कार्यकर्ताओं की फौज है, जो कांग्रेस - भाजपा का चुनावी गणित बिगाड़ सकते हैं.

RLP बिगाड़ रही है बीजेपी-कांग्रेस का गणित

हनुमान बेनीवाल जिस तेजी के साथ प्रदेश की राजनीति में आगे बढ़ रहे हैं, उससे यह संभावना जताई जा रही है कि बेनीवाल प्रदेश में तीसरे विकल्प के रूप में उभर सकते हैं. अगर यह कवायद हकीकत बन गई तो भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए स्थिति चिंताजनक हो सकती है और उनका सियासी गणित बिगड़ सकता है.  

बेनीवाल को मिलेगा बगावत का लाभ ?

दरअसल, हनुमान बेनीवाल को अच्छी तरह से मालूम है कि कांग्रेस और भाजपा में अंदरुनी गुटबाजी हावी है. टिकट वितरण के बाद से ही अलग-अलग क्षेत्रों में भाजपा और कांग्रेस में बगावत के सुर सुनाई दे रहे हैं. इस परिस्थिति का लाभ आरएलपी उठा सकती हैं. अब तक कई बड़े नेता टिकट वितरण से नाराज होकर आरएलपी का दामन थाम चुके हैं.

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अब तक के राजनीतिक परिदृश्य पर नजर डालें तो मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा में ही माना जा रहा है, लेकिन तीसरे मोर्चे की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा रहा. अब तक स्पष्ट रूप से तीसरे मोर्चे का वजूद भले ही कायम नहीं हो पाया.

बागी थाम रहे हैं आरएलपी का दामन 

माना जा रहा है कि तीसरे मोर्चे के गठन में दोनों पार्टियों के असंतुष्ट व बागियों से भी अहम भूमिका आरएलपी निभाएगी, क्योंकि अधिकतर बागी और असंतुष्ट नेता आरएलपी का दामन थाम रहे हैं. इस परिस्थिति का आरएलपी लाभ उठाने का प्रयास करेगी, जिससे दोनों पार्टियों का चुनावी गणित बिगड़ सकता है. वहीं, आरएलपी सरकार गठन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. 

प्रदेश की राजनीति में बढ़ी है हलचल

हनुमान बेनीवाल ने 5 साल पूर्व जब इस पार्टी की स्थापना की थी, तब किसी ने नहीं सोचा था कि आने वाले समय में यह पार्टी राजस्थान की राजनीति को बड़े पैमाने पर प्रभावित करेगी. प्रदेश में केवल आरएलपी ही ऐसी पार्टी है, जिसके पास विधानसभा में कांग्रेस और भाजपा के बाद सर्वाधिक विधायक हैं.

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दलित समाज और मुस्लिम समाज भी बेनीवाल से काफी प्रभावित है, क्योंकि बेनीवाल जाटों के अलावा दलित और मुस्लिम वर्ग को भी साथ लेकर चलते हैं और उनके मुद्दों को भी समय-समय पर उठाते रहते हैं.

जाट राजनीति को बढ़ावा

हनुमान बेनीवाल प्रदेश की जाट राजनीति को सीधे प्रभावित करते हैं. जाट समाज के युवाओं में बेनीवाल की बेहद मजबूत पकड़ है, उनकी रैलियों में हजारों युवा पहुंचते हैं. बेनीवाल जानते हैं कि जाट समाज प्रदेश का बड़ा समुदाय है, जिससे साधकर राजनीति में कामयाबी हासिल की जा सकती है.

चंद्रशेखर से गठबंधन कितना होगा सफल?

हनुमान बेनीवाल ने अब नया दांव चला है. उन्होंने अब आजाद समाज पार्टी के नेता चंद्रशेखर आजाद से गठबंधन किया है. बेनीवाल यह जानते हैं कि प्रदेश में दलित समाज भी एक बड़ा वोट बैंक है, जिसे अपने साथ लेकर कई सीटों को प्रभावित किया जा सकता है. चंद्रशेखर उर्फ रावण एक दलित नेता के रूप में उभरे हैं. उनकी दलित समाज में काफी लोकप्रियता है. हाल ही चंद्रशेखर संविधान बचाओ यात्रा लेकर राजस्थान भी आए थे.

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यह बड़ा सवाल अभी भी बना हुआ है कि राजस्थान में हनुमान बेनीवाल तीसरा विकल्प बन सकते हैं, जिसका जवाब 3 दिसंबर को ही मिलेगा. 

दलित मुद्दा कई बार उठा चुके हैं बेनीवाल

राजस्थान में दलित अत्याचारों के मुद्दे को हनुमान बेनीवाल कई बार उठाया है. ऐसे में यह गठबंधन जाट और दलित वोटों को अपने पक्ष में करने की बड़ी कवायद है. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह गठबंधन कितनी सीटें जीत पाएगा, जिसका सीधा असर भाजपा व कांग्रेस की सीटों की संख्या पर पड़ेगा.

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