Vasundhara Raje: राजस्थान में विधानसभा उपचुनाव की वोटिंग में अब कुछ ही दिन बच गए हैं. प्रदेश में सात विधानसभा सीटों पर उपचुनाव को लेकर पूरे राज्य की राजनीति गरम है. सभी पार्टी अपनी-अपनी जीत का दावा कर रहे हैं. बीजेपी अपनी पूरी ताकत से सातों सीटों पर जीत दर्ज करने के लिए रणनीति पर काम कर रही है. हालांकि बीजेपी के लिए सात सीटों पर उपचुनाव अग्नि परीक्षा जैसा है क्योंकि इन सात सीटों में से केवल एक सीट ही बीजेपी की थी. ऐसे में सभी सीटों पर जीत कड़ी चुनौती है. प्रदेश अध्यक्ष मदन दिलावर ने भी माना था कि उपचुनाव उनके और सीएम के लिए लिटमस टेस्ट है. लेकिन इस बीच राजस्थान के सबसे चर्चित चेहरे को तलाशना शुरू हो गया है. वह है राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री और दिग्गज नेता वसुंधरा राजे.
राजस्थान में सात सीटों पर उपुचनाव और बीजेपी के लिए चुनौती के बावजूद, अब तक वसुंधरा राजे चुनाव अभियान से दूर है. प्रदेश में उपचुनाव और वसुंधरा का इससे दूर रहना फिर से कई सवालों को जन्म दे रहा है. वसुंधरा को चाहने वाले उनका चेहरा तलाश रहे हैं. लेकिन वसुंधरा राजे उपचुनाव कैंपेन से दूर है और अब उनके शामिल होने की भी आसार कम ही दिख रहे हैं. जबकि वसुंधरा को स्टार प्रचार की लिस्ट में भी शामिल किया गया है.
लोकसभा चुनाव में भी केवल एक सीट पर किया कैंपेन
वसुंधरा राजे को लेकर लोकसभा चुनाव कैंपेन के समय भी काफी सवाल उठे थे. पूरा राजस्थान में बीजेपी के सभी दिग्गज अपनी ताकत झोंक रहे थे. लेकिन वसुंधरा राजे केवल अपने बेटे की सीट झालावाड़-बारां लोकसभा सीट के लिए ही कैंपेन करते दिखी थी. इसके अलावा वह किसी भी अन्य संसदीय क्षेत्र में बीजेपी के उम्मीदवारों के लिए प्रचार करते नहीं दिखी. वहीं एक बार फिर प्रदेश में उपचुनाव है वह भी सात सीटों पर लेकिन फिर भी वसुंधरा राजे कैंपेन से दूर है.
वसुंधरा राजे के कैंपेन में शामिल नहीं होने का कारण
वसुंधरा राजे के कैंपेन में शामिल न होने पर राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि राजस्थान में होने वाले चुनाव अब सीधे तौर पर भजनलाल शर्मा की जिम्मेदारी है. क्योंकि जब राज्य वह चला रहे हैं तो अब अग्नि परीक्षा भी उन्हें ही देनी होगी. हालांकि पार्टी के लिए वसुंधरा राजे का दायित्व बनता है. लेकिन शायद भजनलाल शर्मा की अग्नि परीक्षा में वसुंधरा शामिल नहीं होना चाहती हैं. क्योंकि बीजेपी को किसी तरह का नुकासान होता है तो बीजेपी दो धरा में बंट सकता है और इससे राजस्थान में नई राजनीति भी शुरू हो सकती है.
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