Rajasthan Politics: राजस्थान उपचुनाव में दो सीटें चौरासी और सलूंबर पर कांग्रेस की जमानत जब्त हो गई. चुनाव परिणाम के बाद से ही कांग्रेस में अंदरखाने घमासान तेज हो गया है. हालांकि ऐसा पहली बार नहीं है, जब कांग्रेस को इन सीटों पर मुंह की खानी पड़ी हो. सलूंबर में इससे पहले भी 3 चुनाव में कांग्रेस की हार हुई है, हालांकि इस बार जमानत जब्त पार्टी के लिए चौंकाने वाला है. वहीं, चौरासी में लगातार दूसरी बार है जब भारतीय आदिवासी पार्टी (बीएपी) के सामने कांग्रेस मुकाबला नहीं कर पाई. विधानसभा की मौजूदा स्थिति के मुताबिक, उदयपुर जिले की 8 विधानसभा सीटों में से महज खेरवाड़ा ही कांग्रेस के खाते में है. पड़ोसी जिले डूंगरपुर में कांग्रेस की एक, बीजेपी की 1 और बीएपी की 2 सीटें हैं. हालांकि बांसवाड़ा जिले में कांग्रेस के लिए जरूर थोड़ी राहत है, क्योंकि यहां कांग्रेस के पास 3 सीट, बीजेपी के 1 और बीएपी के 1 सीटें हैं.
उपचुनाव परिणाम के बाद मेवाड़-वागड़ के इन इलाकों में कांग्रेस के लिए परेशानी खड़ी हो गई है. खास बात यह है कि मेवाड़-वागड़ का यह इलाका राजस्थान के पूर्व सीएम मोहनलाल सुखाड़िया और हरिदेव जोशी का गढ़ भी रहा है. लेकिन आज इन दोनों दिग्गजों के गढ़ रहे मेवाड़-वागड़ में कांग्रेस की स्थिति ऐसी हो गई है कि पार्टी के लिए इलाके की कई सीटों पर जमानत बचाना भी मुश्किल हो गया है. हाल में हुए 7 सीटों के उपचुनाव में सलूंबर और चौरासी - दोनों सीटों पर कांग्रेस की जमानत जब्त हो गई है.
इस क्षेत्र की सियासी अहमियत इससे भी समझी जा सकती है कि इस इलाके को राजस्थान की सत्ता का द्वारा कहा जाता है. कहावत है कि जो मेवाड़-वागड़ को फतह करता है, राजस्थान में राज उसी का होता है. हालांकि साल 2018 में पूरे राजस्थान में कांग्रेस को बहुमत मिला था, जबकि इस इलाके में बीजेपी जीती. ऐसे में यह चुनाव अपवाद रहा.
चौरासी और सलूंबर, दोनों सीटों पर जमानत हुई जब्त
चौरासी विधानसभा सीट पर उपचुनाव में भारत आदिवासी पार्टी से प्रत्याशी अनिल कुमार कटारा ने 24370 वोट से बड़ी जीत हासिल की है. अनिल कटारा को 89 हजार 161 वोट मिले, जबकि उनके प्रतिद्वंदी भाजपा से प्रत्याशी कारीलाल ननोमा को 64 हजार 791 वोट मिले हैं. कांग्रेस के प्रत्याशी महेश रोत को महज 15 हजार 915 वोट ही मिले, जिसके उनकी चलते जमानत जब्त हो गई.
वहीं, सलूंबर सीट से भारतीय जनता पार्टी की शांता मीणा ने जीत हासिल और यहां बीएपी प्रत्याशी जितेश कटारा दूसरे स्थान पर रहे. जबकि कांग्रेस प्रत्याशी रेशमा मीणा की बुरी हार हुई, और उनकी भी जमानत नहीं बचा पाई.
ना सीपी जोशी, ना ही गिरिजा व्यास, मेवाड़ में अब किसके सहारे कांग्रेस
साल 2001 से 2004 तक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष और साल 2005 में राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रहीं गिरिजा व्यास, साल 2018 से 2023 तक राजस्थान के पूर्व स्पीकर रहे सीपी जोशी और पूर्व सांसद रघुवीर जोशी, इन 3 नेताओं के भरोसे ही मेवाड़ में कांग्रेस की राजनीति चलती रही. खास बात यह है कि अब तीनों ही नेता विधानसभा या लोकसभा में नहीं है.
गिरिजा व्यास ने आखिरी विधानसभा चुनाव साल 2018 में लड़ा और गुलाबचंद कटारिया ने उन्हें शिकस्त दी. गिरिजा व्यास अब स्वास्थ्य कारणों के चलते सक्रिय नहीं है.
वहीं, मेवाड़ में दूसरा गुट डॉ. सीपी जोशी का भी माना जाता है. लेकिन वह खुद पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में अपनी परंपरागत सीट हार गए. उन्हें बीजेपी के विश्वराज सिंह मेवाड़ ने हराया जो उदयपुर के पूर्व राजपरिवार के सदस्य हैं. सीपी जोशी उसके बाद 2024 के लोकसभा चुनाव में भीलवाड़ा से मैदान में उतरे, यहां भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी.
आदिवासी अंचल में अस्तित्व के संकट में फंस गई पार्टी
उदयपुर संभाग सहित मेवाड़ के कुछ क्षेत्र में रघुवीर मीणा का भी दखल माना जाता है, 2023 के चुनाव में हार के बाद हाल के उपचुनाव में पार्टी ने उन पर भरोसा नहीं जताया. नतीजा यह हुआ कि रघुवीर के समर्थकों की नाराजगी के बाद रेशमा मीणा को करारी शिकस्त झेलनी पड़ी.
इसके साथ ही रघुवीर मीणा पार्टी के लिए आदिवासी वोटबैंक साधने का काम भी करते रहे हैं. जिसका असर मेवाड़ के साथ वागड़ के कुछ हिस्से में भी दिखता रहा. दूसरी ओर, ताराचंद भगोरा और महेंद्रजीत मालवीया, बांसवाड़ा समेत पूरे वागड़ क्षेत्र में कभी दिग्गज नेता माने जाते थे. उनकी राजनीति के भरोसे कांग्रेस जनजाति अंचल में मजबूती से लड़ती रही.
लोकसभा चुनाव में मालवीया ने दिया बड़ा झटका
इस साल ताराचंद भगोरा ने बयान दिया था कि अगर कांग्रेस पार्टी भारत आदिवासी पार्टी (BAP) के साथ समझौता करती है, तो यह निर्णय हम स्वीकार नहीं करेंगे. बावजूद इसके बांसवाड़ा-डूंगरपुर में दोनों पार्टियों ने मिलकर चुनाव लड़ा.
पिछले कुछ समय से अब भगोरा भी सक्रिय नजर नहीं आ रहे हैं. कांग्रेस को झटका तो तब लगा जब मालवीया पार्टी छोड़कर बीजेपी से लोकसभा चुनाव लड़े. ना सिर्फ उनकी हार हुई, बल्कि उनका अभेद्य किला माने जाने वाली बागीदौरा विधानसभा सीट जब उन्होंने छोड़ दी तो वहां भी बीएपी ने जीत हासिल की.
जाने कौन हैं वागड़ के 'भागीरथ' हरिदेव जोशी?
बांसवाड़ा जिले के निवासी हरिदेव जोशी 10 बार विधायक और 3 बार सीएम रहे. हालांकि वह एक बार भी मुख्यमंत्री का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए. पहली बार 11 अक्टूबर 1973 को बने हरिदेव जोशी को इंदिरा के खास नेता और केंद्र में गृह राज्य मंत्री रामनिवास मिर्धा को शिकस्त देनी पड़ी. दरअसल, तब राजस्थान में सीएम पद के लिए मिर्धा इंदिरा गांधी की पहली पसंद थे.
जब बारी आई राजस्थान के सीएम चुने जाने की तो इंदिरा गांधी ने कहा कि विधायक दल खुद ही अपना नेता चुनें. मिर्धा को भी उम्मीद थी कि सूबे के जाट नेता उन्हें वोट करेंगे. लेकिन मुख्यमंत्री चुनने के दौरान ऐसा नहीं हुआ. विधायक दल की वोटिंग हुई तो जाट विधायकों का एक हिस्सा मिर्धा के पाले से खिसककर जोशी खेमे में चला गया. अपने कार्यकाल के दौरान जोशी ने माही बांध का निर्माण भी करवाया. इसी का परिणाम है कि आज इस क्षेत्र में पेयजल आपूर्ति और उन्नत खेती होती है, जिसके चलते उन्हें वागड़ के भागीरथ के नाम से भी जाना गया.
राजस्थान के 'बाबूजी' सुखाड़िया के नाम दर्ज है खास रिकॉर्ड
वहीं, राजस्थान के बाबूजी कहे जाने वाले मोहनलाल सुखाड़ियाराजस्थान की सत्ता पर 17 साल तक काबिज रहे. राजस्थान में मुख्यमंत्री के सबसे लंबे कार्यकाल का रिकॉर्ड इन्हीं के नाम है. उन्होंने अपनी राजनीति उदयपुर संभाग में की. साल 1954 में पहली बार सीएम पद की शपथ लेने वाले सुखाड़िया को 70 के दशक में इंदिरा गांधी का विरोध करना भारी पड़ा. भारत-पाक युद्ध के बाद जब इंदिरा गांधी की कांग्रेस में पकड़ मजबूत होने लगी तो सुखाड़िया को 1971 में हाईकमान के निर्देश पर इस्तीफा देना पड़ा था.
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