Kirodi Lal Meena: राजस्थान में इस बार जिन 7 सीटों पर उपचुनाव हुए उनमें दौसा की सीट पर सबकी निगाहें टिकी हुई थीं. क्योंकि वहां चुनाव तो बीजेपी उम्मीदवार जगमोहन मीणा लड़ रहे थे लेकिन साख उनके बड़े भाई किरोड़ी लाल मीणा की दांव पर थी. किरोड़ी लाल मीणा ने अपने भाई को जीत दिलवाने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा दिया था और वोट के लिए भिक्षा तक मांगी थी. मगर दौसा के वोटरों ने विधानसभा उपचुनाव में भी उनका साथ नहीं दिया और जगमोहन मीणा की हार हो गई है. कांग्रेस के दीनदयाल बैरवा (DC Bairwa) ने 2,109 मतों से जीत हासिल की है. बैरवा को 75,000 से ज्यादा और जगमोहन मीणा को 73,000 से ज्यादा वोट मिले.
खास बात यह है कि यह नतीजा महज इलेक्शन रिजल्ट ही नहीं होगा बल्कि किरोड़ीलाल मीणा की राजनीति की दिशा भी तय करेगा. दौसा के इस उपचुनाव से पहले पूर्वी राजस्थान की ऐसी कई लोकसभा सीटों पर धुआंधार चुनाव प्रचार के बावजूद पार्टी को शिकस्त मिली थी जहां किरोड़ी लाल मीणा ने जीत दिलाने का जिम्मा लिया था. मगर पार्टी का प्रदर्शन कमजोर रहा जिसके बाद किरोड़ी लाल ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था मगर उसे मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने स्वीकार नहीं किया.
नहीं चला किरोड़ीलाल मीणा का मैजिक
दौसा विधानसभा सीट पर बीजेपी और कांग्रेस की सीधी जंग थी. लेकिन यह जंग किरोड़ी लाल मीणा और सचिन पायलट के लिए भी अहम मानी जा रही थी, जिसे जीतने के लिए जगमोहन मीणा के साथ उनके भाई किरोड़ी लाल मीणा ने भी पूरा दमखम लगा दिया था. 'भिक्षाम देहि' वाले उनके अभियान ने भी काफी सुर्खियां बटोरी, लेकिन उनका यह दांव भी काम नहीं आया.
यहां चल गया पायलट फैक्टर
गुर्जर-मीणा वोट बैंक की पॉलिटिक्स के इस क्षेत्र में कांग्रेस के दिग्गज नेता सचिन पायलट की साख भी दांव पर थी. उपचुनाव के दौरान सचिन पायलट और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ के बीच बयानबाजी भी हुई. ऐसे में कहा जा रहा था कि चुनाव का नतीजा काफी हद तक पायलट की 'पॉलिटिकल इमेज' को भी प्रभावित करेगा. जबकि सांसद मुरारी लाल मीणा के लिए भी यह उपचुनाव प्रतिष्ठा का विषय बन चुका था.
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