Rajasthan Farming News: राजस्थान के भरतपुर में सरसों की खेती बड़े स्तर पर होती है. लेकिन किसान अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिए अपना रुख बागवानी और सब्जी की खेती की ओर करने लगे हैं. जिले का एक गांव है जहां के 95% किसान मिर्च की खेती कर कम लागत में दुगना मुनाफा कमा रहे हैं. इस खेती से पहले किसान अपने क्षेत्र को छोड़कर दूसरी जगह काम-काज के लिए जाते थे. लेकिन पिछले 5 वर्षों से मिर्च की खेती ने गांव के लोगों की किस्मत बदल कर रख दी है. अब गांव के लोग बाहर मजदूरी की बजाय गांव में ही मिर्च को खेती कर लाखों रुपये कमा रहे हैं.
कम लागत में अधिक मुनाफे का सौदा
किसान मोहन सिंह कुशवाहा ने बताया कि वह गांव बुराना का निवासी है. पहले वह पारंपरिक खेती करते थे लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति वैसे की वैसे थी. 5 साल पहले उत्तर प्रदेश के आगरा के लोगों से मुलाकात हुई और उन्हें मिर्च की खेती करने का आइडिया दिया. उसके बाद गांव के एक दर्जन लोगों ने मिर्च की खेती शुरू की लेकिन जब कम लागत में अधिक मुनाफा मिला तो देखते देखते गांव के 95% लोग मिर्च की खेती करने लग गए.
महिलाओं को भी इस खेती से मिला लाभ
पहले गांव के 50% लोग बाहर मजदूरी करने के लिए जाते थे लेकिन अब यह बाहर मजदूरी करने की बजाय खुद मिर्च की खेती कर रहे हैं. गांव के लोगों की जो आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर थी अब उनकी मजबूत हो गई है. गांव की महिलाओं को भी इस खेती से रोजगार मिला है और उन्हें प्रतिदिन मिर्च तुड़वाने के साथ गुड़ाई के ₹200 मिलते हैं.
35 हजार की लागत में 1 लाख का मुनाफा
एक बीघा से प्रति वर्ष किसान 35 हजार रुपए की लागत से 1 लाख रुपये का मुनाफा कमा रहे हैं. बुराना गांव के किसानों की मिर्ची से सालाना कुल आमदनी 2 करोड़ 50 लाख रुपये के आसपास है. जबकि बुराना की मिर्च को राजस्थान के अलावा दिल्ली, उत्तर प्रदेश सहित अन्य राज्यों में भेजा जा रहा है.
एक बीघे में 60 से 80 क्विंटल का उत्पादन
किसान मोहन सिंह ने बताया कि इसकी सबसे पहले बेड बनाया जाता है जिसमें बीज लगाकर पौधे को तैयार किया जाता है. पौधा तैयार होने में एक महिने का समय लगता है. उसके बाद पौध को खेत में लगाया जाता है. पौध लगाने के 2 महीने बाद मिर्च लगना शुरू हो जाती है. एक बीघा में किसान 6 से 8 बार तुड़ाई करने के साथ 60 से 80 क्विंटल मिर्च का उत्पादन एक सीजन में मिलता है. फिलहाल मिर्च का भाव थोक में 35 से 40 रूपये प्रति किलो है.
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