Rajasthan News: राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अरावली पहाड़ियों को बचाने के लिए बड़ा कदम उठाया है. उन्होंने SaveAravalli मुहिम का साथ देते हुए अपनी सोशल मीडिया प्रोफाइल तस्वीर बदल ली. गहलोत ने कहा कि यह सिर्फ तस्वीर बदलने का काम नहीं बल्कि अरावली की नई परिभाषा के खिलाफ मजबूत विरोध है.
इस नई परिभाषा में 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों को अरावली मानने से इनकार किया जा रहा है. उन्होंने चेतावनी दी कि ऐसे बदलाव पूरे उत्तर भारत के भविष्य पर गहरा संकट पैदा कर रहे हैं. गहलोत ने लोगों से कहा कि वे भी अपनी प्रोफाइल तस्वीर बदलकर इस अभियान से जुड़ें और आवाज बुलंद करें.
मरुस्थल और गर्म हवाओं से रक्षा की दीवार
गहलोत ने बताया कि अरावली पहाड़ियां मरुस्थल के फैलाव और लू की तेज हवाओं के खिलाफ प्राकृतिक कवच का काम करती हैं. अगर ये पहाड़ियां कमजोर हुईं तो रेगिस्तान और गर्मी का असर बढ़ जाएगा जिससे लाखों लोगों की जिंदगी मुश्किल हो सकती है.
प्रदूषण से शहरों की सुरक्षा
पूर्व मुख्यमंत्री ने जोर देकर कहा कि अरावली के जंगल और पहाड़ियां दिल्ली-एनसीआर जैसे शहरों के लिए फेफड़ों जैसी हैं. ये धूल भरी आंधियों को रोकती हैं और हवा को साफ रखने में मदद करती हैं. अगर अरावली बची रही तो भी प्रदूषण की समस्या गंभीर है लेकिन इसके बिना हालात और डरावने हो जाएंगे. लोगों की सेहत पर सीधा खतरा मंडराएगा.
पानी की कमी और पर्यावरण का संकट
गहलोत ने चिंता जताई कि अरावली जल संरक्षण का मुख्य आधार है. ये पहाड़ियां बारिश के पानी को जमीन में सोखकर भूजल स्तर को बढ़ाती हैं. अगर ये खत्म हुईं तो पीने के पानी की भारी कमी हो जाएगी. जंगली जानवर गायब हो जाएंगे और पूरा पर्यावरण संतुलन बिगड़ जाएगा. भावी पीढ़ियां इसकी कीमत चुकाएंगी.
गहलोत ने केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई कि अरावली की नई परिभाषा पर दोबारा सोचें. उन्होंने कहा कि इसे मीटर या फीते से नहीं बल्कि पर्यावरण में इसके योगदान से मापा जाना चाहिए. यह मुहिम सिर्फ राजस्थान की नहीं बल्कि पूरे उत्तर भारत की सुरक्षा से जुड़ी है. आइए मिलकर अरावली को बचाएं और आने वाली नस्लों के लिए हरा-भरा भविष्य सुनिश्चित करें.
यह भी पढ़ें- Udaipur: उदयपुर में आबादी क्षेत्र में घुसा लेपर्ड, घर में दुबके बैठे हैं लोग; मचा हड़कंप