Coching Student Suicide: राजस्थान में कोचिंग संस्थानों के छात्रों के सुसाइड मामलों पर हाईकोर्ट ने सख्त टिप्पणी की है. मामले की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश एमएम श्रीवास्तव की खंडपीठ ने कहा कि साल 2019 से अब तक सरकार इस विषय में कोई ठोस कानून नहीं बना पाई है, यह दुखद है. कोर्ट ने कहा कि गाइडलाइन तक लागू नहीं की गई. सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता राजेंद्र प्रसाद ने ये आंकड़े पेश करते हुए बताया कि इस साल जनवरी से 8 मई तक 14 आत्महत्याएं हुईं. खंडपीठ ने दो टूक कहा कि सरकार को स्टूडेंट वेलफेयर और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मामलों में संवेदनशीलता दिखानी चाहिए थी. साथ ही अदालत ने यह भी कहा कि मामले की गहराई को देखते हुए दो सप्ताह बाद फिर सुनवाई होगी.
सुप्रीम कोर्ट में 23 मई, फिर हाईकोर्ट में होगी सुनवाई
चूंकि सुप्रीम कोर्ट संबंधित मामले में 23 मई को सुनवाई करेगा, जिसके चलते हाईकोर्ट ने अगली सुनवाई 2 सप्ताह बाद निर्धारित की है. सुनवाई के दौरान, हाईकोर्ट ने छात्रों पर मानसिक स्वास्थ्य के दबाव को दूर करने और नियमों को लागू करने की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया. कोर्ट ने कहा कि बिना कार्रवाई के केवल चर्चा करने से कोई फायदा नहीं होता.
विधानसभा में पास नहीं हो पाया कोचिंग बिल
हालांकि इस साल एक मसौदा कोचिंग विनियमन विधेयक तैयार किया गया और विधानसभा में पेश किया गया. लेकिन विरोध के चलते इसे खासकर भाजपा विधायकों के कारण एक प्रवर समिति (selection committee) को भेज दिया था.
बीजेपी विधायक ने किया था बिल का विरोध
बीजेपी विधायक कालीचरण सराफ ने विधेयक की आलोचना करते हुए चेतावनी दी थी कि इसका मौजूदा स्वरूप राजस्थान से कोचिंग संस्थानों को बाहर कर सकता है. इससे नौकरियां और 60,000 करोड़ रुपए का उद्योग प्रभावित हो सकता है. उन्होंने व्यापक परामर्श, निरीक्षण समितियों में बेहतर प्रतिनिधित्व और केंद्रीय दिशा-निर्देशों को शामिल करने की वकालत की. बीजेपी विधायक गोपाल शर्मा ने कोचिंग विनियमन विधेयक में केंद्रीय दिशा-निर्देशों के गायब प्रावधानों पर सवाल उठाए थे. शर्मा ने कहा था कि अगर डबल इंजन वाली सरकार है तो साथ मिलकर चलें. केंद्रीय दिशा-निर्देशों में 16 साल से अधिक उम्र के बच्चों को कोचिंग पढ़ाने का प्रावधान है. यह प्रावधान इस विधेयक से क्यों गायब है?
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