43 साल पहले जहां पिता ने इलाज के अभाव में तोड़ा था दम, वहीं बेटे ने खड़ा कर दिया करोड़ों का आधुनिक हॉस्पिटल

राजस्थान के जालोर में एक बेटे ने पिता की याद में आधुनिक अस्पताल बनाकर इतिहास रच दिया. 43 साल पुराने दर्द को ताकत बनाकर उन्होंने स्वास्थ्य सुविधा का सपना साकार कर दिया.

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जालोर में बना करोड़ों का अस्पताल

Rajasthan News: राजस्थान के जालोर जिले में बालवाड़ा गांव की एक कहानी आज हर दिल को छू रही है. यहां एक बेटे ने अपने पिता की याद में ऐसा काम किया जो पूरे इलाके की जिंदगियां बदल देगा. मुंबई के कारोबारी नथमल मोतीलाल जैन ने 43 साल पुराने जख्म को ताकत बनाकर गांव में आधुनिक अस्पताल खड़ा कर दिया. अब कोई परिवार इलाज की कमी से अपनों को न खोएगा.

43 साल पहले की वो दुखद घटना

करीब 43 साल पहले मोतीलाल जैन मुंबई से अपने गांव बालवाड़ा आए थे. वे पीतल के सामान का कारोबार करते थे. गांव पहुंचते ही उन्हें खाने से जहर हो गया. उस वक्त गांव में सिर्फ एक छोटा आयुर्वेदिक केंद्र था जहां न दवाएं थीं न ही सही इलाज. 57 साल की उम्र में मोतीलाल जैन चल बसे. उनके बेटे नथमल को ये दर्द हमेशा सताता रहा. अगर बेहतर सुविधा होती तो शायद पिता बच जाते.

पिता की आखिरी इच्छा बनी जीवन का मकसदन

थमल बताते हैं कि उनके पिता हमेशा चाहते थे कि गांव में ऐसा अस्पताल बने जहां लोग दूर न भटकें. बीमारी के दौरान उन्होंने ये बात कही भी थी लेकिन खुद इसे देख न सके.

समय बीता गांव में सड़कें बनीं बिजली आई लेकिन इलाज के लिए लोग आज भी दूर मांडवला सायला या जालोर जाते हैं. कई बार ये देरी जान पर भारी पड़ती है. नथमल ने ठान लिया कि अब ये स्थिति बदलेगी. वे पिता की स्मृति में कुछ बड़ा करेंगे.

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सरकारी मदद से बना सपनों का अस्पताल

नथमल ने पुराने आयुर्वेदिक केंद्र वाली सरकारी जमीन पर नया स्वास्थ्य केंद्र बनाने का फैसला किया. सरकार से बात की प्रशासन ने साथ दिया. 2023 में काम शुरू हुआ और नवंबर 2025 में ये तैयार हो गया. तीन करोड़ रुपए की लागत से बने इस केंद्र का नाम है सुरजबेन नथमल मोतीलालजी जैन राजकीय प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र. इसमें 20 कमरे हैं जहां ओपीडी 24 घंटे इमरजेंसी प्रसव कक्ष जांच दवा वितरण और डॉक्टर स्टाफ के लिए अलग जगह है. ये सिर्फ बालवाड़ा नहीं बल्कि आसपास के गांवों के लोगों के लिए वरदान बनेगा.

उद्घाटन के साथ नई उम्मीद की शुरुआत

अस्पताल का उद्घाटन मुख्य सचेतक जोगेश्वर गर्ग और भामाशाह परिवार ने मिलकर किया. ये पल नथमल के लिए भावुक था. जहां कभी उन्होंने पिता को खोया था आज उसी जगह से सैकड़ों जिंदगियां बचाने की राह खुली है. नथमल की ये पहल समाज को सिखाती है कि मुश्किलें इंसान को तोड़ती नहीं बल्कि नई ताकत देती हैं. अब गांववासी खुश हैं कि इलाज घर के पास मिलेगा.

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