Analysis: लगातार चार हार के बाद अनिश्चितता के भंवर में ज्योति मिर्धा का राजनीतिक भविष्य, बेनीवाल ने बचाई विरासत

भाजपा प्रत्याशी डॉ. ज्योति मिर्धा के लिए भी यह चुनाव राजनीतिक वजूद को कायम रखने वाला चुनाव रहा, हालांकि उन्होंने हनुमान बेनीवाल को कड़ी चुनौती दी, लेकिन वे सफल नहीं हो सकी और लगातार चौथी बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा. इससे पहले भी ज्योति मिर्धा 2014 और 2019 का लोकसभा चुनाव हार चुकी है. वहीं 2023 के विधानसभा चुनाव में भी उन्हें शिकस्त झेलनी पड़ी थी.

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ज्योति मिर्धा (फाइल फोटो )

नागौर संसदीय सीट पर कल जारी हुए परिणामों में इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी हनुमान बेनीवाल ने फिर से जीत दर्ज की है. वे नागौर से लगातार दूसरी बार सांसद चुने गए हैं. हनुमान बेनीवाल ने अपनी निकटतम प्रतिद्वंद्वी भाजपा प्रत्याशी ज्योति मिर्धा को 42225 मतों के अंतर से पराजित किया है. हनुमान बेनीवाल को 5 लाख 96 हजार 955 मत मिले, जबकि ज्योति मिर्धा को 5 लाख 54 हजार 730 वोट मिले. 

लेकिन देखा जाए तो यह चुनाव दोनों ही प्रत्याशियों के लिए राजनीतिक वजूद और प्रतिष्ठा की लड़ाई था. दोनों ही प्रत्याशी अपनी राजनीतिक साख को बचाए रखने और राजनीतिक तौर पर जिंदा रहने के लिए संघर्षरत थे. इस संघर्ष में हनुमान बेनीवाल फिर से कामयाब हो गए. जबकि मिर्धा परिवार से ताल्लुक रखने वाली ज्योति मिर्धा लगातार चार चुनाव हार चुकी है.

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मिर्धा परिवार का राजनीतिक वजूद खत्म हो गया है? 

ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या ज्योति मिर्धा का राजनीतिक वजूद अब खत्म हो चुका है? क्या उन्हें नागौर की जनता ने पूरी तरह से नकार दिया है? जिस नागौर में मिर्धा परिवार की तूती बोलती थी, क्या उस नागौर की जनता ने मिर्धा परिवार के वर्चस्व को खत्म कर दिया है? या फिर ज्योति मिर्धा ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होकर कोई गलती कर दी है? क्योंकि वर्तमान में मिर्धा परिवार से केवल एकमात्र सदस्य के रूप में हरेंद्र मिर्धा नागौर के विधायक है, जबकि बाकी सभी मिर्धाओं को जनता नकार चुकी है.

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हनुमान बेनीवाल vs ज्योति मिर्धा

दरअसल, यह चुनाव हनुमान बेनीवाल और ज्योति मिर्धा दोनों के लिए राजनीतिक अस्तित्व का चुनाव था, क्योंकि दोनों नेताओं के सामने अपनी साख और राजनीतिक विरासत बचाने की चुनौती थी. क्योंकि इस चुनाव से पहले तक ज्योति मिर्धा जहां लगातार तीन चुनाव हार चुकी थी, तो वहीं हनुमान बेनीवाल की पार्टी का ग्राफ भी दिनों दिन सिमटता जा रहा था.

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हनुमान बेनीवाल ने राजस्थान में तीसरा विकल्प देने के उद्देश्य से राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी का गठन किया था. इसके बाद इस पार्टी ने तेजी से अपना विस्तार किया और 2018 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने अभूतपूर्व प्रदर्शन करते हुए तीन सीटों पर जीत दर्ज की, वही 2019 के लोकसभा चुनाव में भी हनुमान बेनीवाल सांसद चुने गए थे. इसके अलावा नगर निकायों और पंचायत चुनाव में भी हनुमान बेनीवाल की पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन किया था.

आरएलपी की सियासी जमीन यथावत 

लेकिन केवल 5 साल के बाद ही हनुमान बेनीवाल की पार्टी का प्रदर्शन कमजोर होने लगा और 2023 के विधानसभा चुनाव में हनुमान बेनीवाल की आरएलपी का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा. हनुमान बेनीवाल ने पूरे राजस्थान में 73 से अधिक उम्मीदवार उतारे थे, जिसमें से केवल हनुमान बेनीवाल ही जीत दर्ज कर सके थे, वहीं बाकी सभी उम्मीदवारों को हार का सामना करना पड़ा. हनुमान बेनीवाल खुद बेहद संघर्षपूर्ण मुकाबले में 2000 वोटो से विजय हुए. वहीं इस बार लोकसभा चुनाव के लिए उन्हें कांग्रेस से गठबंधन करना पड़ा. ऐसे में यह चुनाव उनकी राजनीतिक प्रतिष्ठा और वजूद के फैसले का प्रश्न था.

लगातार चौथी बार हार रहीं ज्योति मिर्धा 

दूसरी ओर भाजपा प्रत्याशी डॉ. ज्योति मिर्धा के लिए भी यह चुनाव राजनीतिक वजूद को कायम रखने वाला चुनाव रहा, हालांकि उन्होंने हनुमान बेनीवाल को कड़ी चुनौती दी, लेकिन वे सफल नहीं हो सकी और लगातार चौथी बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा. इससे पहले भी ज्योति मिर्धा 2014 और 2019 का लोकसभा चुनाव हार चुकी है. वहीं 2023 के विधानसभा चुनाव में भी उन्हें शिकस्त झेलनी पड़ी थी.

लगातार तीन चुनाव में हार के बावजूद भाजपा ने उन्हें नागौर से लोकसभा का प्रत्याशी बनाया. लेकिन जनता ने उन्हें फिर से नकार कर चौथी बार हरा दिया. जबकि उनके साथ मिर्धा परिवार की मजबूत राजनीतिक विरासत थी. उनके दादा नाथूराम मिर्धा नागौर के दिग्गज और कद्दावर जाट नेता रहे थे, लेकिन मिर्धा परिवार की विरासत भी ज्योति मिर्धा को हार से नहीं बचा सकी. ऐसे में अब यह सवाल उठ रहे हैं कि लगातार चार हार के बाद अब ज्योति मिर्धा का राजनीतिक भविष्य क्या होगा?
उप चुनाव जीतना भी बड़ी चुनौती

दूसरी बार सांसद बने बेनीवाल 

हनुमान बेनीवाल लोकसभा चुनाव जीतकर लगातार दूसरी बार सांसद बने हैं. यह उनके राजनीतिक जीवन के लिए संजीवनी का काम करेगी, लेकिन इस स्थिति में उन्हें विधायक पद से इस्तीफा देना होगा, जहां दोबारा उपचुनाव होंगे. खींवसर में बेनीवाल अपने भाई नारायण बेनीवाल को उम्मीदवार बनाते हैं, तो पिछले विधानसभा चुनाव के प्रदर्शन को देखते हुए उनकी राह आसान नहीं होगी.

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