Lok Sabha Elections Result 2024: राजस्थान में लोकसभा चुनाव के नतीजों ने एक तरह से राजनीतिक पंडितों को चौंका दिया. कांग्रेस ने 10 सीटें जीत कर 10 साल के सूखे को खत्म कर दिया।. इन नतीजों में कई तरह के मायने छिपे हुए हैं. जहां 7 आरक्षित सीटों में से कांग्रेस ने 5 सीटों पर बाजी मारी है, वहीं शेखावाटी की चारों सीटों पर जीत का परचम लहराया है. शेखावाटी में आने वाली चार लोकसभा सीट चूरू, सीकर, झुंझुनू और नागौर में कांग्रेस और उसके गठबंधन दलों ने शानदार प्रदर्शन किया है.
लेकिन शेखावाटी में इस जीत के मायने क्या हैं? इसे समझने के लिए 5 महीने पहले चलना होगा. जब राजस्थान में कांग्रेस सत्ता से बेदखल हो गई थी और भाजपा के हाथ में सूबे की कमान आई. यहीं से राजस्थान और ख़ास तौर पर जाटों की नाराज़गी ज़ाहिर हुई. जाट समुदाय इसलिए नाराज़ था कि भजनलाल मंत्रीमंडल में उनकी जाति को उचित प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया. जाटों को नज़रअंदाज़ करने के इस नैरेटिव ने पूरी तरह शेखावाटी इलाके में ज़मीन पकड़ ली.
'जाति विशेष' को टारगेट के आरोप
चुनाव के बाद भजनलाल सरकार पर आरोप लगे कि वो जाट समुदाय के सरकारी कर्मचारियों का ट्रांसफर कर उन्हें टारगेट कर रही है. इसपर कांग्रेस के कई नेताओं ने सरकार को घेरा था. इस मामले में लाडनूं से कांग्रेस के विधायक मुकेश भाकर ने ट्रांसफर पॉलिसी में सरकार पर जाति और धर्म के आधार पर टारगेट करते हुए ट्रांसफर करने का आरोप लगाया था. इसके बाद यह माहौल बना कि भाजपा जाट समुदाय के सात सौतेला व्यवहार कर यही है.
'सामंती सोच' बनाम 'किसान कौम'
डोटासरा और राजेंद्र राठौड़ की सियासी लड़ाई इस लोकसभा चुनाव में नए तरीके से सामने आई. जब भाजपा ने राहुल कस्वां का टिकट काटा तब कस्वां ने इसे जाट बनाम राजपूत की लड़ाई बना दिया. अपनी पूरी कैम्पेन में कस्वां ने बार-बार एक ही बात दोहराई कि उनका टिकट रराजेंद्र राठौड़ ने काटा। उन्होंने रराठौड़ पर आरोप लगाए कि, उनकी सोच 'सामंती' है और उन्होंने 'किसान कौम' के बेटे का टिकट काट दिया.
अग्निपथ योजना का असर
राजस्थान में शेखावाटी वह क्षेत्र है, जहां के युवा बाकी प्रदेश के मुकाबले सबसे ज़्यादा सेना में भर्ती होते हैं. ख़ास तौर पर नागौर और झुंझुनू में इसका काफी असर है. शेखावाटी इलाके में अग्निपथ योजना के बाद सेना की तैयारी करवाने वाली एकेडमी बंद हो गईं थीं. इस योजना को लेकर युवाओं में खासा रोष था. कांग्रेस ने इस मुद्दे को बहतरीन तरीके से उठाया और यही भाजपा के लिए नुकानदेह साबित हुआ.
किसान आंदोलन का 'एपिसेंटर'
मोदी सरकार के दुसरे कार्यकाल की शुरुआत में देश में हुए किसान आंदोलन में सबसे ज्यादा हिस्सा शेखावाटी के किसानों ने लिया था. ख़ास तौर पर राजस्थान-हरियाणा शाजहांपुर बॉर्डर पर बैठे किसानों में सबसे ज्यादा किसान इसी क्षेत्र से थे. ऐसे में किसानों के भीतर मोदी सरकार के खिलाफ रोष था और यह रोष भाजपा के खिलाफ लोकसभा चुनाव में दिखा.
यह भी पढ़ें - रिजल्ट पर PM मोदी बोले- NDA की लगातार तीसरी बार सरकार बननी तय है