Rajasthan Politics: हरियाणा के चुनाव से क्या दूर हुई राजस्थान के कांग्रेस खेमे की ये चिंता?

Rajasthan Politics: भौगोलिक राजनीतिक के साथ-साथ सामाजिक रूप से भी राजस्थान-हरियाणा का रोटी-बेटी का भी संबंध रहा है. ऐसे में हरियाणा की राजनीति की किसी भी हलचल पर राजस्थान में भी दिलचस्पी रहती है.

विज्ञापन
Read Time: 4 mins

हरियाणा के विधानसभा चुनाव पर राजस्थान के राजनेता भी बारीकी से नजर रख रहे थे. ऐसा इसलिए क्योंकि राजस्थान भी हरियाणा से सटा हुआ राज्य है. भौगोलिक राजनीतिक के साथ-साथ सामाजिक रूप से भी राजस्थान-हरियाणा का रोटी-बेटी का भी संबंध रहा है. ऐसे में हरियाणा की राजनीति की किसी भी हलचल पर राजस्थान में भी दिलचस्पी रहती है. इस बार हरियाणा के चुनाव में राजस्थान के कांग्रेस के नेताओं ने सक्रिय भूमिका निभाई और मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा से लेकर सचिन पायलट जैसे विपक्ष के नेताओं ने भी प्रचार किया. हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे से कांग्रेस खेमे में निराशा का माहौल बना हुआ है. मगर राजस्थान में कांग्रेस के जाट नेताओं में चुनाव को लेकर एक अलग तरह की चिंता भी थी और उसका एक राजनीतिक इतिहास है.

दरअसल राजस्थान के राजनीतिक इतिहास में कई बार जातिगत समीकरणों के चलते कई बड़े उठापटक देखे गए हैं. लंबे समय से उत्तर भारत के कई राज्यों में वहां की मजबूत राजनीतिक पैठ रखने वाली जातियों को मुख्यमंत्री पद तक पहुंचाया गया है. इनमें हरियाणा और पंजाब जैसे राज्य शामिल हैं. लेकिन राजस्थान जैसे बड़े प्रदेश में अब तक किसी भी जाट नेता को इस कुर्सी तक पहुंचने का मौका नहीं मिला है.

Advertisement

राजस्थान में जाट समुदाय की संख्या 13 प्रतिशत

राजस्थान में जाट समुदाय की संख्या 13% के आसपास है. उसके बावजूद इस जाति का  कोई नेता आज तक मुख्यमंत्री नहीं बन पाया है. वहीं दूसरी तरफ राजस्थान में अब तक राजपूत, ब्राह्मण, दलित, मुस्लिम सभी बड़ी जातियों के नेताओं को मुख्यमंत्री बनने का अवसर मिला है.

Advertisement

राजस्थान के बड़े जाट नेता

ऐसा नहीं है कि प्रदेश में कोई बड़ा जाट नेता नहीं रहा. यहां बलदेव मिर्धा, रामनिवास मिर्धा, बलराम जाखड़, नाथूराम मिर्धा, परसराम मदेरणा और नारायण सिंह जैसे कई नेता केंद्रीय मंत्री, राज्यसभा सांसद, पीसीसी चीफ जैसे पदों पर रह चुके हैं. लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी फिर भी जाट नेताओं से अछूती रही.

Advertisement

जब सीएम बनते-बनते रह गए रामनिवास मिर्धा

राजस्थान के इतिहास में जाट मुख्यमंत्री बनने का एक मौका वर्ष 1973 के चुनाव में आया था, जब इंदिरा गांधी ने रामनिवास मिर्धा को मुख्यमंत्री पद का दावेदार बनाया. लेकिन, उस वक्त हरियाणा और पंजाब सहित कई राज्यों के गैर-जाट नेताओं ने इस बात का विरोध किया जिसके बाद हरिदेव जोशी को राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाया गया.

1981 में परसराम मदेरणा भी चर्चाओं में थे, लेकिन नहीं बने सीएम

जाट समाज के पास दूसरा मौका वर्ष 1981 में फिर से आया, जब परसराम मदेरणा का नाम पुरजोर तरीके से मुख्यमंत्री के लिए उठा. यहां तक कि इस चुनाव में कांग्रेस 140 सीटें जीतकर आई जिनमें 82 से ज्यादा विधायकों ने परसराम मदेरणा को मुख्यमंत्री बनाने की मांग की. मगर उस बार भी कांग्रेस आलाकमान ने शिवचरण माथुर को राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाया. ऐसा कहा जाता है कि इंदिरा गांधी से नजदीकी की वजह से शिवचरण माथुर को मुख्यमंत्री के रूप में बड़ी जिम्मेदारी मिली.

कांग्रेस पार्टी के पास जाट समुदाय के रूप में हमेशा से एक बड़ा वोट बैंक रहा है. लंबे समय से राजस्थान में हर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस करीब 32 से 38 सीटें जाट समुदाय को देती रही है.

हरिआणा में जाट सीएम बनने की थी उम्मीद

वर्तमान में पूरे देश भर में किसी भी राज्य में इस बड़ी जाति का मुख्यमंत्री नहीं है. ऐसे में हरियाणा विधानसभा चुनाव के दौरान राजस्थान के कई बड़े नेताओं की नजरे वहां के सियासी समीकरणों पर थी. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि प्रदेश के कई बड़े जाट नेताओं को इस बात की चिंता भी थी कि अगर हरियाणा में कांग्रेस की सरकार बनती है और वहां जाट मुख्यमंत्री बनता है तो इससे आगे चलकर राजस्थान में जाट मुख्यमंत्री की मांग कमजोर हो सकती है.

यह भी पढे़ं - लीडरशिप पर कन्फ्यूजन, गुटबाजी...जाट रणनीति; हरियाणा में कांग्रेस से कहां हुई चूक?

Topics mentioned in this article