Cultivation of Sangri: राजस्थान का मशहूर जायका और मारवाड़ का मेवा कही जाने वाली सांगरी की इस बार थार रेगिस्तान के धोरों में बंपर पैदावार हुई है. शुष्क मरुस्थलीय क्षेत्र में उगने वाली खेजड़ी और उस पर लगने वाली सांगरी राजस्थान के ट्रेडिशनल खानपान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. यह औषधि के रूप में भी मानी गई है. इस वर्ष राजस्थान और विशेष रूप से पश्चिमी राजस्थान की इस चिलचिलाती धूप और तपते धोरों के बीच किसानों के लिए भी सांगरी की यह बंपर पैदावार एक उम्मीद की किरण के रूप में भी ऊपरी है. साथ ही किसानों के साथ बाजारों में भी इसकी खूब डिमांड देखी जा रही है.
वैज्ञानिकों की पहल 'थार शोभा नस्ल'
थार रेगिस्तान के शुष्क क्षेत्रों में उगने वाली खेजड़ी के पौधों पर केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान 'काजरी' द्वारा अनुसंधान के सकारात्मक परिणाम के साथ ही ईजाद की गई. 'थार शोभा नस्ल' की खेजड़ी इस बार बंपर पैदावार कर रही है. काजरी के वैज्ञानिक प्रोफेसर एसपीएस तवर ने काजरी द्वारा ईजाद की गई 'थार शोभा नस्ल' की विस्तार से जानकारी दी. उन्होंने बताया कि हमारी कई वर्षों की मेहनत अब जाकर रंग लाई है. हमारी काजरी के वैज्ञानिकों ने 5 वर्ष पहले संपूर्ण मारवाड़ के क्षेत्रों में इस 'थार शोभा नस्ल' के पौधों को फैलाने का जिम्मा लिया.
साथ ही इन पौधों के बड्स को नर्सरी में कॉमन खेजड़ी के पौधों पर लगाई. उससे एक ऐसा पौधा तैयार होता है, जो मात्र 3 साल में ही पैदावार देने लग जाता है और यह काजरी में संभव हुआ है. इसके दो फायदे हैं पहले किसान चाहे तो इस पौधे को ले सकता है जिससे इसकी पैदावार अधिक होगी. आजकल केर/सांगरी का चलन इतना है कि यह बाजारों में काजू और बादाम से भी अधिक मूल्य में बिकती है. किसानों के लिए थे एक्स्ट्रा इनकम के लिए एक अच्छा स्रोत है और इसमें लागत भी इतनी नहीं आती.
3 साल में ही तैयार हो जाती सांगरी
कजरी के वैज्ञानिक ने एसपीएस तंवर ने बताया कि जिस प्रकार से सामान्य खेजड़ी धीरे-धीरे ग्रोथ करती थी. वहीं काजरी द्वारा ईजाद की गई खेजड़ी मात्र 3 वर्ष में ही सांगरी की पैदावार हो जाती है. इसमें हमारे ICR के कई संस्थानों का योगदान रहा है. इसकी शुरुआत बीकानेर संस्थान से हुई थी और जोधपुर कजरी में वैज्ञानिक अर्चना वर्मा अपने मार्गदर्शन में इस प्रोजेक्ट को प्रभारी के रूप में देख भी रही हैं. मरुस्थलीय क्षेत्र में जो साधारण खेजड़ी होती है उसमें अत्यधिक कांटे होते हैं. लेकिन इस खेजड़ी की नस्ल में एक भी कांटा नहीं होता और पैदावार भी अधिक होती है.
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