Eid 2025: रमजान के आखिरी जुमे का होता है खास नाम, ईद से पहले 27वीं रात होती है खास इबादत

Eid al-Fitr: शब-ए-क़द्र और जुमा-तुल-विदा दोनों रमजान के सबसे अहम मौक़े हैं. ये इबादत और रहमतों के दिन होने के साथ खुद को सुधारने और ईश्वर के करीब ले जाने के मौक़े देते हैं.

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प्रतीकात्मक तस्वीर

Last Friday of Ramadan: दीन-ए-इस्लाम में रमज़ान का महीना रहमतों और बरकतों से भरा हुआ महीना माना गया है. यह महीना इबादत, आत्मसंयम और अल्लाह की रज़ा को हासिल करने का बेहतरीन मौक़ा होता है. इस महीने की 21वीं, 23वीं, 25वीं, 27वीं और 29वीं रात को शब-ए-क़द्र कहा जाता है. इन सभी रातों में 27वीं रात को सबसे पवित्र माना जाता है और इसे 'लैल-तुल-क़द्र' भी कहा जाता है. वहीं रमज़ान के महीने के आख़िरी जुमे को जुमा-तुल-विदा के रूप में मनाया जाता है. ये दोनों दिन इस्लामी मान्यताओं के अनुसार बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं और दुनिया भर के मुसलमान इन दिनों को ख़ास इबादतों, दुआओं, अपने गुनाहों की माफ़ी और अल्लाह की रज़ा हासिल करने में बिताते हैं.

शब-ए-क़द्र-हज़ार रातों से बेहतर रात...

शब-ए-क़द्र को इस्लाम में सबसे मुक़द्दस रातों में से एक माना गया है. कुरआन में इसे हज़ार रातों से बेहतर रात कहा गया है. इस रात में फरिश्ते ज़मीन पर उतरते हैं और अल्लाह की रहमतें बरसती हैं. ऐसा माना जाता है कि इसी रात में कुरआन-ए-पाक नाज़िल होना शुरू हुआ था.

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शब-ए-क़द्र में मुसलमान ख़ास तौर से नमाज़, तिलावत-ए-कुरआन, दुआ और अस्तिग़फार यानी अल्लाह से अपने गुनाहों की माफी मांगने में रहते हैं. इस रात में कई विशेष इबादतें भी की जाती हैं.

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रात में की जाने वाली विशेष इबादतें

1-नफ़्ल नमाज़-लोग रात भर ख़ास नमाज़ अदा करते हैं और अपने गुनाहों की माफ़ी मांगते हैं.

2-कुरआन की तिलावत यानी पवित्र क़ुरआन का पाठ-इस रात में कुरआन पढ़ने का बहुत सवाब यानी पुण्य बताया गया है. इसलिए शब-ए-क़द्र का एक हिस्सा क़ुरआन की तिलावत में लगाया जाता है.

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3-तस्बीह और ज़िक्र यानी ईश्वर की प्रशंसा-इसके दौरान सुब्हान अल्लाह, अल्हम्दुलिल्लाह और अल्लाहु अकबर का अधिक से अधिक ज़िक्र किया जाता है. पूरी रात ये तस्बीह पढ़ी जाती है.

4-दुआएं-मुसलमान इस रात में अपनी और पूरी दुनियां की भलाई, अमन-चैन और गुनाहों से माफी की दुआएं मांगते हैं.

इन सब बातों के अलावा 27वीं शब-ए-क़द्र को क़ुरआन मुकम्मल होता है. एक माह तक तरावीह की नमाज़ में क़ुरआन सुनाने वाले हाफ़िज़ों, मस्जिद में पूरे साल इमामत करने वाले मौलाना और मस्जिद के मुअज़्ज़िन का सम्मान भी किया जाता है. उन्हें नज़राने पेश किए जाते हैं.

जुमा-तुल-विदा यानी माह-ए-रमज़ान का आख़िरी जुमा...

रमज़ान माह में आने वाले आखिरी जुमे यानी शुक्रवार को जुमा-तुल-विदा कहा जाता है. जुमा-तुल-विदा यानी अलविदाई जुमा. यह दिन रमज़ान के मुकम्मल होने की सूचना भी देता है. ये दिन मुसलमानों के लिए बहुत महत्वपूर्ण दिन होता है. इस दिन की ख़ासियत ये है कि इसे बेहद फ़ज़ीलत वाला दिन माना गया है.

आम जुमे के दिनों से हटकर ये अलविदाई जुमे का दिन ख़ुदा की ख़ास रहमतें और बरकतें बरसने वाला दिन माना गया है. इस दिन मस्जिदों में नमाज़ियों की बड़ी तादाद रहती है और वे जुमा-तुल-विदा की नमाज़ के बाद नफ़्ल नमाज़ों की इबादत भी करते हैं.

इसके अलावा लोगों की कोशिश रहती है कि रमज़ान के महीने में निकाली जाने वाली ज़कात और फ़ितरा ज़रूरत मन्दों में पहुंचाकर अपनी ज़िम्मेदारी से फ़्री हो जाएं ताकि वे भी ख़ुशी-ख़ुशी ईद-उल-फ़ित्र का त्योहार मना सकें.

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