Rajasthan News: रणथंभौर टाइगर रिजर्व के बाघों पर जेनेटिक बीमारी का खतरा गहराता जा रहा है. मशहूर बाघिन टी-84 एरोहेड की बोन ट्यूमर से मौत के बाद अब नर बाघ टी-120 गणेश में भी इस बीमारी के लक्षण दिखाई दिए हैं. सात साल के इस बाघ के दाएं कंधे पर ट्यूमर उभर आया है और उसका बायां केनाइन टूट गया है. एक वन्यजीव फोटोग्राफर के फोटो और वीडियो से इसकी पुष्टि हुई है.
बाघिन एरोहेड की मौत के बाद नया संकट
रणथंभौर की मशहूर बाघिन टी-84 एरोहेड की बोन ट्यूमर से लंबी बीमारी के बाद हाल ही में मौत हो गई थी. अब सिर्फ 9 दिन बाद बाघ टी-120 गणेश में भी ट्यूमर के लक्षण दिखने से चिंता बढ़ गई है. गणेश बाघिन टी-63 चंदा का बेटा और एरोहेड का भांजा है. विशेषज्ञों का मानना है कि यह बीमारी जेनेटिक हो सकती है, जिसका कारण रणथंभौर के बाघों में एक ही जीन पूल का होना है.
जेनेटिक बीमारी का कारण
रणथंभौर के करीब 80 फीसदी बाघ-बाघिनें टी-16 मछली के वंश से हैं. एक ही जीन पूल के कारण इनब्रीडिंग की समस्या बढ़ रही है, जो बोन ट्यूमर जैसी बीमारियों का कारण बन सकती है. मछली की वंशावली राजस्थान के कई टाइगर रिजर्व में फैली है, जिससे जेनेटिक विविधता कम हो रही है.
बाघों को बचाने की चुनौती
टी-120 गणेश का टूटा केनाइन और ट्यूमर उसकी जंगल में जीवित रहने की क्षमता को चुनौती दे रहे हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि जीन पूल को बढ़ाने के लिए टाइगर ट्रांसलोकेशन जरूरी है. वन विभाग को बाघों की संख्या के साथ-साथ उनकी जेनेटिक गुणवत्ता पर भी ध्यान देना होगा.
तत्काल कार्रवाई की जरूरत
रणथंभौर वन प्रशासन और राजस्थान सरकार को इस संकट से निपटने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है. यदि समय रहते जेनेटिक बीमारी को नहीं रोका गया, तो यह रणथंभौर के बाघों के लिए बड़ा खतरा बन सकता है. बाघों को बचाने के लिए त्वरित उपचार और जेनेटिक विविधता बढ़ाने के प्रयास जरूरी हैं.
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