Ratan Tata and Amitabh Bachchan : भारत के दिग्गज उद्योगपति रतन टाटा के नेतृत्व में टाटा समूह का बड़ा विस्तार हुआ. रतन टाटा के कार्यकाल में टाटा का साम्राज्य विदेशों तक फैला. कोरस, जगुआर और टेटली जैसी नामी विदेशी कंपनियों के अधिग्रहण की सारी दुनिया में चर्चा हुई और टाटा देश के बाहर भारत का सबसे बड़ा ब्रांड बन गया. भारत में टाटा के बारे में पहले से ही एक कहावत मशहूर रही है कि टाटा सुई से लेकर जहाज तक बनाता है. टाटा ने तरह-तरह के उत्पाद बनाए और भारत में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जिसने टाटा के किसी उत्पाद का इस्तेमाल नहीं किया होगा.
एंटरटेनमेंट की दुनिया में टाटा
टाटा ने मनोरंजन की दुनिया में भी कदम रखा और DTH टीवी की दुनिया में टाटा स्काई (Tata Sky) घर-घर पहुंचा जिसका नाम अब टाटा प्ले (Tata Play) हो गया है. मगर एंटरटेनमेंट के क्षेत्र में टाटा ने एक और कोशिश की थी.
रतन टाटा ने 20 साल पहले बॉलीवुड में हाथ आजमाने की कोशिश की थी. रतन टाटा ने वर्ष 2004 में एक फिल्म को को-प्रोड्यूस किया था. इस फिल्म का नाम था एतबार, और इसमें अमिताभ बच्चन, जॉन अब्राहम और बिपाशा बसु मुख्य भूमिकाओं में थे.
फिल्म का निर्देशन मुकेश भट्ट ने किया था जो तब तक गुलाम, कसूर, राज़, आवारा पागल दीवाना जैसी कामयाब फिल्मों से अपनी पहचान बना चुके थे.
एतबार - पहली और आखिरी फिल्म
मगर 'टाटा इन्फोमीडिया लिमिटेड' के बैनर वाली एतबार को दर्शकों ने नकार दिया और यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर पिट गई. लगभग साढ़े नौ करोड़ के बजट वाली फिल्म बॉक्स ऑफिस पर लगभग आठ करोड़ रुपये ही कमा सकी. इस फिल्म के बाद रतन टाटा ने दोबारा फिल्म निर्माण में हाथ नहीं लगाया.
हालांकि इसके बाद वह फिर एक बार वर्ष 2011 में एंटरटेनमेंट की दुनिया में चर्चा में आए थे और ऐसी चर्चा छिड़ी कि रतन टाटा न्यूयॉर्क के मशहूर ब्रॉडवे थिएटर की तर्ज पर म्यूज़िकल शो के लिए फंडिंग करना चाहते हैं.
हिन्दी फिल्मों के बारे में क्या कहते थे रतन टाटा
वैसे हिन्दी फिल्मों को लेकर रतन टाटा ने अभिनेत्री सिमी ग्रेवाल को दिए गए अपने चर्चित इंटरव्यू में अपनी राय जताई थी. रोंदवू विद सिमी ग्रेवाल नाम के इस मशहूर शो में सिमी ग्रेवाल ने रतन टाटा से पूछा था कि क्या वह हिन्दी फिल्में देखते हैं. इस पर रतन टाटा ने कहा कि 'देखना ही पड़ता है, क्योंकि टीवी पर वही आती हैं'.
इसी इंटरव्यू में आगे उन्होंने हिन्दी फिल्मों को हिंसक बताया था और मज़ाकिया लहजे में कहा था, "हिन्दी फिल्में हिंसक भी होती हैं. मुझे लगता है मुंबई के रेस्टोरेंट्स में भी उतने केचप इस्तेमाल नहीं होते जितना हिन्दी फिल्मों में होते हैं."
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