'अरावली बचाओ' के लिए उदयपुर में सड़क पर उतरे वकील, बोले- मेवाड़ भी रेगिस्तान की चपेट में आ जाएगा

Udaipur News: उदयपुर बार एसोसिएशन ने जिला कलेक्टर को राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन दिया. अरावली की नई परिभाषा का विरोध जताते हुए वकीलों ने मांग की है कि सरकार सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटीशन दायर करे.

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उदयपुर में कलेक्ट्रेट का घेराव करते वकील.

Save aravali campaign: 'अरावली बचाओ' मुहिम को राजस्थान से लेकर देशभर में समर्थन मिल रहा है. आज शनिवार (20 दिसंबर) को उदयपुर में वकीलों ने प्रदर्शन किया. कलेक्ट्रेट ऑफिस का घेराव कर वकीलों ने विरोध जाहिर किया. वकीलों की भीड़ के चलते पुलिस का भारी जाब्ता तैनात करना पड़ा. एहतियातन कलेक्ट्रेट के बाहर बैरिकेडिंग भी की गई, लेकिन वकीलों का काफी गुस्सा फूटता चला गया. प्रदर्शन उदयपुर बार एसोसिएशन के बैनर तले किया गया. एसोसिएशन ने अरावली बचाओ का आह्वान करते हुए पर्वतमाला के संरक्षण के लिए नीतियां बनाने पर जोर दिया और साथ ही सुप्रीम कोर्ट में सरकार से पुर्नविचार याचिका दायर करने की मांग भी की. 

सरकार रिव्यू पिटीशन दायर करें- एसोसिशन

सुप्रीम कोर्ट की ओर से अरावली की नई परिभाषा दिए जाने के खिलाफ वकीलों का गुस्सा फूटा. वकीलों का कहना है कि अगर ऐसा हुआ तो मेवाड़ भी रेगिस्तान की चपेट में आ जाएगा. उन्होंने अपनी मांग रखते हुए जिला कलेक्टर को राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन दिया और मांग की है कि सरकार रिव्यू पिटीशन दायर करे.

अधिवक्ता बोले- अरावली का लगातार दोहन हो रहा

सीनियर अधिवक्ता राव रतन सिंह का कहना है, "माननीय उच्चतम न्यायालय ने 100 मीटर तक की पहाड़ियों को ही अरावली माना है. अगर ऐसा हुआ तो 90 प्रतिशत पहाड़िया कानून के दायरे से बाहर आ जाएगी और खनन होना शुरू हो जाएगा. अभी भी अरावली का लगातार दोहन किया जा रहा है." 

जानिए विरोध की वजह 

दरअसल, केंद्र सरकार द्वारा अरावली पर्वतमाला की नई वैज्ञानिक परिभाषा प्रस्तावित की गई है. इसके तहत केवल 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई वाली पहाड़ियों को ही अरावली माना जाएगा. इसका विरोध कर रहे लोगों का कहना है कि यदि यह मानदंड लागू हुआ तो अरावली का बड़ा हिस्सा संरक्षण से बाहर हो जाएगा. इससे खनन और निर्माण गतिविधियों का रास्ता खुल सकता है.

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